मधुबनी/बेनीपट्टी : पाली उतरवारी टोला की विंदो देवी अपने सास के साथ दस दिन के नवजात को गोद में लिये कभी गांव तो कभी मुख्य सड़क पा आ जा रही है. जैसे ही लोगों से सुना कि पानी कम हो रहा है और घर से पानी निकल रहा है. विंदो अपने बच्चे को गोद में […]
मधुबनी/बेनीपट्टी : पाली उतरवारी टोला की विंदो देवी अपने सास के साथ दस दिन के नवजात को गोद में लिये कभी गांव तो कभी मुख्य सड़क पा आ जा रही है. जैसे ही लोगों से सुना कि पानी कम हो रहा है और घर से पानी निकल रहा है. विंदो अपने बच्चे को गोद में लिये घर की ओर निकली. गांव जानेवाली सड़क पानी की तेज धारा में आधा कट कर बह गयी है.
अब भी रोड पर तेज रफ्तार है. पर इसकी परवाह किये बिना ही वह अपने बच्चे को लेकर गांव गयी. पर गांव में अब भी पानी उसके घर में इतना तो जरूर था कि वह बच्चे को लेकर सुरक्षित नहीं रह सकती थी. दुबारा मायूस होकर वह बेनीपट्टी – बसैठ मुख्य सड़क पर आ गयी. इन दिनों यही सड़क उसका आसरा है. विदों देवी बताती है कि जइ दिन बौआ के छठियार
दस दिन के नवजात
(छठी)
रहई, ओही दिन बाईढ आईब गेलै. छठियार के कुनो बिधो (रश्म) नै होलै. सड़के पर जिंदगी बीत रहल हइ. लोग बजै हइ जे बलू पइन घटलै, सैह देखइ लेल गेल छली. लेकिन पइन कहां घटलै ग. अभियो तो पइन हइ हे” . विंदो देवी के गोद में मात्र दस दिन का नवजात है. बेटी है. बताती हैं कि जिस दिन छठी था घर के लोग अगल बगल के लोगों को खाना खिलाने की तैयारी में थे. उसके लिये भी रश्म पूरा करने की तैयारी हो रही थी. पर अचानक ही बाढ़ आ गयी. सब गांव छोड़ कर भागे.
वह भी भागी. अब तक सड़क पर ही जिंदगी गुजार रही है. उसका पति खुद एक प्लास्टिक खरीद कर लाया.. जिसे सड़क किनारे बांस पर लटका कर रह रहे हैं. किसी ने तो एक पन्नी तक नहीं दिया है. आते जाते लोग केवल बच्चे को देख कर सांत्वना ही दे रहे, जबकि इसी मार्ग से अधिकारियों का काफिला हर दिन निकल रहा है.