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आधी आबादी को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं नवेंदु
मधुबनी : बेटियों को पढ़ाने की क्या जरूरत है? शादी के बाद तो उन्हें खाना ही बनाना है. जिनती जल्दी हो सके शादी कर दो, ताकि टेंशन (परेशानी) से मुक्ति मिले. लौकही के पास बेलाही गांव के रहनेवाले नवेंदु कुमार बचपन में ये बातें अक्सर सुनते थे. तभी इन्होंने ठान लिया था कि बड़े होने […]
मधुबनी : बेटियों को पढ़ाने की क्या जरूरत है? शादी के बाद तो उन्हें खाना ही बनाना है. जिनती जल्दी हो सके शादी कर दो, ताकि टेंशन (परेशानी) से मुक्ति मिले. लौकही के पास बेलाही गांव के रहनेवाले नवेंदु कुमार बचपन में ये बातें अक्सर सुनते थे.
तभी इन्होंने ठान लिया था कि बड़े होने पर हम कुछ ऐसा करेंगे, जिससे बच्चियों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके. अब नवेंदु इसी काम में लगे हैं. वो बच्चियों को कंप्यूटर की शिक्षा दे रहे हैं. खुद अमेरिका में रहते हैं, लेकिन स्काइप के जरिये गांव की बच्चियों को कंप्यूटर का ज्ञान दे रहे हैं. इसके लिए उन्होंने बाकायदे कंप्यूटर सेंटर खोला है. इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए वो साल में चार बार अमेरिका से भारत आते हैं.
घर से की शुरुआत
नवेंदु कहते हैं, हमने सुधार की शुरुआत अपने घर से की. चार बहनें थीं, जिन्हें पढ़ाई के लिए दिल्ली व बैंगलुरू जैसे शहरों में भेजा. हालांकि घर के लोग बहनों को पढ़ाई के लिए बाहर भेजने के पक्ष में नहीं थे. कड़ा विरोध कर रहे थे, लेकिन हमने तय किया था कि बहनों को ऐसा बनायेंगे, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें. किसी पर निर्भर नहीं रहें. हुआ भी ऐसा. अब हमारी सभी बहनों की शादी हो चुकी है. वो भी बिना दहेज के. सब आत्मनिर्भर हैं.
नवेंदु बताते हैं कि हमने भी गांव से शुरुआत की थी. मधुबनी नवोदय विद्यालय से पढ़ाई के बाद इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए नागपुर गया. वहां से नौकरी के सिलसिले में मुंबई गया, जहां नौकरी मिली, तो मेरी शादी हो गयी, लेकिन कुछ ही समय में मुङो लगा कि हमारी पत्नी व हमारे रास्ते अलग हैं. मैं समाज सेवा करना चाहता था, जबकि पत्नी ऐसा नहीं चाहती थी.
2005 में मुंबई से लंदन व 2006 में अमेरिका आ गया. इस दौरान मैंने अपनी बहनों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पढ़ाया. बहनों का आत्मनिर्भर बनना हमारे जिंदगी की पहली बड़ी उपलब्धि थी. इसके बाद मैंने सोचा, जब मेरी बहनों की जिंदगी बदल सकती है, तो हम समाज की चालीस हजार बच्चियों की जिंदगी बदल सकते हैं. नवेंदु ने 2013 में द हो स्ट्रीट नाम की संस्था बनायी.
खुला कंप्यूटर सेंटर
नवेंदु ने 2013 में ही गांव के पास लौकही बजार में कंप्यूटर सेंटर खोला, जिसमें इसमें 20 कंप्यूटर, एक टैबलेट व इंटरनेट कनेक्शन है. यहां बिजली की समस्या नहीं हो, इसका प्रबंध किया. पहले बैच में 40 बच्चियों ने कंप्यूटर की पढ़ाई की. इसके बाद दूसरे बैच में 35 बच्चियों ने कंप्यूटर सीखा. अब तीसरा बैच चल रहा है. कंप्यूटर सेंटर में बच्चियां कंप्यूटर के साथ देश-दुनिया के बारे में जानकारी ले रही हैं.
छोड़ दी थी नौकरी
नवेंदु बताते हैं कि समाज सेवा के साथ मेरी जिंदगी भी आगे बढ़ी है. 2009 में आपसी सहमति के आधार पर मेरा पहली पत्नी से तलाक हो गया. इसके बाद मैंने अमेरिकी मूल की लड़की से शादी की, जो मेरे काम में हाथ बंटाती हैं. मैं अपनी संस्था के लिए किसी तरह की मदद नहीं लेता, बल्कि खुद वेतन का तीस फीसदी समाज सेवा पर खर्च करता हूं. नवेंदु अभी बैंक ऑफ अमेरिका में काम करते हैं. 2014 में तीन माह अपने देश में रहने के लिए इन्होंने नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन जब वापस गये, तो इन्हें फिर से नौकरी मिल गयी.
अप्रैल में आयेंगे नवेंदु
नवेंदु हर तीन माह पर भारत आते हैं. कहते हैं कि दिसंबर में गया था. अब अप्रैल में आ रहा हूं. इसी दौरान तीसरे बैच की पढ़ाई पूरी होगी. कंप्यूटर के पढ़ाई के साथ मैं दहेज के खिलाफ काम करना चाहता हूं. समाज में ये बड़ी कुरीति फैली है, जिसे दूर किया जाना चाहिए.
नवेंदु ने अपनी गतिविधियों से देश दुनिया को अवगत कराने के लिए द होप स्ट्रीट की वेबसाइट बना रखी है. साथ ही फेसबुक पर भी एकाउंट खोल रखा है, जिसके 56 हजार से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं.
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