मधुबनी : बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण जिले के सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवा स्टोर शुरू नहीं हो सका है. सात साल पूर्व ही भवन बनकर तैयार हो गया, लेकिन अभी तक मरीजों को इस भवन से जेनरिक दवा नहीं मिल रही है.
लाखों की लागत से जिले के सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवा स्टोर का निर्माण हुआ था, लेकिन इसका लाभ गरीबों को नहीं मिल रहा है. इन दिनों हाल यह है कि ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में मरीजों को ये दवाएं नहीं
क्या है फायदा
जेनरिक दवा की ब्रांडेड दवा से दस गुणा कम कीमत होती है, लेकिन असर एक जैसा होता है. सरकार ने कई बार डॉक्टरों को जेनरिक दवा प्रेसक्राइब करने का फरमान जारी किया, लेकिन सरकार का आदेश धूल चाटता रहा. हालत यह है कि ब्रांडेड दवा मरीजों के प्रेसकिप्सन की शोभा बढ़ा रही है. जेनरिक दवा दुकान में ताला लटक रहा है.
गरीब जेनरिक की जगह महंगी व मल्टी नेशनल कंपनी की दवा खरीदने को मजबूर हैं. जेनरिक दवा नहीं मिल पाने के कारण कई मरीजों के जान पर संकट मंडरा रहा है.
ब्रांडेड दवा आर्थिक बोझ
राज्य स्वास्थ्य सचिव ने पूर्व के सिविल सर्जन को पत्र लिखकर कहा था कि सरकारी अस्पतालों में ब्रांडेड दवा लिखने वाले डॉक्टरों के विरुद्ध कार्रवाई होगी. इसके लिए सरकार प्रेसकिप्सन ऑडिट रिपोर्ट लागू की है.
अभी जिले में प्रेसकिप्सन ऑडिट रिपोर्ट का काम चल रहा है. सरकार का मानना है कि ब्रांडेड दवा को प्रेसक्राइब करने से मरीजों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता है.
निजी स्वास्थ्य संस्थान को भी निर्देश
निजी डॉक्टरों, निजी नर्सिंग होम, निजी स्वास्थ्य संस्थानों को भी निर्देश दिया गया था कि जनहित में वे जेनरिक दवा ही प्रेसक्राइब करें. सरकार ने प्रचार प्रसार कर जेनरिक दवा के प्रति जागरूकता लाने का भी निर्देश दिया था. सरकार का यह भी मानना है कि कभी कभी जरूरत से अधिक ब्रांडेड दवा मरीजों को प्रेसक्राइब कर दिया जाता है.
इससे मरीजों के शरीर पर साइड इफेक्ट होता है. राज्य स्वास्थ्य समिति ने मरीजों के आर्थिक हितों की रक्षा करने को कहा था. मानना है कि जेनरिक व ब्रांडेड दवा दोनों के इंग्रेडियेंट व केमिकल प्रोपर्टीज के मामले में दोनों में रोग के निदान की क्षमता है.
क्यों नहीं मिली जेनरिक दवा
जेनरिक दवा स्टोर तो लाखों की लागत से जिले में सदर अस्पताल सहित अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बना दी गयी, लेकिन इसमें दवा की आपूर्ति क्यों नहीं की गयी यह अभी भी पहेली बनी हुई है. जब जेनरिक दवा की आपूर्ति नहीं करनी थी तो लाखों रुपये सरकार के आखिर किस कारण से बरबाद हुए.
इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी दे पाने में असमर्थ हैं. जिला स्वास्थ्य समिति भी इसपर चुप्पी साधे हुुई है. खामियाजा भुगत रहे हैं गरीब मरीज. अमीर तो ब्रांडेड दवा खरीद कर अपनी जान बचा लेते हैं, लेकिन गरीब जायें तो कहां जायें. कौन सुनगा उनकी फरियाद. जेनरिक दवा स्टोर गरीब मरीजों का मुंह चिढ़ा रहा है.
जेनरिक दवा स्टोर में कब दवाओं की आपूर्ति होगी यह स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी नहीं जानते हैं. गरीब मरीजों का आरोप है कि साजिश के तहत गरीबों को जेनरिक दवा नहीं दी जा रही है. क्योंकि इसके आने से कई ब्रांडेड कंपनी की दवा की बिक्री को गहरा झटका लग सकता है.
क्या कहते हैं अधिकारी
सिविल सर्जन डाॅ नरेंद्र भूषण ने कहा कि वे मामले की जांच करेंगे. जांचोपरांत इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई की जायेगी. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सचिव का जो भी आदेश होगा उसका हर हाल में पालन किया जायेगा.