मुंगेर : मुंगेर शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक गंगा के किनारे हो रहे अवैध खनन से नदी का तंत्र पूरी तरह से जहां प्रभावित हो रहा है. वहीं दूसरी ओर चिमनियों के धुएं से शहर में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है. हैरतंगेज पहलू तो यह है कि एक ओर जहां सेहत को नुकसान पहुंच रहा है. वहीं दूसरी ओर इन सारी चीजों से प्रशासन बेखबर है. बदहाली तो यह है कि जिस प्रकार गंगा किनारे अवैध रूप से मिट्टी की कटाई हो रही है वह कई बार जानलेवा भी साबित हो चुका है.
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अवैध खनन के कारण बिगड़ा नदी का तंत्र
मुंगेर : मुंगेर शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक गंगा के किनारे हो रहे अवैध खनन से नदी का तंत्र पूरी तरह से जहां प्रभावित हो रहा है. वहीं दूसरी ओर चिमनियों के धुएं से शहर में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है. हैरतंगेज पहलू तो यह है कि एक ओर जहां सेहत को नुकसान […]
मुंगेर में गंगा के किनारे संचालित ईंट-भट्ठों से मिट्टी और रेत का उत्खनन हो रहा है. खनन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मुंगेर शहरी क्षेत्र में गंगा किनारे 23 ईंट-भट्ठे चल रहे हैं. जबकि मुफस्सिल क्षेत्र से लेकर घोरघट तक 25 ईंट-भट्ठों का संचालन हो रहा है. गंगा की मिट्टी व पानी की प्रचुरता के कारण इसके किनारे ईंट-भट्ठा आबाद हुए. ईंट-भट्ठों का आबाद होना अपने आप में अनियोजित विकास की कहानी बयां करने के लिए काफी है. मुंगेर जिले में गंगा का प्रवाह हेमजापुर से बरियारपुर के घोरघट तक है.
पर्यावरण पर संकट
पर्यावरण पर काम करने वालों के मुताबिक ईंट भट्ठा के चिमनियों से विषैले गैसों का उत्सर्जन होता है. चिमनियों में एकत्रित हो जाने वाले सूक्ष्म कण, चिमनियों में प्रयुक्त ईंधन के अवशेष एवं उद्योगों में काम में आये हुए जल का बहिर्स्राव गंगा को प्रदूषित कर रहा है. कार्बन डाइ ऑक्साइड हवा में ज्यादा पाये जाने की सबसे बड़ी वजह शहर के चारों तरफ बेतरतीब ढंग से चलने वाले ईंट भट्ठे हैं. इनकी चिमनी से निकलने वाले काले धुएं में सबसे ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड पाया जाता है जो सीधे कोयला जलने से होता है. इससे ईंट-भट्ठा वाले क्षेत्र के आबादी को भारी नुकसान हो रहा है. गंगा के किनारे हेमजापुर, सिंधिया, फरदा, सुंदरपुर, हेरूदियारा, दोमंठा, शिवनगर, बेलवाघाट, लाल दरवाजा, कलारामपुर, एकाशी, फुलकिया, घोरघट में ईंट-भट्ठे चल रहे हैं.
पांच किलोमीटर की परिधि प्रतिबंधित
केंद्रीय जल मंत्रालय का स्पष्ट निर्देश है कि गंगा के दोनों ओर पांच किलोमीटर की परिधि में खनन पर पाबंदी है. अवैध खनन करने वालों पर पांच साल तक की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है. सबसे अहम सवाल यह है कि आखिर ये ईंट-भट्ठे किस प्रकार गंगा किनारे चल रहे हैं और इसकी अनुज्ञप्ति किन मानकों के आधार पर दिया जाता है. नदी पर काम करने वाले रंजीव का कहना है कि नियमों की अनदेखी तो हो ही रही है. साथ ही संचालक दोहन कर धन तो अर्जित करते हैं. लेकिन सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हैं. ईंट-भट्ठे खत्म होने के बाद भी ये जमीनें उपयोग के लायक नहीं रह जाती. ऐसे सवाल को वे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं.
शहरी क्षेत्र में गंगा किनारे चल रहे 23 ईंट भट्ठे
कहते हैं पर्यावरणविद
आरडी एंड डीजे कॉलेज के पर्यावरण विज्ञान के प्राध्यापक प्रो. शब्बीर हसन का कहना है कि अवैध खनन के कारण जहां नदी का तंत्र प्रभावित होता है. वहीं दूसरी ओर भूस्खलन की समस्याएं ज्यादा बढ़ेगी. इतिहास गवाह है कि हमारी संस्कृति और सभ्यता का विकास नदी घाटी से हुआ है. मौजूदा विकास के मॉडल ने इस संस्कृति को ध्वस्त कर दिया है और प्राकृतिक संसाधन मिट्टी, पानी और बयार तीनों को उपयोग के बदले उपभोग की वस्तु बना दिया है. जिसका नतीजा हमारे सामने है.
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