बीमार पड़ने वाले 90 फीसदी बच्चों के परिजनों का यह कहना, उनका बच्चा एक या दो दिन पहले बगीचे में गया था, जो विशेषज्ञों के आधार को पुष्ट करता है. हालांकि वे आम सहित अन्य मौसमी फलों पर रिसर्च की जरूरत बता रहे हैं. फलों का रसायन एइएस का जिम्मेवार हाल ही में वेल्लोर के वायरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ टी जैकब जॉन व लखनऊ स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ मुकुल दास ने शोध में लीची पर संदेह व्यक्त किया है. मई 2014 में प्रकाशित करेंट साइंस के वॉल्यूम 106, नं. 9 व 10 में यह लिखा गया है कि लीची की गुठली में मौजूद मिथाइलक्ष्नसाइकलोप्रपाइल (एमसीपीए) टॉक्सिन होता है. यह शरीर में चीनी के लेबल को शीघ्रता से कम करता है.
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टॉक्सिन के कारण जा रही बच्चों की जान!
मुजफ्फरपुर: एइएस के कारणों की खोज कर रहे देश व दुनिया के विशेषज्ञों की नजर टॉक्सिन पर है. विशेषज्ञों ने इसका संकेत देना शुरू कर दिया है. अटलांटा स्थित सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल व दिल्ली के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के विशेषज्ञ बीमारी का कारण हाइपोग्लेशिमिया (शरीर में ग्लूकोज का स्तर कम होना) बता […]
मुजफ्फरपुर: एइएस के कारणों की खोज कर रहे देश व दुनिया के विशेषज्ञों की नजर टॉक्सिन पर है. विशेषज्ञों ने इसका संकेत देना शुरू कर दिया है. अटलांटा स्थित सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल व दिल्ली के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के विशेषज्ञ बीमारी का कारण हाइपोग्लेशिमिया (शरीर में ग्लूकोज का स्तर कम होना) बता रहे हैं. विशेषज्ञ इस बात की खोज करने में जुटे हैं, बच्चे ऐसी कौन सी चीज खा रहे हैं, जिससे उनके शरीर में ग्लूकोज का स्तर कम हो जाता है.
विशेषज्ञों ने लीची पर रिसर्च कर एक खास प्रकार के टॉक्सिन एमसीपीए का पता लगाया है.
यह टॉक्सिन कच्ची लीची में ज्यादा होता है. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह टॉक्सिन लीची के अलावा अन्य किस फलों में होता है. इस पर रिसर्च की जरूरत हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि हाइपोग्लेशिमिया के कारण शरीर में मेटाबोलिक परिवर्तन (केमिकल रियेक्शन) होता है. इससे लीवर प्रभावित होता है. ग्लूकोज की कमी के कारण ब्रेन के सेल तक प्रोटीन नहीं पहुंच पाता. इसके कारण सेल डैमेज हो जाता है. चमकी, वोमेटिंग, बुखार आदि इसी के लक्षण हैं. शोध में कहा गया है, यह टॉक्सिक हाइपोग्लेसेमिक सिंड्रोम है. एनसीसीडीसी के विशेषज्ञ भी यह मानने लगे हैं कि बीमारी का कारण टॉक्सिन है. रिसर्च की नयी दिशा मिलने पर राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट ने भी लीची पर शोध करना शुरू कर दिया है.
अटलांटा स्थित सीडीसी के विशेषज्ञ भी लीची के मौसम में इस बीमारी के होने पर शोध कर रहे हैं. विशेषज्ञ डॉ पद्मिनी श्रीकांतिया ने पिछले वर्ष जुलाई-सितंबर के न्यूजलेटर, वॉल्यूम 2, इश्यू 3 में प्रकाशित शोध में लीची के मौसम में बीमारी के होना प्रमुख बिंदु माना है. डॉ पद्मिनी ने कहा है कर्ि 1995 में मुजफ्फरपुर व उसके आस पास जिलों के करीब एक हजार बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हुए थे. इसमें 300 बच्चों की जान गयी थी. उनके शोध में यह बात सामने आयी थी कि जून के प्रथम दो सप्ताह में 70 फीसदी बच्चे एइएस से पीड़ित होते हैं.
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