रविंद्र कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर : पिछले चुनाव में करीब तीन दशक बाद किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था. उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 31 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 282 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. इसके बावजूद पिछले चुनाव में राष्ट्रीय दलों का कुल वोट शेयर 60.7% के साथ सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया.
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बढ़ रही क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या, घट रहे राष्ट्रीय दलों के वोट शेयर
रविंद्र कुमार सिंह, मुजफ्फरपुर : पिछले चुनाव में करीब तीन दशक बाद किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था. उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 31 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 282 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. इसके बावजूद पिछले चुनाव में राष्ट्रीय दलों का कुल वोट […]
दरअसल, राष्ट्रीय पार्टियों के ज्यादातर वोट गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों और क्षेत्रीय पार्टियों की ओर खिसक गये थे. क्षेत्रीय दलों व निबंधित पार्टियों की बढ़ती संख्या भी चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है. देश में गठबंधन की सरकार बनाने की शुरू हुई परंपरा के कारण ऐसी पार्टियों को प्रमुखता मिलने लगी है. इन्हें सरकार में भागीदारी मिलने लगी.
इन कारणों से क्षेत्रीय व नयी-नयी पार्टियों का बड़ी तादाद में रजिस्ट्रेशन होना शुरू हो गया. धीरे-धीरे रजिस्टर्ड व क्षेत्रीय दलों की बाढ़ आनी शुरू हुई. वहीं राष्ट्रीय दलों का मापदंड पूरा करने वाली पार्टियों की संख्या उसी अनुपात में घटती गयी.
स्थिति यह है कि 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों की संख्या 14 थी, जो 2014 के लोस चुनाव में छह पर पहुंच गयी. तीन दशकों के आंकड़ों पर ध्यान दें, तो क्षेत्रीय दलों के साथ ही रजिस्टर्ड पार्टियों की संख्या में वृद्धि हुई है. 1951 के लोस चुनाव में राष्ट्रीय दलों की संख्या 14 थी और स्टेट पार्टियों की संख्या 39 थी.
राष्ट्रीय पार्टियों की संख्या में आयी कमी
2014 के लोस चुनाव में 470 दल थे मैदान में
2014 में राष्ट्रीय दलों का वोटशेयर 60.7% के साथ सबसे निचले स्तर पर रहा
पहली बार 1977 में कई छोटे दलों का विलय, बनी सरकार
1977 के लोकसभा चुनाव में पहली बार गठबंधन की सरकार देश में बनी. हालांकि, उस चुनाव में कई दलों ने आपस में मिल कर एक दल बना लिया था. चुनाव में कई छोटे-बड़े दलों के विलय कर चुनाव लड़ने का परिणाम इन दलों के पक्ष में आया.
लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिली. मोरारजी देसाई गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री मंत्री बने. हालांकि, यह प्रयोग बहुत सफल नहीं रहा.
चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में एक खेमा अलग हुआ और अपनी ही सरकार के विरोध में स्वर उठाने लगा. कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह सिंह का साथ दे दिया. ढाई साल के अंदर ही मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी. इसके बाद कांग्रेस के सहयोग से चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनीं, लेकिन वह भी अपने कार्यकाल को पूरा नहीं कर सकी.
1989 के चुनाव से दलों की संख्या में हुई तेजी से वृद्धि
गठबंधन कर चुनाव जीतने और सरकार में शामिल होने का मौका मिलने से छोटे – छोटे दलों का मनोबल बढ़ने लगा. 1989 के चुनाव से क्षेत्रीय दलों व रजिस्टर्ड पार्टियों की संख्या में वृद्धि तेजी से शुरू हुई. यह सिलसिला लगातार बढ़ता गया.
छोटे दलों का वोट% बढ़ा
1991 के 2.2% की तुलना में आप और टीएमसी समेत गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों का वोट शेयर 2014 में बढ़ कर 22.7% हो गया. पिछली बार के अलावा इन दलों का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1998 के आम चुनाव में था, जब इनके खाते में 10.9% वोट गये थे.
कैसे मिलती है राष्ट्रीय दल की मान्यता
राज्यस्तरीय या राष्ट्रीय दल के रूप में पंजीकृत होने के लिए संबंधित पार्टी को एक निश्चित वोट प्रतिशत या लड़ी गयीं सीटों पर एक निश्चित प्रतिशत में जीत हासिल करनी होती है.
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