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रेल एसपी संजय को सराहनीय सेवा पदक

मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर रेल एसपी संजय कुमार सिन्हा को उनके बेहतर काम के लिए सराहनीय सेवा पदक के िलये चुना गया है. रेल एसपी को इससे पहले भी तीन बार वीरता पुरस्कार के साथ अन्य पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. उन्होंने बताया कि हमारा काम निरंतर जारी रहेगा. यात्रियों की सुरक्षा हमारा पहला कर्तव्य […]

मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर रेल एसपी संजय कुमार सिन्हा को उनके बेहतर काम के लिए सराहनीय सेवा पदक के िलये चुना गया है. रेल एसपी को इससे पहले भी तीन बार वीरता पुरस्कार के साथ अन्य पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. उन्होंने बताया कि हमारा काम निरंतर जारी रहेगा. यात्रियों की सुरक्षा हमारा पहला कर्तव्य है. इसके अलावा पुलिस के 14 अधिकारियों व जवानाें को विशेष सम्मान से नवाजा जायेगा. पुलिस वीरता पदक के लिए इंस्पेक्टर विनय कुमार शर्मा, विशिष्ट सेवा पदक के लिए पुलिस हेडक्वार्टर में तैनात एएसआई बासुकी नाथ मिश्रा को सम्मानित किया जायेगा.
खूब खायी मिठाई व वंदे मातरम् का लगाया नारा
15 अगस्त, 1947. वैसे तो अन्य दिनों की सुबह जैसी, लेकिन खुशियां ऐसी कि सारे पर्व-त्योहार फीके. हर घर में जश्न का माहौल. उस वक्त मेरी उम्र 13 वर्ष थी. झपहां में हमलोगों का पुश्तैनी मकान था. हमलोग वहीं रहते थे. दादा नंदलाल महथा स्वतंत्रता सेनानी थे. आजादी के दिन की बहुत कुछ स्मृतियां धुंधली हो गयी हैं, लेकिन कुछ बातें अभी तक याद हैं.
उस दिन सुबह से ही घर पर लोगों का तांता लग गया था. अधिकतर लोग मुंह मीठा कराने के लिए मिठाइयां लेकर पहुंच रहे थे. केले के पत्ते से बने डोंगे में गुलाब जामुन. सुबह में स्वतंत्रता सेनानी जनक सिंह सबसे पहले पहुंचे. इसके बाद से दिनभर घर पर आने वाले लोगों का तांता लगा रहा. आने वाले लोगों का स्वागत भी मिठाई खिला कर किया जा रहा था. मैंने भी खूब मिठाई खायी. उस वक्त इतना पता था कि हमारा देश आजाद हो गया है. पूरे गांव में उत्सवी माहौल था.
झपहां में इतनी मिठाइयां बिकीं कि पूरे इलाके के दुकानों से मिठाई समाप्त हो गयी. घर-घर में आजादी का जश्न था. हमसे उम्र में बड़े लड़के वंदे मातरम् का नारा लगाते गली-गली में घूम रहे थे. मैं भी उनके साथ घूम-घूम कर वंदे मातरम् व भारत माता की जय का नारे लगाते रहा. गांव में ही एक पीपल के पेड़ के नीचे जगह साफ किया गया. दादाजी और उनके दोस्तों ने धोती-कुरता व गांधीवादी टोपी पहन कर वहां बैठक की. पूरे गांव में उल्लास की लहर थी. ऐसा कोई घर नहीं था, जहां देश की आजादी की चर्चा नहीं हो रही हो.
टायर गाड़ी से आये थे शहर
उस वक्त झपहां से शहर आने के लिए सिर्फ टायर गाड़ी थी. दूसरी व्यवस्था नहीं थी. दादा नंदलाल महथा व जनक सिंह टायर गाड़ी से शहर गये थे. वहां भी कोई बैठक होने वाली थी. टायर गाड़ी पर तिरंगा लगा था. आजादी का यह जश्न कई दिनों तक रहा. खूब बैठकों का दौर चलता था. चाय व पान दुकानों पर आजादी की ही चर्चा. गांधी जी की नाम बच्चे-बच्चे की जुबान पर था. उल्लास का उस वक्त जो माहौल था, अब तो वैसा सोचा भी नहीं जा सकता.

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