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शिक्षा से दूर हो रही प्राचीन भारतीय संस्कृत : कुलपति

मधुबनीः साहित्यिक साधना स्थली का तृतीय वार्षिकोत्सव समारोह का आयोजन गुरुवार को माध्यमिक शिक्षक भवन में आयोजित की गयी. कार्यक्रम का उद्घाटन संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के कुलपति डॉ रामचंद्र झा ने दीप प्रज्वलित कर किया. वार्षिकोत्सव समारोह में हाशिये पर साहित्य विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. अपने उद्बोधन में कुलपति डा. झा ने […]

मधुबनीः साहित्यिक साधना स्थली का तृतीय वार्षिकोत्सव समारोह का आयोजन गुरुवार को माध्यमिक शिक्षक भवन में आयोजित की गयी. कार्यक्रम का उद्घाटन संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के कुलपति डॉ रामचंद्र झा ने दीप प्रज्वलित कर किया.

वार्षिकोत्सव समारोह में हाशिये पर साहित्य विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. अपने उद्बोधन में कुलपति डा. झा ने कहा कि हम अपने प्राचीन भारतीय संस्कृत शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं. प्राचीन काल से ही समाज में साहित्य का विशेष महत्व रहा है. साहित्य से समाज की दशा और दिशा तय होती रही है.

ऐसे में साहित्य अगर हाशिये पर चली जायेगी तो समाज को दिशा कौन देगा. उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में भी साहित्य की रचना होती थी पर अब उसके लेखनी का माध्यम अलग था. समय के साथ ताम्र पत्र, रजक पत्र के बाद लेखन सामग्री के विकास के पश्चात नयी पद्धति पर साहित्य सृजन होने लगा. श्रृत साहित्य का भी अपना अलग स्थान स्थान था. वरिष्ठ पत्रकार विनोद बंधु ने कहा कि संवाद की प्रथा पहले साहित्य एवं साहित्यकारों में था जिसका अभाव इन दिनों दिखने लगा है. साहित्य तो समाज का प्रतिबिंब है साहित्य से समाज सुदृढ़ होता है. समाज के प्रति हमारी जवाब देही कम रही है. साहित्यकारों का आगे आ कर साहित्य की रचना कर सामाजिक धारा से कट रहे युवाओं को समाज व परिवार के प्रति जवाब देही के लिए उन्मुख करना चाहिए.

विषय प्रवेश कराते डीआरडीए के निदेशक सह साहित्यकार रंग नाथ चौधरी ने कहा कि साहित्य हाशिये पर विषय पर मेरी यह मान्यता है कि साहित्य हाशिये पर नहीं गयी है. यह तो समाज का दर्पण है. साहित्य रचना में साहित्यकार मठाधीशों के कारण साहित्य समाज से कटा है. साहित्यकार डा. योगा नंद सुधीर ने कहा कि प्राचीन काल से लेकर अभी तक जितनी भी बड़ी क्रांतियां हुई है उनमें साहित्य एवं साहित्यकारों का अहम योगदान रहा है. 1688 ई. का ग्लोरियस क्रांति, 1779 ई. में फ्रांस की राज्य क्रांति में साहित्य ने ही तख्ता पलट किया था. उन्होंने कहा कि सत्य, शिव व सुंदर का दिग्दर्शन ही साहित्य है. साहित्य का अर्थ व्यापक है.

इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्ष पं. वामदेव झा ने की. मंच संचालन संस्था के सचिव रामेश्वर निशांत एवं उदय जायसवाल ने संयुक्त रूप से किया. साहित्यकार उदय शंकर झा विनोद, डा. इजहार अहमद, डा. पीके झा, प्रो. शुभ कुमार वर्णवाल आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

अमलतास पत्रिका का हुआ विमोचन

साधन स्थली के वार्षिकोत्सव समारोह में संस्था के द्वारा अमलतास नाम पुस्तिका का विमोचन किया गया. कुलपति डा. झा व वरिष्ठ पत्रकार विनोद बंधु ने पुस्तिका का लोकार्पण किया. अमलतास पत्रिका में 8 कहानी एवं 24 कविता का समावेश किया गया है. इस पत्रिका में वामदेव झा, डा. योगानंद सुधीर, प्रो. जगन्नाथ झा, परमानंद रौशन रामेश्वर पांडेय, निशांत श्याम दरिहरे, डा. कुलधारी सिंह सहित कई साहित्यकारों का आलेख छपा है.

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. साहित्य अकादमी पुरस्कृत उदय चंद्र झा विनोद ने कवि गोष्ठी की अध्यक्षता एवं संचालन सतीश साजन ने की. कवि गोष्ठी में उदय जाएसवाल, प्रो. शुभ कुमार वर्णवाल, उदय चंद्र झा सिनेही, जयचंद्र झा, विपिन पांडेय, दीप नारायण विद्यार्थी, भोलानंद झा, दिलीप कुमार झा, रानी झा आदि ने कविता पाठ किया. इस मौके पर माध्यमिक शिक्षक संघ के सचिव बेचन झा, प्रो. सर्व नारायण मिश्र, प्रो. गंगा राम झा सहित सैकड़ों साहित्यकार उपस्थित थे.

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