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छह वर्ष बाद भी नहीं हुआ उदघाटन
मधेपुरा : एक तरह जहां ग्रिन फिल्ड रेल इंजन कारखाना को लेकर लोगों में जिले के विकास को लेकर हर्ष का माहौल है. वहीं दूसरी तरफ कई महत्वपूर्ण कल कारखाना के निर्माण के बावजूद शुरू नहीं होने से कई अनगिनत सवाल भी खड़े हो रहे हैं. रेल इंजन कारखाना निर्माण होने से जिले में अनेक […]
मधेपुरा : एक तरह जहां ग्रिन फिल्ड रेल इंजन कारखाना को लेकर लोगों में जिले के विकास को लेकर हर्ष का माहौल है. वहीं दूसरी तरफ कई महत्वपूर्ण कल कारखाना के निर्माण के बावजूद शुरू नहीं होने से कई अनगिनत सवाल भी खड़े हो रहे हैं.
रेल इंजन कारखाना निर्माण होने से जिले में अनेक उद्योग धंधे लगेंगे साथ ही लोगों को रोजगार का अवसर प्रदान होगा. रेल इंजन कारखाना निर्माण को लेकर रेल प्रशासन व जिला प्रशासन जल्द निर्माण कार्य के लिए जहां कटिबद्ध है, वहीं रेलवे विभाग की उदासीनता के कारण जिला मुख्यालय में लगभग सात वर्ष पूर्व बनकर तैयार रेल कंक्रीट स्लीपर कारखाना अब तक चालू नहीं हो पाया.
स्थिति यह है कि कारखाना पूरी तरह जंगल में तब्दील हो चुका है, और उत्पादन के लिए कारखाना में लगाये गये मशीन बेकार साबित हो रहा है और धीरे धीरे जंग की आगोश में समा रहा है. कारखाना निर्माण को लेकर लोगों में एक नई आश जगी थी कि कारखाना बनने से लोगों को काम मिलेगा. बेरोजगारी की समस्या जिले में बहुत हद तक दूर होगी. साथ ही मधेपुरा का सर्वोंगीण विकास संभव होगा. लेकिन सात वर्ष बीत जाने के बाद भी रेलवे स्लीपर फैक्टरी चालू नहीं हुआ. और लोगों के मंसूबे पर पानी फिर गया.
नौ वर्ष पूर्व हुआ था शिलान्यास
वर्ष 2006 ई. में मधेपुरा से सांसद बनकर रेल मंत्री बने लालू प्रसाद यादव ने अपने संसदीय क्षेत्र को पहला तोहफा दिया कि कोसी क्षेत्र का सर्वागीन विकास हो सके. लालू ने दस दिसंबर 2006 ई. को दौरम मधेपुरा रेलवे स्टेशन पर कारखाना का शिलान्यास किया था.
सात वर्ष पूर्व बनकर तैयार हुआ कारखाना. मधेपुरा में रेल कंक्रीट स्लीपर फैक्ट्ररी वर्ष 2009 ई में ही बनकर तैयार हो गया. बताया जाता है कि वर्ष 2009 के लोक सभा चुनाव की घोषणा होने से ठीक एक दिन पहले उद्घाटन की तैयारियां की जा चुकी थी. तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव इसका उद्घाटन करते परंतु अचानक आचार संहिता लागू हो जाने के कारण उद्घाटन पर पानी फिर गया. यही वजह रहा कि लालू के रेल मंत्री पद से हटने के बाद कारखाना उपेक्षित पर कर रह गया.
करोड़ो की राशि से बना कारखाना . कंक्रीट स्लीपर रेल कारखाना कई सात करोड़ की राशि से बनकर तैयार हुआ. जिसमें स्लीपर उत्पादन के लिए बड़े – बड़े संयंत्र लगाये गये. कारखाना बनाने का जिम्मा इरकॉन कंपनी को मिला. विभाग के एकरारनाम के आधार पर फैक्ट्ररी का निर्माण करा दिया गया.
मुखर्जी उद्यान बना फैक्टरी
जिला मुख्यालय के रेलवे के जिस 16 एकड़ भूमि में स्लीपर कारखाना बना, उस जगह पर पहले मुखर्जी उद्यान हुआ करता था.यह जगह शीशम के वृक्षों से पटा था. लेकिन देख रेख के अभाव में शीशम के पेड़ में फफूदे जाति रोग का प्रकोप हुआ, तो लाखों के सूखे पेड़ को आसपास के चोरों ने काट लिया. देखते ही देखते उद्यान वीरान सा पड़ गया.
बेकार हाथों को मिलता काम
कारखाना को लेकर क्षेत्र के लोग इस बात को लेकर आशान्वित थे कि बेरोजगार मजदूरों को अब काम के लिए नहीं सोचना पड़ेगा. बाढ़ की विभीषिका से परेशान कोसी क्षेत्र के मजदूर वर्ग काम की तलाश में अन्य प्रदेश का रूख अखतियार कर लेते है. जिस कारण अपने घर परिवार को छोड़ कर अन्य प्रदेश में काम करते है. लेकिन फैक्ट्ररी निर्माण को लेकर मजदूरों में काफी आस जगी थी.
जिले में कंक्रीट फैक्टरी के निर्माण हो जाने से अनेकों हाथों को काम मिल जायेगा. जिससे उन्हें अनके प्रकार की परेशानी झेल कर अन्य प्रदेश नहीं जाना पड़ेगा. यहीं वे अपने बच्चों का भरण पोषण कर पायेंगे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. वहीं छोटे व्यवसायी वर्ग भी अपने में फैक्टरी निर्माण को लेकर कई संभावनाएं पाल रखी थी.
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