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भुने तिल व गुड़ की खुशबू से महकने लगा मधेपुरा

मकर संक्रांति में तीन दिन हैं शेष गया के कारीगर नौ साल से आ रहे मधेपुरा मधेपुरा : शहर में तिलकुट का बाजार सज चुका है. भुने तिल व गुड़ की खुशबू से वातावरण सुगंधित है. रेवड़ी, गजक व विभिन्न तरह के तिलकुट की बिक्री उफान पर है. लोग अभी से ही इन तिलकुटों का […]

मकर संक्रांति में तीन दिन हैं शेष

गया के कारीगर नौ साल से आ रहे मधेपुरा
मधेपुरा : शहर में तिलकुट का बाजार सज चुका है. भुने तिल व गुड़ की खुशबू से वातावरण सुगंधित है. रेवड़ी, गजक व विभिन्न तरह के तिलकुट की बिक्री उफान पर है. लोग अभी से ही इन तिलकुटों का आस्वादन कर रहे हैं. हालांकि इस वर्ष तिलकुट की कीमत पिछले साल से अधिक है, जबकि तिल व चीनी की कीमत में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. इसके बावजूद तिलकुट की कीमत में 50 से लेकर सौ रुपये तक की वृद्धि हुई है. इसका कारण कारीगरों के शुल्क में वृद्धि होना बताया जा रहा है. बहरहाल जो भी हो मकर संक्रांति का त्योहार इन तिलकुटों से और सुहाना हो जाता है. ठंड के इस मौसम में तिल का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है.
त्योहार को सुंदर बना रहे तिल व गुड़ के ये कारीगर:
हालांकि मकर संक्राति में तीन दिन शेष है, लेकिन लोग अभी से ही इन तिलकुटों का आस्वादन कर रहे हैं, लेकिन इस स्वाद के पीछे उन कारीगरों का हाथ है जो गया तथा अन्य जगहों से यहां आ कर तिलकुट बना रहे हैं. गया जिले के निरहुआ गांव से कारीगरों का दल मधेपुरा पिछले नौ वर्ष से यहां आ कर अपने हाथों का जादू बिखेर रहा है. दल के कारीगर कहते हैं कि इस एक से डेढ़ महीने के काम के लिए वे लोग पूरा साल प्रतीक्षा करते हैं. वहीं कारीगर केशव कुमार कहते हैं
कि यह सिर्फ एक से डेढ़ महीने का बाजार नहीं, उनके एक साल की उम्मीद है. दल के ही अन्य लोगों का कहना है कि मधेपुरा के लोगों ने उनके काम की कद्र की है. इसलिए हर साल वे यहां पहुंचते हैं. केशव को इस वर्ष की कमाई से घर की मरम्मत कराना है. वहीं पंकज इस बार अपने बिटिया का दाखिला अच्छे स्कूल में करायेंगे. सुनील इस बार खेती के लिए लिया गया कर्ज चुकायेंगे. इस एक माह के बाजार से सबकी अपनी जरूरत और उम्मीदें हैं.
हर वेराइटी होती है मौजूद
पहले लोग तिलकुट के लिए बाहर के बाजार पर निर्भर थे. कोई पटना तो कोई गया से तिलकुट मंगाया करते थे, लेकिन अब मधेपुरा में ही तिलकुट की हर वेराइटी मौजूद है. गणपति तिलकुट भंडार के संचालक रमेश कुमार ने बताया कि उन्होंने जब दस साल पहले यह काम शुरू किया था, तो गुणवत्ता पहली चुनौती थी. इसके लिए उन्होंने गया के कारीगर से संपर्क किया. राजकिशोर साह भी गत छह वर्ष से गया के कारीगरों से ही तिलकुट दुकान चलाते हैं.
नहीं बढ़ी तिल व चीनी की कीमत
गत वर्ष तिल की कीमत 150 से 170 रुपये प्रतिकिलो थी. वहीं इस वर्ष भी केवल 150 से 160 रुपये किलो है, जबकि चीनी की कीमत पिछले साल 44 रुपये किलो थी तो इस साल घट कर केवल 40 रुपये के आसपास है, लेकिन इसका असर तिलकुट की कीमत पर नहीं पड़ा है. दुकानदारों ने बताया कि जिस तिलकुट की कीमत पिछले साल 300 रुपये किलो थी, इस वर्ष 400 रुपये किलो बिक रही है. खोया मिक्स तिलकुट पिछले वर्ष 350 रुपये किलो था लेकिन इस वर्ष 400 रुपये किलो तक उपलब्ध है. बाजार में इस वर्ष गुड़ तिलकुट 320 रुपये, गजक 400 रुपये तथा खोया मिक्स 350 से चार सौ तक उपलब्ध है.
मूल्य प्रति किलो
खोवा तिलकुट 400 रुपये
गुड़ तिलकुट 320 रुपये
गजक 400 रुपये
दूध पापड़ी 350 रुपये
खास्ता तिलकुट 300 रुपये
रेबड़ी 160 रुपये
मुरआ तिलकुट 280रुपये
चालू तिलकुट 200 रुपये
बढ़ रहा है तिलकुट बाजार
मधेपुरा में दिनों दिन तिलकुट का बाजार बढ़ता जा रहा है. पांच साल पहले जहां एक-दो दुकानें ही थी वहीं इस वर्ष एक दर्जन से अधिक दुकानें हैं. खगड़िया के प्रेमसागर इस वर्ष पहली बार मधेपुरा पहुंचे हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें पता चला कि मधेपुरा में तिलकुट की काफी बिक्री होती है. प्रेमसागर सामान्य दिनों में खेती और पढ़ाई करते हैं. इस एक महीने की कमाई से खेती के लिए उन्नत यंत्र खरीदने की सोच रहे हैं.

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