मुजफ्फरपुर: एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) बीमारी का तापमान से सीधा संबंध है. जब भी पारा 40 से ऊपर चढ़ा है, बीमारी का कहर शुरू हुआ है. एक बार 40 से अधिक तापमान चढ़ने पर वायरस का संक्रमण तेज हो जाता है. इसके स्थिर रहने या बढ़ने पर बीमारी चरम पर पहुंच जाती है. दूसरी ओर, तापमान में कमी आने के साथ ही इसका प्रभाव कम हो जाता है.
पिछले दो वर्षो में बीमारी की शुरुआत में तापमान की प्रमुख भूमिका रही है. पिछले साल 25 मई को बीमारी की शुरुआत हुई थी. उस दिन तापमान 40 डिग्री था. इस वर्ष मई के प्रथम सप्ताह में ही तापमान 40 डिग्री सेल्सियस हो जाने के कारण एइएस के मरीज मई के पहले सप्ताह से ही बढ़ने लगे. इससे पूर्व सात बच्चे एइएस के लक्षणों से पीड़ित होकर एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल पहुंचे थे. सभी में एइएस की पुष्टि नहीं हुई थी. इस बार तापमान में काफी उतार-चढ़ाव के कारण बीमारी का संक्रमण पिछले वर्ष की तरह नहीं हुआ. पिछले वर्ष 25 से 28 मई तक 15 बच्चे भरती हुए थे. जबकि इस वर्ष महज चार बच्चे भरती हुए हैं.
50 दिन में 39 बच्चे हुए भरती
इस वर्ष इस बीमारी के लक्षण वाला पहला केस सात अप्रैल को सामने आया था. पारू की चार वर्षीया रीतू कुमारी को मेडिकल कॉलेज में भरती किया गया था. स्वस्थ होने के बाद उसे 22 अप्रैल को डिस्चार्ज कर दिया गया. सात मई से पहले एइएस के लक्षणों वाले सात मरीजों में छह स्वस्थ हो गये. सिर्फ एक बच्चे की मृत्यु हुई थी. इन बच्चों में एइएस के लक्षण तो थे, लेकिन जांच में जॉन्डिस, मेनेंजाइटिस जैसी दूसरी बीमारियों की पुष्टि हुई थी. हालांकि, लक्षण के आधार पर भरती के समय इनके बीएसटी में एइएस लिखा गया था. लेकिन इलाज के बाद सभी बच्चे स्वस्थ हो गये. उनमें विकलांगता भी नहीं देखी गयी.
जागरूकता से रुकी मौतें
इस वर्ष बचाव के लिए चलाये गये जागरूकता के कारण एइएस से पीड़ित अधिकतर बच्चों को बचाया जा सका है. अब तक भरती 39 बच्चों में सात की मृत्यु हुई है. पिछले 17 वर्षो के बीमारी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. अब तक बीमार बच्चों का मृत्यु दर 15.5 फीसदी है. जबकि पिछले वर्ष मृत्यु दर का आंकड़ा 70 फीसदी था. मृत्यु दर में कमी का कारण बच्चों को जल्दी अस्पताल पहुंचना था.
39 में 22 बच्चे स्वस्थ
इस साल एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में भरती 38 में से 22 बच्चे स्वस्थ होकर घर लौटे. सात बच्चों की जान नहीं बचायी जा सकी. दस बच्चों का इलाज दोनों अस्पतालों में किया जा रहा है. इनके स्वस्थ होने की डॉक्टरों में भी आशा जगी है. कई डॉक्टरों का कहना है कि पीड़ितों को यदि जल्द अस्पताल पहुंचाया जाय तो उन्हें बचाया जा सकता है. देर करने पर इलाज मुश्किल हो जाता है.