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किशनगंज : गेहूं खरीद को नहीं खुला क्रय केंद्र, किसान परेशान

विशनपुर : प्रखंड में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीद की कवायद शुरू नहीं होने से किसानों में मायूसी है. प्रशासन द्वारा अब तक न तो लक्ष्य तय किया जा सका है, न ही खरीद के लिए कोई तैयारी है. अधिकारी भी इसका बाजार मूल्य ठीक बता जवाबदेही से पल्ला झाड़ ले रहे हैं. जबकि, […]

विशनपुर : प्रखंड में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीद की कवायद शुरू नहीं होने से किसानों में मायूसी है. प्रशासन द्वारा अब तक न तो लक्ष्य तय किया जा सका है, न ही खरीद के लिए कोई तैयारी है. अधिकारी भी इसका बाजार मूल्य ठीक बता जवाबदेही से पल्ला झाड़ ले रहे हैं. जबकि, शादी-विवाह का सीजन होने के चलते किसान खुले बाजार में बिचौलियों के हाथ गेहूं बेच रहे हैं.
पैक्स समितियों को भी अब तक पता नहीं है कि प्रखंड में कब से गेहूं की खरीदारी शुरू होगी. यह भी स्पष्ट नहीं है कि सरकारी क्रय केंद्र खुलेंगे भी या नहीं. यदि देर से खुलेंगे तो फिर स्थिति का वर्षा जब कृषि सुखाने वाली हो जाएगी. क्योंकि देर होने पर किसानों की उपज बिचौलियों के हाथों में चली जाएगी. पैक्स समितियों की मानें तो अब तक खरीद से संबंधित उपर से कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है. पूरी हो चुकी है गेहूं की कटनी प्रखंड में गेहूं की कटनी पूरी हो चुकी है. मौसम के साथ देने व किसानों की हाड़तोड़ मेहनत से इस वर्ष प्रखंड में गेहूं का अच्छा उत्पादन हुआ है.
मिली जानकारी के अनुसार 1735 रुपये प्रति क्विंटल की दर से सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है. लेकिन, सरकारी खरीदारी में देरी, भुगतान की अनिश्चितता व कागजी पचड़ों में पड़ने से बचने के लिए किसान लगभग 15 सौ रुपये प्रति क्विंटल गेहूं बाजार में बेच देना मुनासिब समझ रहे हैं. किसानों ने कहा कि 15 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से खेतों से ही व्यापारी गेहूं का उठाव कर रहे हैं. शुरू में तो 1600-1700 की दर से गेहूं खुले बाजार में बिका है. अबकी बाजार का रुख देखकर लगता है कि भाव में और नरमी आ सकती है. कहते हैं किसान किसान सीताराम यादव, रफीक आदि का कहना है कि सरकारी केंद्रों पर गेहूं खरीद महज खानापूर्ति है. हमलोग तो हमेशा व्यापारियों के हाथों ही गेहूं बेचते हैं. तीन-चार साल से गेहूं की खरीदारी की बातें सुनते आ रहे हैं. लेकिन, खरीदारी कब शुरू होती है और कब बंद हो जाती है, इसका पता ही नहीं चलता. बोनस की भी कोई योजना नहीं रहती है.

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