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दीपों का त्योहार: आतिशबाजी से वातावरण को पहुंचता है नुकसान, इस दिवाली पटाखों को कहें बाय

लखीसराय: दीवाली वास्तव में दीपों का त्योहार है, लेकिन इस दिन लोगों में पटाखों को लेकर प्रतिस्पर्धा का जो दौर चलता है उससे वायु व ध्वनि प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है. पटाखे पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं, लेकिन किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं है. पटाखों के कारण कई प्रकार की गैस वायु […]

लखीसराय: दीवाली वास्तव में दीपों का त्योहार है, लेकिन इस दिन लोगों में पटाखों को लेकर प्रतिस्पर्धा का जो दौर चलता है उससे वायु व ध्वनि प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है. पटाखे पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं, लेकिन किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं है. पटाखों के कारण कई प्रकार की गैस वायु मंडल में घुल जाती है. इससे कई प्रकार की बीमारियां अपने पैर पसार लेती है वहीं लोगों का सांस लेना भी दूभर हो जाता है. जानकारों की मानें तो दीपावली के समय करीब चालीस फीसदी प्रदूषण बढ़ जाता है बावजूद कोई भी इस दिशा में गंभीर नहीं है.
वर्तमान में लगातार बढ़ रही वाहनों की संख्या के कारण वैसे ही पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंच रहा है. दीवाली के समय तो प्रदूषण की मात्रा चालीस प्रतिशत तक बढ़ जाती है. पटाखों के कारण सल्फर डाइऑक्साइड, कॉर्बन मोनो ऑक्साइउ, नाइट्रो ऑक्साइड जैसी खतरनाक गैस निकलती है. यह गैस वायु मंडल में घुल कर पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचाती है. वैसे भी पटाखों के कारण वायु व ध्वनि प्रदूषण वातावरण को खासा नुकसान पहुंचा रहा है. इन गैस के उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग को भी खासा खतरा है.

साथ ही जो स्मोक के कारण धुआं व धुंध आसमान में छा जाता है यह स्वास्थ्य के लिए काफी खरतनाक है. वहीं इसके कारण विजिबिलिटी भी कम हो जाती है. यह स्थिति दमा व अस्थमा जैसे रोगियों के लिए काफी खतरनाक साबित होता है. प्रदूषण के कारण अस्थमा, कफ, माइग्रेन, कान, हार्ट हाइपर टेंशन जैसी बीमारियों से लोग ग्रसित हो सकते हैं साथ ही दीवाली पर पटाखों के कारण काफी दिनों तक वायुमंडल दूषित रहता है.

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