संगोष्ठी में साहित्यकारों ने रखी अपनी बातप्रतिनिधि, मुंगेरशहर के बेलन बाजार में गंगोत्री के तत्वावधान में ”सम्मान ग्रंथि के शिकंजे में छटपटाता हिंदी साहित्य” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ शिवचंद्र प्रताप ने की. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हिंदी साहित्य सम्मान ग्रंथि के शिकंजे में पड़ कर छटपटा रहा है. क्योंकि जब साहित्य की रचना सम्मान पाने की दृष्टि से होगी, तो उसमें नैसर्गिकता का सर्वथा अभाव होगा. सौंदर्य को बनावटी शृंगार की जरूरत नहीं होती है, उसी प्रकार जो वास्तविक साहित्यकार हैं उन्हें सम्मान की लिप्सा नहीं होती. उन्होंने कहा कि अब यह रोग राजनीति से सरक कर साहित्य में आ गया है. टेंसले ने अपनी पुस्तक न्यू साइकोलॉजी में इसे इंफरीयरिटी कॉम्प्लैक्स कहा है. यह अहम और आत्महीनता की ग्रंथि का विस्फोट है. साहित्यकार होने के लिए अच्छा व्यक्ति होना आवश्यक है. एक किसान के खेत में चर रहे ऊंट को देख कर सियार ने कहा कि आप अति सुंदर है तो ऊंट ने कहा कि आप का स्वर अति मोहक है. बस सियार हुआं-हुआं करने लगा. किसान को पता लगा, फिर दोनों की खबर ली. ऐसे साहित्यकारों की ऐसी ही दशा होनी है. मौके पर कैलाश राय, ज्योति कुमारी सिन्हा, डॉ केके बाजपेयी, डॉ पूनम रानी, सुनील सौरभ, निधि शेखर, शिवनंदन सलिल आदि मौजूद थे.
सम्मान ग्रंथि के शिकंजे में छटपटा रहा हिंदी साहित्य
संगोष्ठी में साहित्यकारों ने रखी अपनी बातप्रतिनिधि, मुंगेरशहर के बेलन बाजार में गंगोत्री के तत्वावधान में ”सम्मान ग्रंथि के शिकंजे में छटपटाता हिंदी साहित्य” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ शिवचंद्र प्रताप ने की. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हिंदी साहित्य सम्मान ग्रंथि के शिकंजे में पड़ कर […]
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