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निर्णय की कॉपी ले घूम रहे फरियादी

लापरवाही . लोक शिकायत निवारण अधिनियम भी हुआ बेअसर कोई सात महीने तो कोई 55 दिन से निर्णय की प्रति लेकर अंचल कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं, अब तक नहीं मिला जमीन पर दखल. 1976 में मिला भूहदबंदी से जमीन का परचा, 2016 से जारी है भूमाफियाओं का कहर, 30 दिन के भीतर दिलाना […]

लापरवाही . लोक शिकायत निवारण अधिनियम भी हुआ बेअसर

कोई सात महीने तो कोई 55 दिन से निर्णय की प्रति लेकर अंचल कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं, अब तक नहीं मिला जमीन पर दखल. 1976 में मिला भूहदबंदी से जमीन का परचा, 2016 से जारी है भूमाफियाओं का कहर, 30 दिन के भीतर दिलाना था दखल.
मधेपुरा : लोगों की शिकायत तय समय पर दूर हो इसलिए बिहार सरकार लोक शिकायत निवारण अधिनियम लेकर आयी. इसके द्वारा तय समय पर निर्णय भी दिये जाने लगे, लेकिन इन निर्णय को अमलीजामा पहनाने में अधिकारियों का रवैया आड़े आ रहा है. जमीन की बेदखली के जिन मामलों की सुनवाई कर अंचल स्तर पर ही निष्पादित करना है. ऑपरेशन दखल देहानी के तहत परचाधारियों को जमीन पर दखल दिलाना है. उन मामले में भी अंचल या प्रशासन स्तर पर कार्रवाई नहीं होने पर जब परचाधारी लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर वहां से प्राप्त निर्णय के अमलीजामा के लिए बदस्तूर भटक रहे हैं.
पहला मामला भूहदबंदी के तहत प्राप्त जमीन से बेदखल करने का है. इस मामले में परिवादी द्वारा 23 दिसंबर 2016 को अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी मधेपुरा के समक्ष परिवाद पत्र दाखिल किया. उन्हें तीन मार्च 2017 को इस कार्यालय द्वारा न्याय मिल गया. लेकिन जमीन पर दखल आज भी नहीं मिला है. जबकि निर्णय की तिथि से 30 दिन के भीतर सीओ मधेपुरा को दखल दिलाना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था. तीन मार्च के इस फैसले को आज 55 दिन बीत चुके हैं. कार्रवाई सिफर है.
वहीं दूसरा मामला भी सदर अंचल से जुड़ा हुआ है. मधेपुरा अंचल के मौजा महेशुआ टोला बिरैली में बासगीत पर्चा की जमीन पर बेदखली की शिकायत लेकर परिवादी सत्तो मेहता ने अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के कार्यालय में 26 जुलाई 2016 को फरियाद की. इस मामले में नौ अगस्त, 19 अगस्त, दो सितंबर को सुनवाई के बाद नौ सितंबर 2016 को लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा परिवादी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 15 दिन के भीतर अमीन से पैमाइश करा कर परचाधारी को दखल दिलवाने सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया. 26 सितंबर को अमीन द्वारा नापी कर रिपोर्ट भी सौंप दी गयी. रिपोर्ट में अमीन ने स्पष्ट किया है कि परचा की जमीन में से पांच हजार 40 वर्ग कड़ी जमीन गणेश मेहता द्वारा जबरन कब्जा कर फूस-पन्नी का घर बनाकर रखा है. इसके बाद भी आदेश के सात माह बीतने के बाद भी परचाधारी को जमीन का कब्जा नहीं दिलाया जा सका.
परिवादी सुंदरी देवी व चंदेश्वरी पासवान द्वारा संयुक्त परिवाद पत्र दायर किया गया कि मौजा तुलसीबाड़ी, अंचल मधेपुरा में भूहदबंदी पर्चा के माध्यम से दोनों को एक एक एकड़ जमीन प्राप्त है. लेकिन विगत 10 महीने से कुछ भूमाफिया द्वारा बार बार विवाद खड़ा कर जमीन हड़पने तथा बेदखल किया जा रहा है. इस मामले में लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा 10 जनवरी, 24 जनवरी, सात फरवरी, 21 फरवरी, 28 फरवरी को सुनवाई की गयी. सुनवाई के दौरान राजस्व कर्मचारी,
लोक प्राधिकार बनाये गये सीओ की ओर से उपस्थित हुए, लेकिन किसी भी तरह का प्रतिवेदन अप्राप्त रहा. परचा व अन्य कागजात के आधार पर लोक शिकायत निवारण कार्यालय द्वारा सीओ को एक माह के भीतर परिवादीगण को परचा वाली जमीन पर दखल दिलाना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया. निर्णय की कॉपी के साथ परिवादीगण द्वारा सीओ कार्यालय को अलग से भी 16 मार्च को सभी कागजात हस्तगत करा दिये गये. लेकिन 55 दिन बीतने के बाद भी अंचल कार्यालय द्वारा उन्हें कोई सूचना तक नहीं दी गयी.
निर्णय में कहा था नहीं ले रहे हैं सीओ अभिरुचि :
लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष परिवाद में सत्तो मेहता द्वारा सभी कागजात उपलब्ध कराये गये. कागजतों के अवलोकन के पश्चात अनुमंडल लोक शिकायत पदाधिकारी ने निर्णय दिया कि इस मामले में लोक प्राधिकार बनाये गये अंचल अधिकारी महज नौ अगस्त को उपस्थित हुये. उनके द्वारा न ही कोई पक्ष रखा गया न ही हाजिरी दी गयी. परिवारदी द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र के साथ संलग्न वासगीत पर्चा में स्पष्ट है कि सत्तो मेहता के पिता को 15 अप्रैल 1978 में पांच डिसमल जमीन का पर्चा मिला. उस जमीन पर परिवादी पिता के जमाने से ही घर बनाकर रह रहा है और जमीन की मालगुजारी भी दे रहा है.
इन दिनों भूस्वामी के पोता द्वारा पर्चा वाली जमीन पर उपद्रव जारी है. परिवादी ने बेदखली से संबंधित शिकायत पूर्व में अंचल अधिकारी मधेपुरा से की. लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. वर्तमान परिवाद में भी लोक प्राधिकार के लगातार अनुपस्थिति से यह स्पष्ट है कि लोक प्राधिकार कोई अभिरुचि नहीं ले रहे हैं. तत्पश्चात अंचल अधिकारी को स्पष्ट निर्देश दिया गया कि 15 दिन के भीतर अमीन से पैमाइस कराकर पर्चा वाली जमीन को सीमांकित करते हुए परचाधारी का दखल दिलवाना सुनिश्चत करें. यह भी निर्देश दिया गया कि किसी के द्वारा अनाधिकार बेदखल किया जाता है या बेदखल करने का प्रयास होता है तो नियमानुसार कार्रवाई भी करें.
कहते हैं परिवादी : पहले मामले के परिवादी सुंदरी देवी व चंदेश्वरी पासवान ने कहा कि लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत निर्णय आने पर यह आशा जगी कि तय समय पर जिस तरह परिवाद का निपटारा हुआ उसी तरह अंचल कार्यालय भी उन्हें दखल दिला देगा. अब गरीबों की आवाज दबेगी नहीं. पर 50 दिन बीत जाने के बाद जब नतीजा ढाक के तीन पात है तो लगता है कि सब बेकार है. गरीबों की बात कोई नहीं सुनेगा. आखिरकार परचाधारी को उसके जमीन पर दखल दिलाने से महत्वपूर्ण क्या मामला हो सकता है.
दूसरे मामले के परिवादी सत्तो महतो कहते हैं निर्णय के बाद बड़ी उम्मीद जगी. एक बारगी अंचल अमीन द्वारा जमीन की नापी भी 26 सितंबर को कर दी गयी. लेकिन जमीन पर दखल नहीं मिल सका. अंचल कार्यालय का चक्कर लगाते लगाते थक चुके हैं. पहले भी कई बार सीओ साहब को आवेदन दिया. पर कार्रवाई नहीं हुयी थी. लोक शिकायत निवारण अधिनियम के बाद लगा कि शिकायत के निवारण की ताकत मिली है. पर लगता है सरकार की इतनी बेहतर व्यवस्था को भी अधिकारी चलने नहीं देंगे.
मामला घूमफिर कर सात माह से वहीं लटका हुआ है. परचाधारी को दखल दिलाना सरकार की नीति है. यह अंचलाधिकारी का कर्तव्य है, उन्हें अगर किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता है, तो अविलंब वे प्राप्त कर सकते हैं. इस मामले में तो लोक शिकायत निवारण प्राधिकार द्वारा भी निर्णय दिया गया है. जल्द ही कार्रवाई की जाय.
संजय कु निराला, सदर एसडीएम

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