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करोड़ों की संपत्ति, सुरक्षा शून्य

सिंहेश्वर मंदिर . न समुचित कर्मचारी की व्यवस्था और न ही उचित प्रबंधन सवा साल से मंदिर न्यास समिति कामचलाऊ पद्धति से काम कर रही है. लिहाजा, मंदिर परिसर में तो कोई व्यवस्था नहीं ही है, साथ ही मंदिर की करोड़ों की चल व अचल संपत्ति की सुरक्षा भी भगवान भरोसे ही है. मधेपुरा : […]

सिंहेश्वर मंदिर . न समुचित कर्मचारी की व्यवस्था और न ही उचित प्रबंधन

सवा साल से मंदिर न्यास समिति कामचलाऊ पद्धति से काम कर रही है. लिहाजा, मंदिर परिसर में तो कोई व्यवस्था नहीं ही है, साथ ही मंदिर की करोड़ों की चल व अचल संपत्ति की सुरक्षा भी भगवान भरोसे ही है.
मधेपुरा : सिंहेश्वर शिव मंदिर की ख्याति सिर्फ बिहार और अपने देश में ही नहीं, बल्कि नेपाल तक फैली है. विडंबना है कि सिंहेश्वर मंदिर का अपेक्षित विकास अब तक नहीं हो पाया है. दूर- दराज के इलाकों में मौजूद मंदिर की संपत्ति को छोड़ भी दें, तो सिंहेश्वर स्थित बाबा की संपत्ति की सुरक्षा सवालों के घेरे में है. आलम यह है कि सिंहेश्वर मंदिर के अरबों की चल अचल संपत्ति की संपूर्ण व्यवस्था भगवान भरोसे है. सवा साल से मंदिर न्यास समिति कामचलाऊ पद्धति पर कार्य कर रही है.
इतने दिनों से नियमित प्रबंधक के बदले फोर्थ ग्रेड कर्मचारी प्रबंधक के प्रभार में है और फोर्थ ग्रेड कर्मचारी ही मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था संभाल रहे हैं. हालांकि, मंदिर न्यास समिति व धार्मिक न्यास परिषद पटना से चतुर्थ वर्गीय कर्मियों के तृतीय वर्गीय कर्मी में प्रोन्नति की राह देख रही है. न्यास के नियम परिनियम के अनुसार किसी भी कर्मचारी की नियुक्ति या प्रोन्नति धार्मिक न्यास परिषद से हो सकती है. विगत वर्ष ही धार्मिक न्यास परिषद पटना से नियमित व्यवस्थापक की नियुक्ति हो चुकी है.
इस संबंध में मंदिर न्यास समिति की 19 फरवरी 2017 को संपन्न बैठक में न्यास के सदस्य डाॅ जयकृष्ण मेहता, प्रो सत्यजीत यादव, मनीष सर्राफ व उपेंद्र रजक ने सचिव के हवाले से कहा था कि प्रभारी व्यवस्थापक उक्त पद के लिए योग्य व सक्षम नहीं है. बैठक में सदस्यों ने कहा था कि पूर्व में ही न्यास समिति की चयन समिति द्वारा नियमित व्यवस्थापक का नाम चयनित था, जिसे बाद में तत्कालीन अध्यक्ष धार्मिक न्यास परिषद ने 26 फरवरी 2016 को नियुक्त करने का आदेश दिये थे.
इसके बाद फिर 08 दिसंबर 2016 को परिषद के तत्कालीन प्रशासक संजय कुमार ने न्यास समिति के सुचारु संचालन के लिए नियमित व्यवस्थापक को प्रभार देने का निर्देश दिये है. सदस्यों ने सहमति प्रदान करते हुए नियमित व्यवस्थापक को प्रभार देने की बात बैठक में मजबूती के साथ रखी थी. इसके बावजूद न्यास समिति कामचलाउ पद्धति पर चल रही है. धार्मिक न्यास परिषद के निर्देशों को अब तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया है.
हैरत करने वाली बात यह है कि बैठक की कार्यवाही पुस्तिका में सारी बातों को गोल मटोल तरीके से प्रस्तुत किया गया. गौरतलब है कि बाबा के पास इतनी अकूत संपत्ति है कि पूरे सिंहेश्वर को ऐसा बनाया जा सकता है कि पूरे देश में इसकी अलग पहचान बनेगी. लेकिन इस दिशा में न न्यास समिति के पास दृष्टिकोण है और न स्थानीय लोगों की ऐसी इच्छाशक्ति है. हालांकि जब से सूबे के मुखिया ने बाबा सिंहेश्वरनाथ के दरबार में माथा टेकना आरंभ किया है तब से स्थिति में काफी बदलाव आया है.
मूर्तियां हैं असुरक्षित
मंदिर में वर्षों पूर्व स्थापित की गयी मूर्तियों के महत्व के बारे में मंदिर के पंडित कलानंद ठाकुर कहते है कि इन मूर्तियों की कीमत करोड़ों में है. मां पार्वती, राम, लक्ष्मण , सीता एवं भरत शत्रुघन की मूर्तियां अष्टधातु की हैं. भगवान श्रीकृष्ण, गणेश कार्तिक, नंदी, लक्ष्मी एवं दुर्गा जी की मूर्ति कीमती पत्थरों की है. आभूषण व्यवसायी पंकज कुमार कहते हैं कि अष्टïधातु की मूर्ति में सोना, चांदी, तांबा, कांसा, पीतल एवं लोहा आदि की मिश्रण् रहता है. इसके अलावा पुरातात्विक महत्व होने के कारण इन मूर्तियों की कीमत ज्यादा हो जाती है. विशेष शृंगार पूजन के लिए शिव एवं पार्वती की सोना एवं चांदी की मूर्ति है. गौरतलब है कि सिंहेश्वर स्थित चौधरी ठाकुबाड़ी में कुछ वर्ष पहले दीपावली की रात चोरों ने राम, सीता व लक्ष्मण की अष्टधातु की मूर्ति की चोरी कर ली थी.
मंदिर भवन हैं साधारण
बाबा सिंहेश्वरनाथ मनोकामना लिंग हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शृंगि ऋषि ने यहां पूजा आरंभ की थी. यहीं उनका आश्रम भी था. वहीं किंवदंतियों के अनुसार अज का रूप लेकर अज्ञातवास पर गये भगवान शिव को भगवान विष्णु तथा इंद्र ने उन्हें ढूंढ तो लिया लेकिन शृंग पकड़ते ही वे वे विलोपित हो गये. उसकी शृंग की स्थापना भगवान विष्णु ने इस स्थान पर की थी. ऐसे गौरवशाली मंदिर का भवन देख कर किसी साधारण मंदिर होने का अहसास होता है. सत्य यह है कि बाबा सिंहेश्वर के पास सैकड़ों एकड़ भूमि है. सुपौल जिले के सरायगढ़ एवं किशनुपर प्रखंड में भी बाबा सिंहेश्वरनाथ की जमीन है. लेकिन न्यास समिति अपने संपत्ति का उचित प्रबंधन करना तो दूर बाबा के मौजूदा मंदिर के विकास में काम चलाउ पद्धति पर कार्य कर रही है.

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