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नारकीय जीवन जी रहे हैं आजादनगर के महादलित

प्रतिनिधि : कजरा़ यूं तो क्षेत्र के अनेकों आदिवासी व महादलितों के गांवों में आजादी के 68 साल बाद भी न तकदीर बदली है और न ही तसवीर. परंतु 15 सालों से कजरा थाना क्षेत्र के उरैन पंचायत अंतर्गत करीब पौने दो सौ परिवारों का महादलित गांव आजादनगर मुसहरी वैसा गांव है जहां के अधिकांश […]

प्रतिनिधि : कजरा़ यूं तो क्षेत्र के अनेकों आदिवासी व महादलितों के गांवों में आजादी के 68 साल बाद भी न तकदीर बदली है

और न ही तसवीर. परंतु 15 सालों से कजरा थाना क्षेत्र के उरैन पंचायत अंतर्गत करीब पौने दो सौ परिवारों का महादलित गांव आजादनगर मुसहरी वैसा गांव है जहां के अधिकांश निवासियों की अस्थायी झुग्गी झोपड़ी ही रैन बसेरा बन कर रह गया है.

उरैन रेलवे स्टेशन के करीब हजार मीटर पूरब रेलवे गेट के पास सड़क किनारे बसा यह गांव के 105 महादलित परिवारों को इंदिरा आवास बनाने की स्वीकृति भी मिल गयी.

कई ने पहली किस्त की राशि वर्षों पूर्व उठायी मगर सरकार के द्वारा तीन डिसमिल के हिसाब से 105 परिवारों को चिन्ह्रित की गयी जमीन सड़क से इतना नीचे है कि बारिश के दिनों में उक्त जमीन के गड्ढे में करीब 10 फीट पानी जमा हो जाता है.

जहां इंदिरा आवास भवन का एक तल गड्ढे में समा जाने का भय के कारण लोगों ने निर्माण नहीं करा सके. कजरा की ओर से गुमटी पार करने पर महादलित टोले आजादनगर में प्रवेश करने पर झुग्गियों के आगे खटिया बिछा देख वहां उपस्थित टोला सेवक प्रमोद मांझी से पूछने पर उन्होंने बताया कि परिवार बढ़ गया है.

रात गुजारने को मकान कम पड़ जाता है. इसलिए खुले आसमान के नीचे सड़क किनारे परिवार के सदस्यों को सोने की मजबूरी है. इंदिरा आवास की बात करने पर उन्होंने बताया कि 105 परिवारों के लिए दी गयी जमीन 10 फीट गडढ़े में है जिसके लिए जिला समाहरणालय में यहां के ग्रामीणों ने आंदोलन भी किया. आश्वासन दी गयी परंतु वर्षों बीत जाने के बाद भी यहां की फाइलें समाहरणालय में धूल फांक रही है. बताया कि जनप्रतिनिधि को भी समस्या से अवगत कराया गया. उनसे भी आश्वासन मिला परंतु जमीन पर कार्य नहीं हो सका.

वहीं दुखन मांझी, संतोष मांझी, कांग्रेस मांझी, रामवरण मांझी, सिंटू मांझी, अर्जुन मांझी आदि ने हाथ में रस्सी व कुल्हाड़ी लिये रास्ते पर दिखी. पूछने पर बताया कि जंगल से लकड़ी जाने जाते हैं ताकि चूल्हे जल पाये. आगे इंदिरा आवास आवंटन के स्थल पर पहुंचने जैसे ही उसका फोटो कैमरे में लेने की दर्जनों ग्रामीण वहां इस आशा से वहां उपस्थित हुए कि कोई तारणहार आया है

जो समस्या का समाधान करेगा. लोगों ने बिजली का अभाव, रोजगार की कमी, पेयजल के लिए मात्र एक चापाकल पर गुजारा, इन तमाम दिक्कतों को रखते हुए आशा भरी नजरों से देखा. लोगों की समस्या सुन कर यही लगा कि न जनप्रतिनिधि और न तो विभाग ने ही इनकी सुध ली है. समस्या को सुन आंखें नम हुई परंतु कल्याण तो सरकार अथवा विभाग ही कर सकता है.

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