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खाद, बीज व सिंचाई सब महंगा, किसान परेशान

खाद, बीज व सिंचाई सब महंगा, किसान परेशान प्रतिनिधि, सूर्यगढ़ासूर्यगढ़ा प्रखंड की गिनती कृषि प्रधान इलाके में होती है. यहां के अधिकतर लोगों का मुख्य पेशा कृषि है, लेकिन क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का अभाव है. इस वैज्ञानिक युग में भी इलाके के किसान खेती के लिये पूरी तरह मॉनसून पर निर्भर करते हैं. बोरिंग […]

खाद, बीज व सिंचाई सब महंगा, किसान परेशान प्रतिनिधि, सूर्यगढ़ासूर्यगढ़ा प्रखंड की गिनती कृषि प्रधान इलाके में होती है. यहां के अधिकतर लोगों का मुख्य पेशा कृषि है, लेकिन क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का अभाव है. इस वैज्ञानिक युग में भी इलाके के किसान खेती के लिये पूरी तरह मॉनसून पर निर्भर करते हैं. बोरिंग या पम्पिंग सेट से सिंचाई की सुविधा काफी कम किसान ही ले पाते हैं. ऐसे में रबी फसल की बुआई में खाद, बीज व पटवन सभी कुछ महंगा होने से किसानों की चिंता बढ़ गयी है. फसलों पर मौसम की मार व प्राकृतिक आपदा का कहर पहले ही किसानों के लिये परेशानी का सबब बना हुआ है. खेती के सहारे अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले किसानों की जिंदगी प्रकृतिक आपदा व अर्थाभाव के कारण बदतर होती जा रही है. सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें सही तरीके से समय पर नहीं मिल पा रहा है. सरकार के द्वारा लगातार कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये कई विकास परक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है. लेकिन इसका लाभ सही तरीके से किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है. हालात ये है कि किसानों को फसल का लागत मूल्य भी नसीब नहीं हो पाता. सलेमपुर के किसान प्रभाकर सिंह, रामानुज सिंह आदि के मुताबिक किसानों को सरकार द्वारा न समय पर बीज उपलब्ध कराया जाता है और न ही उन्हें सही तरीके से कृषि योजनाओं का लाभ मिल पाता है. फसल तैयार होने पर उन्हें फसल का तय न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पर रहा है. धान की खरीदारी के लिये सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य व बोनस की घोषणा कर रखी है. लेकिन एक पखवारा बाद भी क्रय केंद्र नहीं खोला गया. किसान अपनी जरूरतों के लिये धान को औने-पौने दामों में बेच रहे हैं. जिम्मेवार पदाधिकारी नमी का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. खाद, बीज, दवा व पटवन सब कुछ महंगा हो गया है. प्रकृति के रहमोकरम के बाद जो कुछ फसल की उपज होती है तो उसे बाजार उपलब्ध नहीं हो पाता. मुस्तफापुर के किसान वरुण सिंह ने बताया कि पूर्व में जब चावल की कीमत 18-20 रुपये प्रति किलो थी तो डीएपी खाद की कीमत 8-10 रुपये प्रति किलो था. आज चावल की कीमत मामूली बढ़कर 20-22 रुपये किलो है तो डीएपी खाद की कीमत तीन गुणा बढ़कर 25 से 30 रुपये प्रति किलो हो गया है. सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. पुरना सलेमपुर के किसान विजय यादव के मुताबिक फसल के लगाने से कटाई तक में कड़ी मेहनत के बाद भी किसानों को सही तरीके से लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता है. फसलों को कर रही बरबाद नीलगाय लखीसराय. जिले भर में इन दिनों नीलगाय का आतंक सर चढ़कर बोल रहा है. किसानों के मुताबिक नीलगाय उनके खेत में लगी फसलों को बरबाद कर रहा है. लगातार गुहार लगाने के बावजूद प्रशासन इस दिशा में कदम नहीं उठा रहा है. किसान वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत बने कानून की वजह से इन वन्य पशुओं को लेकर कोई कदम नहीं उठा रहे. इधर वन व पर्यावरण विभाग पटना के सीएफ ललन सिंह ने बताया कि वनजीवी संरक्षण अधिनियम 1973 वनसुअरों व नीलगाय पर लागू नहीं होता. वन व पर्यावरण विभाग पटना की पहल पर केंद्रीय वन पर्यावरण ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1973 के तहत एक वर्ष पूर्व ही वनसुअरों व नीलगाय को इस श्रेणी से हटा लिया गया. लेकिन फिलहाल यह एक वर्ष तक ही लागू रहेगा. बिहार सरकार की पहल पर वन पर्यावरण विभाग पटना ने केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर बिहार के कई जिलों में वनसुअरों व नीलगायों से फसलों को होने वाले नुकसान की ओर ध्यान आकृष्ट किया था. जिस पर केंद्रीय वन पर्यावरण विभाग ने इन प्राणियों को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची तीन से हटाकर उसे अनुसूची पांच में डाल दिया गया है.

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