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दूसरे अशरे में रोजेदार कर रहे इबादत

मुजफ्फरपुर : रमजान का दूसरा अशरा शुरू हो चुका है. अब रोजेदार दूसरे अशरा यानी मगफिरत के जारी दस दिनों में इबादत कर रहे हैं. पहला दस दिन बहुत ज्यादा गुनहगारों के लिए था, जो अल्लाह की रहमत के साये में आये, अब ये दूसरा अशरा कम गुनहगारों के लिए है, जो अल्लाह की बख्शीशों […]

मुजफ्फरपुर : रमजान का दूसरा अशरा शुरू हो चुका है. अब रोजेदार दूसरे अशरा यानी मगफिरत के जारी दस दिनों में इबादत कर रहे हैं. पहला दस दिन बहुत ज्यादा गुनहगारों के लिए था, जो अल्लाह की रहमत के साये में आये, अब ये दूसरा अशरा कम गुनहगारों के लिए है, जो अल्लाह की बख्शीशों एवं इनायतों के साये में आ गये हैं.
यह सफर अल्लाह की मेजबानी में जारी रह कर अब उस स्थान में प्रवेश ले रहा है, जहां रहमते खुदाबंदी अपने बंदों को पुकार-पुकार कर यह आवाज दे रही है कि ऐ मेरे बंदों तुमने सिर्फ भूख-प्यास से ही मेरी खुशी नहीं चाही, हर गलत ख्वाहिशों को छोड़ा जो मुझे नापसंद है, इसलिए आओ जन्नत तुमलोगों के लिए तैयार है. मेरी नेमतों के दस्तरख्वान बिछे हुए हैं.
मेरी खातिर दुनिया की लज्जतों को छोड़ने वालों आओ अब अपनी हर ख्वाहिश का हमेशा मजा लेते रहो. शरीअत में रोजा अल्लाह की इबादत की नीयत से सुबहे सादिक से लेकर सूरज डूबने तक खाने-पीने और हर तरह की नफसानी ख्वाहिश से खुद को रोके रहने को कहते हैं. दूसरे अशरो के दस दिन पूरा होने पर अंतिम अशरे में होगी शब-ए-कद्र की तलाश की जायेगी.
बुराइयों से निजात दिलाने का महीना रमजान
यह बात सही व दुरुस्त है कि रमजान का महीना इंसान को हर एक मामले में नेकी का संदेश देता है व सभी बुराइयों से निजात दिलाता है. मेरा तो मानना है कि माहे रमजान सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है. यह एक पवित्र पर्व है, जिससे प्रत्येक मुसलमान 11 माह तक बचने की ट्रेनिंग लेता है. यूं कहा जाये तो हक को हक, झूठ को झूठ, बेईमान को बेईमान व हराम को हराम कहने की ताकत हो, तब जाकर रमजान में दुआ कबूल होगी.
इसका परिणाम यह होगा कि हमारे समाज से भ्रष्टाचार मिटेगा. लोग एक-दूसरे का सम्मान करेंगे. अगर हमारी ट्रेनिंग दिखावा रही, तो इस दुआ से भी हाथ धोना पड़ेगा. जियारत करते हुए भी हमें कोई फायदा नहीं होगा. कहा भी जाता है कि जिस चीज की फजीलत ज्यादा होती है, वहां पर गलत काम करने पर सजा भी ज्यादा होती है.

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