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आरक्षण पर पुर्नविचार नहीं, लेकिन समीक्षा जरूर हो : मांझी भागवत की नहीं, कही दिल की बात

सहरसा : मैंने मोहन भागवत की नहीं, बल्कि अपने दिल की बात कही है. मैं आज भी कहता हूं कि आरक्षण प्रणाली की समीक्षा जरूर होनी चाहिए. साथ ही ऐसे लोग जो आरक्षण का लाभ लेकर अपने जीवन स्तर को सुधार चुके हैं, उन्हें स्वेच्छा से आरक्षण का लाभ छोड़ कर दूसरों को आगे बढ़ने […]

सहरसा : मैंने मोहन भागवत की नहीं, बल्कि अपने दिल की बात कही है. मैं आज भी कहता हूं कि आरक्षण प्रणाली की समीक्षा जरूर होनी चाहिए. साथ ही ऐसे लोग जो आरक्षण का लाभ लेकर अपने जीवन स्तर को सुधार चुके हैं, उन्हें स्वेच्छा से आरक्षण का लाभ छोड़ कर दूसरों को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए.

बुधवार को सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी स्थानीय परिसदन में पत्रकारों से बात कर रहे थे.
जनसंख्या के आधार पर बढ़े आरक्षण : उन्होंने कहा कि आरक्षण को जनसंख्या के आधार पर बढ़ाना चाहिए. 1992 में एससी की संख्या 16 प्रतिशत थी, आज बढ़कर 22 से 25 प्रतिशत हो गयी है. इसमें बहुत सारी जातियों को भी शामिल कर दिया गया. बावजूद इसको अब तक 16 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ही मिल रहा है. 1962 में ही जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि आरक्षण को बिना समझे आगे बढ़ाते रहने से समाज में दो वर्ग हो जायेंगे. एक सुविधा संपन्न व दूसरा सुविधा विहीन. आज ऐसा ही हो रहा है. इसलिए इस पर समीक्षा करने की जरूरत है.
समाज के सामने उदाहरण की कोशिश : सामान्य सीट से चुनाव लड़ने के बाबत अपने बयान के सवाल पर उन्होंने कहा कि वह अपनी बात पर अभी भी कायम हैं.
भागवत की नहीं…
किसी को तो आगे बढ़ना चाहिए. ऐसा कर समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे सामाजिक व शैक्षणिक रूप से सजग व सबल लोग भी आगे आयें और आरक्षण का लाभ वंचितों व गरीबों के लिए छोड़ें. 28 को भाजपा के बगैर हुई बैठक के सवाल पर उन्होंने कहा कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से चुनाव के बाद सभी दलों के साथ बैठक कर समीक्षा करने का आग्रह किया था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ
, इसके बाद हमलोगों ने आपस में बैठक कर आगे की नीति तय की है. भाजपा इससे अलग नहीं है. अटल बिहारी वाजपेयी के बाद नरेंद्र मोदी पहले ऐसे नेता हैं, जो सभी समस्याओं पर ध्यान देकर काम कर रहे हैं. इसका असर आने वाले दिनों में पड़ेगा.

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