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रेल स्लीपर कारखाना चालू होने से मिलता रोजगार, कम होती पलायन

कारखाना के संचालन से मधेपुरा के विकास को मिलती उड़ान वर्ष 2006 में लालू प्रसाद ने किया था शिलान्यास असामाजिक तत्वों का लगता है जमावड़ा मधेपुरा : 10 दिसंबर 2006 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने कोसी क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए रेलवे के कंक्रीट […]

कारखाना के संचालन से मधेपुरा के विकास को मिलती उड़ान

वर्ष 2006 में लालू प्रसाद ने किया था शिलान्यास
असामाजिक तत्वों का लगता है जमावड़ा
मधेपुरा : 10 दिसंबर 2006 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने कोसी क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए रेलवे के कंक्रीट स्लीपर फैक्ट्री की आधारशिला रखी थी. सरकार द्वारा शुरुआती दिनों में कारखाना को चालू करने के उद्देश्य से महज दो वर्ष के अंदर आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने के अलावा कारखाना में मशीनों को स्थापित भी कर दिया गया. जिसके बाद से अभी तक फैक्ट्री में उत्पादन शुरू नहीं हो सका है.
हालांकि कारखाना में काम करने के लिए कोलकाता की एक कंपनी को ठेका भी दिया गया था. मधेपुरा के औद्योगिक विकास के लिए उस समय पांच करोड़ से अधिक की लागत से बना रेल स्लीपर कारखाना फिलवक्त असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है. इलाका सुनसान होने की वजह से इस जगह का उपयोग लोग गलत कार्यों के लिए करते है. स्लीपर कारखाना बंद रहने की वजह से भवन जर्जर हो चुका है. समय रहते रेलवे कारखाना को चालू नहीं करेगी तो भवन जमींदोज होने की स्थिति में आ गयी है. मधेपुरा स्टेशन पर लगा शिलान्यास का बोर्ड रेलवे में व्याप्त हो रही लापरवाही की कहानी भी सुना रही है.
कंक्रीट स्लीपर की जगह सिर्फ दिखती है घास: स्लीपर फैक्ट्री का मुख्य द्वार अब भी अपने होने की कहानी आने-जाने वाले राहगीरों को सुना रहा है.
इस फैक्ट्री में कंक्रीट स्लीपर के निर्माण की जगह चारों तरफ घास ही घास नजर आते है. फैक्ट्री के चारों तरफ घेराबंदी भी समाप्त हो गयी है. आसपास के इलाके में रहने वाले लोग आवाजाही के लिए रास्ते का उपयोग करते है. स्थानीय लोग बताते है कि शाम होते ही कारखाना परिसर में अनैतिक कार्य करने वाले लोगों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है.
जंग खा रही हैं करोड़ों की मशीनें
करोड़ों रुपये की लागत से तैयार रेल स्लीपर कारखाना आजतक शुरू नहीं हो पाया. स्थिति यह है कि कारखाने में लगी मशीनों को अब जंग लगने से बर्बाद हो रही है. इस फैक्ट्री को पुन: चालू करने के लिए रेलवे को शेष बचे संयंत्रों के मरम्मत करने की आवश्यकता है. समय रहते रेलवे अगर ध्यान देगी तो बर्बाद हो रहे कारखाना को बचाया जा सकता है. कारखाना का ऊपरी शेड भी जर्जर होने की वजह से कई जगहों पर टूट गयी है. स्थानीय लोग बताते है कि स्लीपर कारखाना के सामान भी धीरे-धीरे चोरी होने लगे है. रेलवे द्वारा अपने कारखाना की सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम नहीं किये गये है.
फैक्ट्री संचालन की नहीं हुई निविदा
मधेपुरा रेलवे ट्रैक के समीप शहरी क्षेत्र में स्थापित स्लीपर कारखाना के बनने के बाद कोलकाता की एक कंपनी को स्लीपर निर्माण का ठेका दिया गया था. जिसके बाद उक्त कंपनी द्वारा समयावधि बीत जाने पर भी काम करने के लिए अभिरुचि नहीं दिखायी गयी. नतीजतन फैक्ट्री में निर्माण कार्य रुका रहा. विडंबना की बात यह है कि निर्माण से इनकार करने वाली कंपनी के पीछे हटने के बाद रेलवे द्वारा पुन: किसी दूसरी कंपनी को कार्य का जिम्मा नहीं दिया गया.

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