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हजारों विस्थापित को आशियाने की आस

कोसी कटाव . पूर्व मुख्यमंत्री का आश्वासन भी बेअसर, लोगों को नहीं मिला अपना घर ढाई दशक से विस्थापित पुनर्वास के लिए कर रहे प्रतीक्षा, लेकिन नहीं हो रही पहल पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने भी तीन माह के भीतर पुनर्वास का दिया था आश्वासन आलमनगर : पूर्व मंत्री ने अपनी प्राथमिकताओं में क्षेत्र के कटाव […]

कोसी कटाव . पूर्व मुख्यमंत्री का आश्वासन भी बेअसर, लोगों को नहीं मिला अपना घर

ढाई दशक से विस्थापित पुनर्वास के लिए कर रहे प्रतीक्षा, लेकिन नहीं हो रही पहल
पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने भी तीन माह के भीतर पुनर्वास का दिया था आश्वासन
आलमनगर : पूर्व मंत्री ने अपनी प्राथमिकताओं में क्षेत्र के कटाव पीड़ितों के पुनर्वास की समस्या दूर करना बताया था. लेकिन इसके बाद उन्हें प्राथमिकता के स्तर पर कोसी नदी के कटाव से विस्थापित हो चुके लोगों का पुनर्वास नहीं मिल पाया है. विधायक नरेंद्र नारायण यादव के विधान सभा क्षेत्र में कोसी नदी के कटाव के कारण एक गांव तो पूरी तरह विलुप्त हो चुका है. वहीं मुरौत गांव विलुप्त होने के कगार पर है. विगत 25 वर्षों में आलमनगर और चौसा प्रखंड के तकरीबन दो हजार सभी अधिक परिवार बेघर हो चुके हैं. इन परिवार के पुनर्वास की आस भी अब धुंधली पड़ गयी है. मुरौत गांव के एक हजार विस्थापित हैं.
मुरौत गांव का 22 सौ एकड़ का रकबा मात्र तीन सौ एकड़ का रह गया है. विस्थापित हो कर लोग सोनामुखी बाजार के पास जिंदगी बसर कर रहे है. जनप्रतिनिधि आश्वासन देते रहे. प्रशासनिक अधिकारी भी खानापूर्ति करते रहे. तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी तीन माह के भीतर पुनर्वास का आश्वासन दिया था. फिर सीएम भी बदल गये. .
समाप्ति के कगार पर है मुरौत का अस्तित्व : आलमनगर प्रखंड के मुरौत में हजारों परिवारों के आशियानों को अपने आगोश में समेट लिया है. गांव की आस्था का प्रतीक कोशिका मंदिर के साथ बीस करोड़ से अधिक राशि से निर्मित सरकारी भवन और जमीन, वर्ष 06 में बना कला मंच सहित ढाई एकड़ जमीन एवं वर्ष 2008 में बना मुरौत से रतवाड़ा के बीच एक किमी लंबी सड़क, वर्ष 2010 में विकास भवन, वर्ष 11-12 में अति सुसज्जित मध्य विद्यालय एवं वर्ष 2012 में प्राथमिक विद्यालय छतौना वासा के अब नामोनिशान नहीं हैं.
चर्चा भी पसंद नहीं : वर्तमान स्थिति में प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा का दंश झेलने वाले मुरौत वासियों का कहना है कि इस मामले पर चर्चा बंद कर अब हमें अपने हालात पर छोड़ दें. विगत वर्ष भी कोसी ने मुरौत, कपसिया एवं छतौना वासा के 255 परिवारों के घरों को लील लिया है. कई परिवार अपने आशियाना को अपने ही हाथों तोड़ कर ईंट सोनामुखी एवं भवानीपुर वासा ले जाते रहे हैं. कटाव पीडि़त सिकेंद्र भगत, उमेश राम, राजो शर्मा, जयलाल सिंह, नंदन भगत ने कहा कि सरकार न कटाव रोकने के लिए गंभीर रही और न पुनर्वास के लिए. ऐसे में व्यवस्था के प्रति रोष स्वाभाविक है. अगर इस बार भी इनलोगों की समस्या का समाधान न निकला तो लोकतंत्र से इन पीडि़तों का भरोसा उठ जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. हालांकि वर्तमान जिला पदाधिकारी मो सोहैल ने उदाकिशुनगंज में पीड़ित परिवारों के पुनर्वास हेतु विधायक नरेंद्र नारायण यादव, अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक कर अविलंब कटाव पीड़ितों को पुनर्वास दिये जाने के लिए कृत संकल्पित दिख रहे हैं.
2194 परिवार जी रहे बदतर जिंदगी
मुरौत गांव के 829, कपसिया के 608 , छतौना बासा के 112 एवं हरजोड़ा घाट गांव के 96 परिवारों विस्थापित हो चुके है. चौसा प्रखंड के फुलौत ग्राम पंचायत के बड़ी खाल गांव के 441 परिवार कटाव से विस्थापित हो एनएच 106 बांध या अन्य सड़कों पर झोपड़ी में शरण लिये हुये है. 2194 परिवार नरक की जिंदगी बसर कर रहे हैं. शासन और प्रशासन विस्थापितों को पुनर्वासित करने के प्रति गंभीर नहीं है.

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