जमालपुर. आध्यात्मिक केंद्र आनंद संभूति मास्टर यूनिट अमझर में आयोजित आनंद मार्ग के विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत आध्यात्मिक ऊर्जा और उत्साह से परिपूर्ण रहा. प्रातः कालीन सत्र की दिव्यता साधकों द्वारा गुरु सकाश पांचजन्य और सामूहिक साधना की गयी. जिससे संपूर्ण वातावरण आध्यात्मिक चेतना से गूंज उठा. धर्म महासम्मेलन के दूसरे दिन मार्गियों और संन्यासियों के साथ ही गृहस्थ की संख्या में वृद्धि दिखी. आनंद मार्ग प्रचारक संघ के नवनियुक्त एवं निर्वाचित भुक्ति प्रधान, उप भुक्ति प्रमुख, इकाई सचिव और आचार्य एवं तत्विकों की बैठक संघ के महासचिव ने की. जहां केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों ने मार्गदर्शन प्रदान करते हुए संगठन की आगामी कार्य योजनाओं पर विचार विमर्श किया. बैठक में 2025 से 2018 तक के सत्र के लिए एक व्यापक रोड मैप तैयार किया गया. जिसमें संगठन के विस्तार आध्यात्मिक चेतना के प्रसार एवं सेवा कार्यों की दिशा को सुदृढ़ करने पर विशेष बल दिया गया. बताया गया कि यह बैठक संगठन की उन्नति एवं समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगी.
आनंद मार्ग केवल व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं
पुरोध प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने पौराणिक धर्माचार्य और आनंद मार्ग की तृतीय स्तरीय साधना विषय पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि आज से लगभग 14 वर्ष पूर्व शंकराचार्य की अध्यक्षता में ब्राह्मणों का एक अधिवेशन आयोजित किया गया था. इसे ही सनातन और पौराणिक धर्म कहा गया. बौद्ध धर्म और जैन धर्म के साथ पौराणिक धर्म की धारा भी प्रवाहित हो रही थी. सनातन धर्म में पांच प्रमुख आचार परंपराएं हैं. जिनमें शाक्ताचार, वैष्णवाचर, शैवाचार, गणपतयाचार और सौराचार शामिल है. इन सभी शाखों में कोई भी एक दूसरे की पूरक नहीं है. सभी एक दूसरे से भिन्न और स्वतंत्र साधना की परंपराएं हैं. आध्यात्मिकता के नाम पर यह संप्रदाय में परिवर्तित हो गयी सनातन धर्म समस्त आर्य संस्कृति को समाहित करने का प्रयास था. आनंद मार्ग की साधना साधक का ध्येय परम पुरुष है. यहां त्रिस्तरीय साधना एक दूसरे के पूरक और संबंधित हैं. उन्होंने कहा कि आनंद मार्ग केवल व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं है. इसका उद्देश्य समाज को भी आत्म उन्नति की ओर प्रेरित करना है. समाज में जो लोग मानसिक रूप से अविकसित हैं. उन्हें सही मार्ग दिखाना आवश्यक है. मानसिक बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति अवंत व्यक्तियों की सहायता कर उन्हें उन्नति के मार्ग पर ला सकते हैं. पुरोधा प्रमुख ने बताया कि जीवन में दो प्रकार के कम होते हैं. एक संस्कार मूलक कर्म तो दूसरा प्रत्यय मूलक कर्म. संस्कार मूलक कर्म वह है जो हमारे अतीत के कर्मों का परिणाम होते हैं. जबकि प्रत्यय मूलक कर्म हमारी स्वतंत्र इच्छा और संकल्प के लिए किए जाते हैं. आनंद मार्ग शाक्त, वैष्णव और शैव तीनों तत्वों का समन्वय करता है. यह न केवल आत्म विकास बल्कि समाज के कल्याण का भी मार्ग है. साधना का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत मुक्ति नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता की चेतन को उच्चतर स्तर तक पहुंचना है. मौके पर केंद्रीय धर्म प्रचार सेक्रेटरी आचार्य प्रणवेशानंद अवधूत आचार्य, अमलेशानंद अवधूत, आचार्य अभीरामानंद अवधूत, आचार्य कल्याणमित्रानंद अवधूत, आचार्य मधुव्रतानंद अवधूत, आचार्य विमलानंद अवधूत, आचार्य रामेंद्रआनंद अवधूत, आचार्य एब्निद्रानंद अवधूत, आचार्य सत्य देवानंद अवधूत आदि मौजूद थे.
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