ठाकुरगंज : किशनगंज के चाय उत्पादक किसानों के मामले में सरकार की नीति हवा हवाई साबित हो रही है. आज किशनगंज के चाय उत्पादक किसान बिहार सरकार के उदासीन रवैये के कारण परेशान हैं और अपनी चाय पत्ती को पश्चिम बंगाल के बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर बेचने को विवश हैं. यह हालत तब […]
ठाकुरगंज : किशनगंज के चाय उत्पादक किसानों के मामले में सरकार की नीति हवा हवाई साबित हो रही है. आज किशनगंज के चाय उत्पादक किसान बिहार सरकार के उदासीन रवैये के कारण परेशान हैं और अपनी चाय पत्ती को पश्चिम बंगाल के बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर बेचने को विवश हैं.
यह हालत तब है जब सरकार चाय की खेती के लिए किसानों को सहूलियत देने का दावा करती है. परन्तु व्यावसायिक फसल होने के बावजूद सरकार का ध्यान इस खेती के प्रति उदासीन बना हुआ है. इस मामले में ठाकुरगंज के चाय उत्पादक मोहन सिंह, कुशेश्वर सिंह, कमल सिंह, नरेश सिंह आदि ने बताया की इन दिनों इलाके के किसान हरी चाय पत्ती को बिचौलियों के हाथों कौड़ियों के भाव में बेच रहे हैं. इन दिनों हरी चाय पत्ती का दाम किसानों को छह रुपये किलो से 12 से 8 रुपये किलो तक ही मिल रही है.
किसानों की यदि माने तो चाय प्रोसेसिंग प्लांट मालिकों की मनमानी के कारण इलाके के चाय उत्पादक किसानों को लागत भी नहीं मिल पा रही है. किसानों ने बताया की सरकार की वित्तीय मदद के बिना ही हमलोगों ने चाय के पौधों को लगाया, जिससे कभी-कभी मौसम की बेरु़खी और प्राकृतिक विपदा के कारण भारी नुक़सान भी उठाना पड़ जाता है. इससे बाकी बची जमा पूंजी भी ख़त्म हो जाती है. वहीं बरसात के मौसम में बंगाल के तीस्ता बैराज से अचानक पानी छोड़ने से चाय के खेत पानी में डूब जाते हैं और चाय के पौधे गल जाते हैं. व्यावसायिक फसल होते हुए भी सरकार का ध्यान चाय की खेती के प्रति उदासीन ही रहा है. ग़ौरतलब है कि बिहार का किशनगंज चाय का उत्पादन करने वाला पहला ज़िला है. यहां चाय की खेती करने वाले किसानों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है.
बावजूद इस मामले में सरकार की बेरुखी किसानो को परेशानी पैदा कर रही है. हालांकि चाय की पत्तियां खरीदने वालों का कहना है कि फेस्टिव सीजन के बाद दाम में गिरावट सामान्य बात है और यह दिक्कत कुछ समय बाद खत्म हो जाएगी.