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सौ साल बाद आज भी गुमनाम है वह कमरा, जहां बापू ने बितायी थी रात

मुजफ्फरपुर : 10 अप्रैल, 1917 की रात महात्मा गांधी ने जिस कमरे में रात बितायी थी, वह आज भी गुमनाम है. कुछ साल पहले तक वहां अराजक तत्वों का जमघट लगता था, जिससे तंग आकर दरवाजे पर ईंट की दीवार खड़ी कर दी गयी. बापू की मुजफ्फरपुर यात्रा से जुड़े इस अहम जगह को धरोहर […]

मुजफ्फरपुर : 10 अप्रैल, 1917 की रात महात्मा गांधी ने जिस कमरे में रात बितायी थी, वह आज भी गुमनाम है. कुछ साल पहले तक वहां अराजक तत्वों का जमघट लगता था, जिससे तंग आकर दरवाजे पर ईंट की दीवार खड़ी कर दी गयी. बापू की मुजफ्फरपुर यात्रा से जुड़े इस अहम जगह को धरोहर के रूप में सहेजने के दावे तो बहुत हुए, लेकिन कुछ काम नहीं हो सका.
हालत यह है कि कॉलेज के नये छात्रों के साथ ही कई शिक्षक भी भूलने लगे हैं कि चंपारण सत्याग्रह का बिगुल फूंकने उत्तर बिहार आये बापू ने मुजफ्फरपुर में पहली रात कहां गुजारी थी. मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर बापू उतरे, तो एलएस कॉलेज के ड्यूक हॉस्टल के छात्र बग्घी पर बिठा कर अपने साथ ले गये थे. तत्कालीन वॉर्डेन के कक्ष में बापू ने रात्रि विश्राम किया था.
अगले दिन कुएं पर स्नान के बाद उनकी दिनचर्या शुरू हुई. कुएं का स्वरूप तो बदल गया, लेकिन हॉस्टल के उस कमरे की तकदीर नहीं बदली. कई सालों तक वह खंडहर के रूप में पड़ा था. दो-तीन साल पहले ईंट की दीवार खड़ी कर उसे पूरी तरह पैक कर दिया गया. हालांकि प्राचार्य डॉ ओपी राय ने कहा कि बापू की चंपारण यात्रा एलएस कॉलेज के गौरव से जुड़ी है. उनसे जुड़ी हर चीज को धरोहर के रूप में सहेजा जायेगा.
संग्रहालय बनाने की हुई थी बात
हॉस्टल में रहने वाले छात्रों ने बताया कि वे केवल सुनते आ रहे हैं कि इसी कमरे में गांधीजी ठहरे थे. उनकी कोई निशानी नहीं बची है, न ही धरोहर के रूप में उस कमरे को सहेजा जा सका है. बताया कि कॉलेज के प्राचार्य रहे बीआरए बिहार विवि के कुलपति डॉ अमरेंद्र नारायण यादव ने कमरे को संग्रहालय के रूप में विकसित करने की पहल की थी.
फिर क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है. हालांकि अधिकतर नये छात्रों को यह जानकारी भी नहीं होती थी कि गांधीजी रात में यहां रुके थे. कमरे को पैक कर दिये जाने के बाद उन्हें यही लगता है कि असामाजिक तत्वाें की बैठकी बंद करने के लिए कॉलेज प्रशासन ने यह कदम उठाया होगा.
चंपारण को नीलहों के आतंक से मुक्ति दिलाने आये थे बापू
बापू चंपारण के किसानों को नीलहों के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए आये थे. वर्ष 1917-18 में गांधीजी के नेतृत्व में शुरू आंदोलन को ही चंपारण सत्याग्रह का नाम दिया गया. दरअसल, नील की खेती करने वाले किसानों की दशा खराब हो गयी थी. समाजसेवी पंडित राज कुमार शुक्ल ने 27 फरवरी, 1917 को मोहनदास करमचंद गांधी को एक पत्र लिखा था. इसी पत्र ने आजादी की लड़ाई के पहले अहिंसक आंदोलन का बिगुल फूंका और चंपारण सत्याग्र्रह ने गांधी को महात्मा बना दिया. वे पहली बार नौ अप्रैल, 1917 को बिहार पहुंचे थे.

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