।। समरेश कुमार ।।
लखीसराय : रमजान उल मुबारक माह के बाद ईद उल फितर मनायी जाती है. ईद दुनिया भर के मुसलमानों के लिए खुशी का दिन है. इसलाम में दो ही खुशी के दिन है ईद उल फितर और ईद उल जोहा. रमजान में पूरे महीने रोजे रखने के बाद ईद उल फितर मनायी जाती है.
ईद अल्लाह से इनाम लेने के दिन है. ईद मुबारक के दिन सुबह के वक्त शहर भर के लोग ईदगाह में जमा होकर ईद की नमाज अदा करते हैं. नमाज के पहले हर मुसलमान के लिए फितरा देना फर्ज है. फितरे के तहत प्रति इनसान पौने दो किलो अनाज या उसकी कीमत गरीबों को दी जाती है.
इसका मकसद यह है कि गरीब भी ईद की खुशी मना सकें. ईद की नमाज के बाद इमाम खुतबा देते हैं और दुआ फरमाते हैं. इसके बाद सभी एक दूसरे के गले लग कर ईद की मुबारक बाद देते हैं. ईद में सबसे ज्यादा खुश बच्चे रहते हैं. इस दिन बच्चों के चेहरे की रौनक देखते ही बनती है.
* ईद का चांद देखते ही फितर देना वाजिब
वह शख्स जिस पर जकात फर्ज है. उस पर फितर वाजिब है. यह फकीरों, असहाय या मोहताज को देना बेहतर है. ईद का चांद देखते ही फितर वाजिब हो जाता है. ईद की नमाज पढ़ने से पहले इसे अदा करना चाहिए. अगर किसी वजह से ईद की नमाज के बाद दे तो भी हर्ज नहीं है. लेकिन कोशिश की जाये कि पहले दें.
* फितर में क्या देना चाहिए
वह हर चीज जो खाद्य सामग्री के तौर पर इस्तेमाल की जाती है. गेहूं, अनाज, खजूर आदि से भी सद का ए फितर अदा हो जाता है. वैसे नकद रकम भी दी जा सकती है. उलमा ए दिन ने इसकी मात्र 17 सौ ग्राम के लगभग बतायी है. इतना अनाज या राशि अदा करने से यह सदका अदा हो जाता है. जिस दिन ईद का चांद दिखता है रोजेदार के सारे गुनाह माफ कर के मगफिरत कर दी जाती है. दस्तूर यह है कि मजदूर का काम खत्म होने के वक्त मजदूरी दे दी जाती है. अर्थात हमने पूरे रमजान जो रोजे रखें है, तराबी पढ़ी, कुरान शरीफ की तिलावत की उसका मेहनताना अल्लाह पाक रमजान की आखिरी रात में देता है.