किशनगंज : बाढ़ के कारण जिले में व्यापक नुकसान हुआ है. जिले की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन बाढ़ ने अगहनी धान सहित जूट, मक्का, अनानास, चाय व केला की फसल को बर्बाद कर दिया है. फसल की बर्बादी देख किसान हाय मार रहे हैं. अब तो न उनके पास फसल उपजने की […]
किशनगंज : बाढ़ के कारण जिले में व्यापक नुकसान हुआ है. जिले की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन बाढ़ ने अगहनी धान सहित जूट, मक्का, अनानास, चाय व केला की फसल को बर्बाद कर दिया है. फसल की बर्बादी देख किसान हाय मार रहे हैं. अब तो न उनके पास फसल उपजने की आस है और न ही यहां रोजगार मिलने की उम्मीद. ऐसे में बर्बाद हुए किसानों के समक्ष भुखमरी की चिंता सताने लगी है. जिले की बड़ी आबादी मुख्य रूप से अगहनी धान की फसल पर निर्भर है.
इसके भरोसे ही उन्हें साल भर खाने का अनाज और अन्य जरूरतों को पूरा करना होता है. जिले में 84283 हेक्टेयर में किसान धान की खेती करते हैं. जिले के सभी प्रखंडों में व्यापक पैमाने पर धान की खेती होती है, लेकिन अबकी प्रलयंकारी बाढ़ ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है. बाढ़ के कारण सब कुछ बर्बाद होने के बाद किसानों के समक्ष महाजन का कर्ज उतारने के साथ परिवार चलाने की चुनौती सामने हैं. फसल क्षति होने और आधारभूत संरचना को नुकसान पहुंचने के कारण अब अपने यहां रोजगार की भी आस नहीं है.
महादलित टोले में बाढ़ राहत सामग्री का वितरण
ठाकुरगंज. आनंद मार्ग यूनिवर्सल रिलीफ टीम, यूनिट ठाकुरगंज के द्वारा प्रखंड के खारुदह पंचायतमें बाढ़ राहत सामग्री का वितरण किया गया. पंचायत के ठेकाबस्ती, गोगरिया व खारुदह महादलित टोला के 120 बाढ़ पीड़ितों के बीच साड़ी, चावल, आलू, बिस्कुट आदि सामग्री तथा ह्यूमेन्स ऑफ सीमांचल की ओर से 120 साड़ियों का वितरण किया गया. इस दौरान स्थानीय मुखिया जुल्फिकार भी मौजूद थे.
कैसे होगा गुजारा
बाढ़ के बाद किसानों को फसल क्षति के मुआवजा की घोषणा तो की गयी है, लेकिन अनुदान के सहारे किसानों का गुजारा मुश्किल होगा. पिछले वर्ष बाढ़ में हुई क्षति का मुआवजा अब तक कई किसानों को नहीं मिल पाया है. ऐसे में खुद को ठगे महसूस कर रहे किसान इस बार भी उम्मीद हारने लगे हैं. किसान नकुल प्रसाद सिंह, मो जमील अख्तर, शिव नारायण दास, सत्य नारायण प्रसाद मालाकार, अब्दुल जब्बार, मुजफ्फर हुसैन आदि ने बताया कि बाढ़ ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है. अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर उन्होंने खेती की थी. लहलहाती फसल देख उन्हें पिछले नुकसान की भरपाई की उम्मीद थी, लेकिन बाढ़ ने उनके अरमानों को बहा दिया है. अब कैसे परिवार का भरण पोषण करेंगे. सरकारी सहायता मिलने की उम्मीद तो है, लेकिन कागजी प्रक्रिया के फेर में अक्सर इंतजार लंबा करना होता है.
बाढ़ ने कहीं का नहीं छोड़ा
किसान कहते हैं कि बाढ़ सबकुछ बहा ले गयी. एक तरफ घर और सामानों की क्षति हुई है. वहीं खेतों में लगी फसल भी बाढ़ की भेंट चढ़ चुकी है. पिछले साल की नुकसान की भरपाई अभी नहीं हुई थी कि बाढ़ ने उन्हें फिर तबाह कर दिया है. अब तो महाजन भी कर्ज देने से इनकार कर रहे हैं. ऐसे में परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल है. अपने यहां रोजगार मिलने की भी आस नहीं है. आगे त्योहार में परिवार और बच्चों की खुशियों पर भी ग्रहण लग चुका है. पेट भरने की जुगत के लिए अब परदेश में नौकरी की तलाश ही उनके लिए विकल्प है.