मुजफ्फरपुर: अखाड़ाघाट पुल की मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति व आवंटित राशि का घोटाला किये जाने की आशंका को लेकर स्थानीय लोग व शेखपुर संघर्ष समिति के सदस्यों ने कार्य का विरोध जताया है. काम करा रहे सुपरवाइजर के सामने कई सवाल रखें. इस दौरान कुछ देर के लिए काम बाधित भी हो गया. इसकी सूचना सुपरवाइजर ने साइट इंजीनियर को दी. अभियंता ने फोन पर समिति के सदस्यों को आश्वासन दिया कि वे साइट पर आकर उनसे बात करेंगे.
सदस्यों ने कहा कि करीब पौने दो करोड़ की राशि से यह काम कराये जाने की बात सामने आयी है, लेकिन जिस प्रकार काम हो रहा है उससे यह जाहिर हो रहा है कि बड़ा घोटाला हो रहा है. कार्य स्थल पर कोई अभियंता व विशेषज्ञ नहीं हैं. सिर्फ आठ लेबर व तीन राजमिस्त्री काम कर रहे हैं. कोई भी डॉट बॉल नहीं बदला गया है. पुल मरम्मत के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है.
लोगों का कहना था कि मरम्मत कार्य शुरू करने से पहले यह सामने आया था कि एक सप्ताह में दो पहिया वाहनों के लिए रास्ता खोल दिया जायेगा. 15 दिन बाद चार पहिया वाहन व 20-25 रोज बाद बड़े चलने लगेंगे. दस से बारह मजदूर काम कर रहे हैं. न कोई साइट इंजीनियर यहां आया और न ही कोई विशेषज्ञ.
समिति सदस्यों ने चेतावनी दी कि सात दिन के अंदर यदि दो पहिया वाहन के लिए रास्ता नहीं खोला गया तो पहले सांकेतिक प्रदर्शन व बाद में आंदोलन तेज किया जायेगा. इसके लिए पुल निर्माण निगम व संवेदक दोषी होंगे. कार्य विरोध का नेतृत्व शेखपुर संघर्ष समिति के अध्यक्ष मिहिर कुमार झा, संजय कुमार पप्पू, रमेश कुमार सिंह, रवि शंकर सिंह, चुन्नू सिंह, छोटन सिंह, राज कुमार पासवान आदि कर रहे थे.
विशेषज्ञ नहीं लेवर व राज मिस्त्री कर रहे मरम्मत: अखाड़ा घाट के क्षतिग्रस्त पुल के निर्माण कार्य में लेबर व राज मिस्त्री को लगाया गया है. पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता सत्येंद्र सिंह के अनुसार पुल के उत्तरी छोर का कैप क्रैक किया है. इसकी मरम्मती को लेकर कैप के ऊपर के भाग को हटना पड़ेगा. जो मरम्मत कार्य चल रहा है उसमें पुल के उत्तरी छोर के नीचे के कुछ हिस्से को खोदकर उसके सपोर्ट में करीब दस से 12 एमएम की छड़ देकर बगल से ढाला जा रहा है. काम शुरू करने से पहले पुल निर्माण निगम के वरीय परियोजना अभियंता बीके सिंह ने बताया था कि क्रैक हुए हिस्से को जैक से ऊपर उठाना होगा. इसके लिए रास्ता बंद करना जरूरी है. सुबह आठ बजे से 12 बजे रात तक तेजी से काम करने की बात बतायी गयी थी. शुक्रवार को वहां आठ मजदूर व तीन राज मिस्त्री उत्तरी छोर पर मरम्मत कार्य में लगे थे. जबकि पुल के दक्षिण ओर से मध्यम में दो मजदूर बांस बल्ला लगा रहे थे. मात्र दस मजदूर व तीन राजमिस्त्री ही काम कर रहे थे.
ऐसे कार्यो में बाहर से काम नहीं दिखता: पुल निर्माण निगम के वरीय परियोजना अभियंता बीके सिंह ने बताया, डैमेज कंट्रोल में सिंपल सीमेंट ही नहीं इसमें कीमती केमिकल मिला कर काम किया जाता है. यह काम बाहर कम दिखता है, लेकिन खर्च अधिक होता है. गुणा करके इसकी राशि तय नहीं की जाती है. क्रैक डैमेज व डिफेक्ट के आधार पर राशि तैयार की जाती है. टोटल कार्यो के हिसाब से किस्तवार भुगतान किया जाता है. तीन माह में इस कार्य को पूरा कर लेना है. शनिवार को कार्य देखने कंपनी की एक टीम पटना से पहुंच रही है. इस तरह के काम करने वाली कंपनी की संख्या भी कम है. जो रिपयेरिंग में कम रुचि लेते हैं, इसलिए उनकी मोनोपॉली है.