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जैविक खाद के नाम पर 11 करोड़ का गोलमाल

मुजफ्फरपुर: कृषि विभाग में जैविक खाद उत्पादन इकाई लगाने के नाम पर करोड़ों रुपये का बंदरबांट हुआ है. तीन अलग-अलग तरीके से अवैध भुगतान किया गया है. पक्का इकाई से लेकर हाइ डेनसिटी पॉलीथिन (एचपीडीइ) यानी पॉलीथिन वाली इकाई वितरण में करीब पांच करोड़ रुपये की अनियमितता का खेल किया गया है. गोबर खरीद की […]

मुजफ्फरपुर: कृषि विभाग में जैविक खाद उत्पादन इकाई लगाने के नाम पर करोड़ों रुपये का बंदरबांट हुआ है. तीन अलग-अलग तरीके से अवैध भुगतान किया गया है. पक्का इकाई से लेकर हाइ डेनसिटी पॉलीथिन (एचपीडीइ) यानी पॉलीथिन वाली इकाई वितरण में करीब पांच करोड़ रुपये की अनियमितता का खेल किया गया है. गोबर खरीद की राशि भुगतान के नाम पर भी 1.12 करोड़ रुपये का अवैध भुगतान कर दिया गया.

इतना ही नहीं, चार जिलों में पक्का उत्पादन इकाई व पॉलीथिन वाली जैविक खाद उत्पादन इकाई निर्माण के लिए 6.11 करोड़ सीधे आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान कर दिया गया. विभाग ने जैविक खाद उत्पादन करने वाले तीन उद्यमियों को उनके उत्पादन की बिना जांच किये ही 37.50 लाख का भुगतान कर दिया. यह खुलासा महालेखाकार (एजी) की ऑडिट रिपोर्ट से हुआ है.

एजी ने 29 सितंबर 2013 को यह रिपोर्ट जारी किया है. जांच के बाद कृषि निदेशक ने पूरे मामले में सुधार का निर्देश दिया है. रिपोर्ट के अनुसार विभाग ने पॉलीथिन इकाई के अनुदान वितरण में जगह-जगह नियम के विपरीत भुगतान किया है.

तीन जिलों में तो अधिकारियों ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर गोबर की राशि का 50 फीसदी के हिसाब से 1.12 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है. अधिकारियों ने यह कारनामा वर्ष 2010 से 2013 के दौरान किया है. अधिकारियों ने जैविक खाद उत्पादन के लिए पॉलीथिन निर्मित इकाई व पक्का निर्माण की राशि बांटने में विभागीय नियमों का खुलम खुल्ला उल्लंघन किया है.

कई जिलों में कृषि अधिकारियों ने वर्मी बेड आपूर्तिकर्ताओं को ही किसानों से आवेदन लेने का आदेश जारी कर दिया था. इसके नाम पर 6.11 करोड़ रुपये सप्लायर को ही सीधा भुगतान किया गया. इस तरह के मामले चार जिलों में जांच टीम के आये. विभाग के अधिकारियों ने दरियादिली दिखाते हुए जैविक खाद उत्पादन करने वाले तीन उद्यमियों को 37.50 लाख रुपये का भुगतान बिना उत्पादकता की जांच किये ही कर दिया.

कैग की टीम ने सूबे के नौ जिलों में जैविक खाद उत्पादन वाली दोनों प्रकार की इकाइयों की जांच की थी. जांच में पाया गया कि लाभुकों की सहमति के बिना वर्मी बेड की पूरी राशि आपूर्तिकर्ता को दे दिया गया. इसके अतिरिक्त किसानों को वर्मी बेड की 50 फीसदी राशि भुगतान कर दिया गया. यह सब वर्ष 2010 से 2013 के बीच किया गया है. यह भुगतान विभागीय नियम को तोड़ते हुए किया गया. जांच टीम ने पाया कि एचपीडीइ सप्लायर को लाभुकों की सहमति के बिना 4.84 करोड़ रुपये का भुगतान नियम के विपरीत किया गया.

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