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एक युग के समान बीते दहशत के 48 घंटे
मधुबनी : विगत शनिवार के दिन 11:42 से आ रहे भूकंप के तेज झटके ने लोगों को दहशत में रखा है. हर आदमी के लिए शनिवार से लेकर सोमवार के दिन 11:42 बजे तक का 48 घंटा मानों एक युग के समान बीता है. हर पल लोगों के लिए भारी गुजरा है. पल-पल बिताना लोगों […]
मधुबनी : विगत शनिवार के दिन 11:42 से आ रहे भूकंप के तेज झटके ने लोगों को दहशत में रखा है. हर आदमी के लिए शनिवार से लेकर सोमवार के दिन 11:42 बजे तक का 48 घंटा मानों एक युग के समान बीता है.
हर पल लोगों के लिए भारी गुजरा है. पल-पल बिताना लोगों के लिए कष्टकर था. हर परिवार इस त्रसदी को झेला है. कहीं पर लोगों ने घर के बाहर शामियाना में अपना यह 48 घंटा गुजारा है तो कोई भागमभाग करते हुए. किसी का परिवार काठमांडू व नेपाल के अन्य भागों में है जो अपने परिवार की जानकारी नहीं होने से बेचैन है. हमने शहर के छह परिवारों से यह जानने की कोशिश की कि उनके 48 घंटे कैसे गुजरे.
खाना छोड़ भागे बाहर
मधुबनी एलआइसी के डीओ डी झा बताते हैं कि शनिवार के दोपहर से अब तक एक एक पल उनके परिवार के लिए भारी गुजरा है. पक्का मकान है. हर संभव घर को अधिक से अधिक मजबूत बनाने की कोशिश की है. फिर भी भूकंप के हल्के झटके ने परिवार के हर सदस्य को घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया.
कई बार खाना खाने के लिए बैठे. इसी दौरान भूकंप के झटके आ जाते थे. इससे न सिर्फ खाना छोड़ देता बल्कि बदहवास हो परिवार के हर सदस्य को लेकर बाहर निकलता. एक पल गुजारना असंभव हो गया.
न घर न बाहर, कहीं भी राहत नहीं
महिला कॉलेज रोड के सामने की कॉलोनी के अशोक ठाकु र बताते हैं कि शनिवार को भूकंप के झटके से संभल कर घर गया कि अचानक एक के बाद एक तेज झटके ने मानों कयामत ढा दी.
कोई भी बच्चा घर के अंदर नहीं जाना चाहता था. हम खुद भी उन्हें घर से दूर ही रहना चाहते थे, लेकिन बारिश की बूंदे मानों इस प्रलय को और अधिक भयावह बना दिया था. न तो घर में रह सकते थे और न ही बाहर में ही रहना संभव था. ऐसे में पूरा परिवार रह रह कर भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते और उनसे प्रलय से लोगों को बचाने की प्रार्थना करता. जब-जब भूकंप के झटके मजसूूस होता तब-तब बदहवाश हो नंगे पांव बच्चों को लेकर घर से बाहर निकलता. कोई भी खाना नहीं खा रहा था.
आंसुओं से भरी रही आंखें
बड़ा बाजार निवासी विष्णु राउत एवं उनके परिवार का 48 घंटा रो-रोकर गुजरा है. एक एक पल इनके परिवार के लिए भारी रहा. न तो किसी ने खाना खाया और न ही किसी के आंखों में नींद. दरअलस विष्णु राउत की छोटी बहन सुरीता साह नेपाल की पूर्व दूरसंचार मंत्री हैं. जो इस समय भी काठमांडू में अपने परिवार के साथ हैं. शनिवार को काठमांडू में भयानक भूकंप की जानकारी इनके परिवार को जैसे ही मिली. घर के लोगों की बेचैनी बढ़ गयी.
बताते हैं कि इसके बाद से लगातार अपनी बहन की कुशलता की जानकारी लेने के लिए फोन से संपर्क करने की कोशिश करते रहे, लेकिन काठमांडू में दूर संचार व्यवस्था ठप रहने के कारण बहन से संपर्क स्थापित नहीं हो सका. इस कारण 25 अप्रैल के दिन और रात चूल्हा तक नहीं जला. रविवार को जब फोन की घंटी बजी तो लोग फोन की ओर दौरे. फोन पर सुरीता साह की आवाज सुनते ही लोग के सांस में सांस आयी, लेकिन इसके बाद ही फिर फोन कट गया. तब से अब तक कोई जानकारी नहीं मिल सकी है. इससे परिवार के लोगों की बेचैनी बढ़ती जा रही है.
हर आवाज पर होता है भूकंप आने का डर
नोनिया टोल निवासी डॉ अमिताभ कहते हैं कि 48 घंटे का समय पल पल भारी गुजरा है. परिवार का हर सदस्य भूकंप के झटके से सदमे में है. बाहर पानी और अंदर भूकंप के झटके ने बेचैन कर दिया. लोगों की आवाज सुनते ही लगता है कि फिर से भूकंप आ गया है.
घर में कोई आवाज होती है तो लोग बाहर को भागते हैं. श्री अमिताभ कहते हैं कि इस प्रकार के भूकंप के झटके ना तो कभी देखा और ना ही सुना था. एक के बाद एक झटके ने हर किसी के हौसले को पस्त कर दिया. कहा कि शनिवार को दिन भर क ोई भी सदस्य घर नहीं गया. बाजार से बिस्कुट मंगा कर खाया. इसके साथ ही शनिवार को पानी में जहर की अफवाह ने तो पानी भी छीन लिया.
सीढ़ी पर गुजरा समय
पुस्तक विक्रेता प्रसिद्ध व्यवसायी मनीष कु मार बताते हैं कि पिछला 48 घंटा उनके परिवार वालों पर भारी गुजरा है. दूसरे मंजिल पर उनका घर है. घर में डेढ़ साल का बेटा व नौ साल की बेटी है. साथ ही बूढ़ी मां व पत्नी भी है. ऐसे में भूकंप का जब पहला झटका आया तो घर में पत्नी छाया चौधरी व बेटा ही था. पत्नी को भूकंप की जानकारी नहीं हुई. जब घर में रखा सिलेंडर गिर गया और अन्य सामान भी गिड़ने लगा तो भूकंप का एहसास हुआ.
फिर बच्चे के बदहवास लेकर दौड़ते हुए नीचे आयी भूकंप थमा तो ऊपर गयी, लेकिन कुछ देर बाद ही उसी तेजी से आये भूकंप ने मानों छाया चौधरी के हौसले को पस्त कर दिया. बच्चे को कलेजे से चिपकाये वह दूसरे मंजिल से नीचे व नीचे से दूसरे मंजिल का सफर तय करती रही. आज भी छाया व मनीष चौधरी अपने बच्चे को लेकर किसी खतरे की आशंका से ग्रस्त है. हल्की से भी खरखराहट होती है तो लगता है कि फिर भूकंप आया. मनीष चौधरी बताते हैं कि शनिवार के बाद से रविवार को वे अपने परिवार के साथ सीढ़ी पर दिन रात बिताया है.
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