दिघलबैंकः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे की खबर से प्रखंड वासी भौंचक रह गये. इसे हड़बड़ी में लिया गया फैसला बताया. जबकि राजनैतिक दलों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. पूर्व भाजपा विधायक अवध बिहारी सिंह ने कहा कि यह तो पहले से तय था. भाजपा से विश्वासघात करने की सजा बिहार की जनता ने जदयू को दिया तथा 20 से मात्र 2 सीट पर समेट दिया. जिसके बाद अल्पमत की सरकार की सरकार का सत्ता में बने रहने का कोई औचित्य नहीं था.
कांग्रेस के प्रखंड अध्यक्ष बमभोल झा ने कहा कि नाखून कटा कर शहीदों में शामिल होना चाहते हैं. बिहार के मुख्यमंत्री ने पार्टी बिखराव और सरकार गिरने के भय से यह कदम उठाया है.
प्रखंड प्रमुख नादिर आलम ने कहा कि राज्य सरकार को पांच साल के लिए बहुमत मिला था. इसलिए सरकार को अपना कार्यकाल पूरा करना चाहिए था. समय पूर्व चुनाव कराना बिहार व यहां की जनता के लिए ठीक नहीं होगा. राजद के प्रखंड अध्यक्ष हाजी महमूद आलम ने कहा कि अफसरशाही और अहंकार इस सरकार के पतन का कारण बना एवं बिहार की जनता ने उन्हें नकार दिया. जदयू के प्रखंड अध्यक्ष अजीत कुमार चौबे ने कहा कि लोकसभा चुनाव में हार की नैतिक जिम्मेवारी लेकर मुख्यमंत्री ने इस्तीफा देकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत आदर्श उदाहरण दिया है. जब बिहार की जनता को तय करना है कि उसे विकास करने वाला चाहिए अथवा जंगल राज एवं सांप्रदायिक माहौल बनाने वाला.
तुलसिया मुखिया रिजवान अहमद ने कहा कि नीतीश कुमार का इस्तीफा देना बिहार का दुर्भाग्य होगा. क्योंकि मुख्यमंत्री ने जिस प्रकार विकास के नये आयाम स्थापित किये है वे सभी ठप हो जायेंगे और बिहार काफी पीछे चला जायेगा.पूर्व प्रमुख कैलाश प्रसाद भगत ने कहा कि 2010 में एनडीए गठबंधन को बिहार की जनता ने जनादेश दिया था मगर भाजपा से अलग होना मुख्यमंत्री एवं जदयू को भारी पड़ा.
जबकि आम जनता ने इस पर अपनी राय रखते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का इस्तीफा नैतिकता के आधार पर तो ठीक है मगर उन्हें इतनी जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहिए. लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव अलग अलग मुद्दों पर लड़े जाते है. इसलिए लोकसभा चुनाव के नतीजों को विधान सभा चुनाव से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए. कई लोगों ने कहा कि बिहार को नीतीश कुमार की जरूरत है. जिस तरह से उन्होंने बिहार का कायापलट पिछले 8 सालों में किया है इसे इसी तरह आगे बढ़ाये जाने की आवश्यकता है.