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बेंच-डेस्क के लिए तरस रहे बच्चे

मधुबनीः बच्चे बेंच डेस्क के लिये तरस रहे हैं. पर सर्वशिक्षा अभियान द्वारा बेंच डेस्क उपलब्ध नहीं कराया जा सका है. छात्र-छात्रएं फर्श पर नीचे बैठ कर पढ़ने लिखने को मजबूर हैं. डीपीओ सर्वशिक्षा अभियान लाचार है. शहर में डीपीओ स्थापना कार्यालय से दो मिनट के वाकिंग डिस्टेंस पर है हनुमान मंदिर से सटा प्राथमिक […]

मधुबनीः बच्चे बेंच डेस्क के लिये तरस रहे हैं. पर सर्वशिक्षा अभियान द्वारा बेंच डेस्क उपलब्ध नहीं कराया जा सका है. छात्र-छात्रएं फर्श पर नीचे बैठ कर पढ़ने लिखने को मजबूर हैं. डीपीओ सर्वशिक्षा अभियान लाचार है.

शहर में डीपीओ स्थापना कार्यालय से दो मिनट के वाकिंग डिस्टेंस पर है हनुमान मंदिर से सटा प्राथमिक विद्यालय. यहां गंदे फर्श पर नीचे बैठ क र बच्चे बच्चियां पढ़ती लिखती है. क्लास रूम में चावल, दाल की बोरियां भरी है. बच्चों को नीचे बैठने में भी दिक्कत होती है.

क्लास रूम बन जाता है रसोई गृह सह भंडार गृह. कुछ ही दूर आगे जाने पर तिलक चौक के समीप है उर्दू मध्य विद्यालय. यह प्लास्टिक सीट के नीचे चल रहा है. बरसात में बच्चों को छुट्टियां दे दी जाती है.

यहां मिड डे मील नहीं बनता है. बच्चे के ड्रॉप आउट होने की संभावना है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम का यहां पालन नहीं होता है. शहर में एक ऐसा भी मिडिल स्कूल है जो गैस गोदाम के समीप है. बच्चे डरे सहमे रहते हैं. एक ऐसा भी प्राथमिक स्कूल है शहर में जिसमें सिर्फ सात बच्चे नामांकित हैं. सुरतगंज के एक प्राथमिक विद्यालय में एक ही कमरे में पांच कक्षा की पढ़ाई होती है. त्रहिमाम की स्थिति है.

शहर के प्रतिष्ठित सूड़ी मिडिल स्कूल में कक्षा 7, 8 की छात्रओं को भी बेंच डेस्क नसीब नहीं है. त्रहिमाम की स्थिति है. कहीं शौचालय नहीं है तो कहीं चापाकल बंद पड़ा है. नोनिया टोल के प्राथमिक स्कूल में भी बेंच डेस्क नहीं है. बलुआ गांधी चौक प्राथमिक स्कूल में भी बेंच डेस्क नहीं है. पूर्व के माध्यमिक शिक्षा अभियान के डीपीओ को तत्कालीन डीइओ श्रीराम सिंह के समय में सर्वशिक्षा अभियान का डीपीओ बना दिया गया. पर प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति में सुधार नहीं हो सका है. शिक्षक, शिक्षिकाओं और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के बच्चे निजी स्कूल में पढ़ते हैं.

शहर में निजी स्कूलों का क्रेज सिर चढ़ कर बोल रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनू कुमार का कहना है कि सरकारी स्कूलों का सर्वे करा कर यह जानकारी लेनी चाहिये कि कितने वैसे शिक्षक शिक्षिकाएं हैं जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह के सर्वेक्षण से सरकारी स्कूलों की हालत स्पष्ट हो जायेगी.

वहीं अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ता आशीष कुमार अंशु, राजीव कुमार का कहना है कि जब शिक्षक, शिक्षिकाओं के बच्चे बच्चियां ही सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तो आम लोगों को कैसे प्रेरणा मिलेगी.

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