मधुबनी : न्यायालय के आदेश बिना ही जिला पदाधिकारी द्वारा विचाराधीन कैदी को मंडलकारा से निकालने की अनुमति देना महंगा पड़ा. इसे गंभीरता से लेते हुए अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश छह प्रदीप कुमार शर्मा ने जिला पदाधिकारी एवं कारा अधीक्षक से स्पष्टीकरण देने का आदेश जारी किया है. न्यायालय ने जिला पदाधिकारी को सात […]
मधुबनी : न्यायालय के आदेश बिना ही जिला पदाधिकारी द्वारा विचाराधीन कैदी को मंडलकारा से निकालने की अनुमति देना महंगा पड़ा. इसे गंभीरता से लेते हुए अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश छह प्रदीप कुमार शर्मा ने जिला पदाधिकारी एवं कारा अधीक्षक से स्पष्टीकरण देने का आदेश जारी किया है.
न्यायालय ने जिला पदाधिकारी को सात दिनों में तथा मंडल कारा अधीक्षक को सदेह उपस्थित होकर तीन दिनों में स्पष्टीकरण का जवाब देने का आदेश दिया है. साथ ही कहा है कि किस परिस्थिति में न्यायालय के कार्य में हस्तक्षेप किया गया है.
क्या है मामला
मामला न्यायालय में चल रहे सत्र वाद संख्या 471/12 से है. इसमें अभियुक्त देवेंद्र यादव मारपीट व आर्म्स एक्ट के मामले में मंडल कारा में बंद था. उक्त विचाराधीन कैदी का पिता का देहांत 12 दिसंबर 15 को हो गया था. जिसे मुखाग्नि देने के लिए जिला पदाधिकारी द्वारा 13 से 15 दिसंबर तक अनुमति प्रदान की गयी थी.
मामले का हुआ खुलासा
उक्त मामले का खुलासा तब हुआ जब विचाराधीन कैदी देवेंद्र यादव की ओर से न्यायालय में 26 दिसंबर 15 तक के लिए जमानत पर रहने के आशय का आवेदन दाखिल किया गया. न्यायालय द्वारा आवेदन के सुनवाई के दौरान मामले का खुलासा हुआ. न्यायालय ने जिला पदाधिकारी एवं मंडल कारा अधीक्षक के न्यायालय के कार्य में हस्तक्षेप मानते हुए स्पष्टीकरण देने का आदेश जारी किया. जिससे न्यायालय कार्य में हस्तक्षेप करने के विषय में माननीय उच्च न्यायालय को अवगत कराया जाये.