मक्का किसानों की मेहनत की मलाई खा रहे व्यापारी मक्का उत्पादन में अव्वल जिले के किसानों की जिंदगी बेहाल, नहीं मिल रहा उचित मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा साबित हुआ छलावा, औने-पौने दाम पर बेचने को विवश हैं किसान जिले में सर्वाधिक मक्का उत्पादन करने वाले बेलदौर सहित अन्य इलाकों में किसानों की हालत दयनीय खासकर मध्यमवर्गीय किसानों को उपज का नहीं मिल पा रहा उचित दाम किसानों की बेटी-बहन की शादी में जमीन बेचने के अलावा कोई चारा नहींसरकार की बेरुखी से बेहाल किसानों ने इस बार मक्का खेती से मुंह मोड़ा प्रतिनिधि, खगड़ियाकर्ज में जन्म लेने वाले किसान, कर्ज में ही बड़े होते है और फिर कर्ज में ही जिंदगी को अलविदा कह जाते हैं. कुछ ऐसी ही हालत आजकल जिले के मक्का उत्पादक किसानों की भी है. देश ही नहीं एशिया में मक्का उत्पादन में अपना मुकाम बना चुके खगड़िया के किसानों को सरकार से सहयोग नहीं मिल पा रहा है. प्रशासन की तो बात ही मत कीजिये. सरकार की घोषणा हवा-हवाई साबित हुई है. न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए छलावा के अलावा कुछ और नहीं है. लिहाजा, औने पौने दाम पर किसानों से मक्का खरीद कर व्यापारी मालामाल हो रहे हैं. वहीं दिनों दिन मक्का उत्पादक किसानों की हालत दयनीय होती जा रही है. सरकार खामोश है. नतीजतन किसानों ने भी मक्का उत्पादन से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है. इसका नतीजा आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है. जानकारों की मानें तो इस बार आधे से अधिक किसानों ने मक्का की खेती से मुंह मोड़ लिया है, लेकिन कृषि विभाग बेपरवाह बना हुआ है. पूछने पर जिला कृषि पदाधिकारी कहते हैं सरकार के निर्देशानुसार किसानों को कृषि कार्यक्रम से अवगत कराने के अलावा सरकारी लाभ दिया जाता है. बहन-बेटी की शादी में बिक रही जमीन मक्का किसानों के मेहनत की मलाई खाकर पैसे वाले और अमीर होते जा रहे हैं. कहने को केंद्र सरकार ने 1310 रुपये प्रति क्विंटल मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया है. पर, धरातल पर स्थिति बड़ी डरावनी है. औने-पौने दाम पर व्यापारी के हाथाें अपनी हाड़-तोड़ मेहनत की कमाई बेच कर किसान ठगा महसूस कर रहे हैं. मक्का उत्पादक किसान संघ के संयोजक सुभाष चन्द्र जोशी कहते हैं आखिर कब तक किसानों के साथ धोखा होता रहेगा. मक्का उत्पादन करने वाले किसानों की हालत यह है कि उपज से मिलने वाले मूल्य तो साहूकार के कर्ज चुकाने में ही निकल जाते हैं. अगर घर में बहन-बेटी की शादी हुई, तो फिर जमीन बेचने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. किसानों के दर्द से सरोकार रखने वाले श्री जोशी बताते हैं कि हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद किसान 30 से 35 क्विंटल प्रति बीघा तक मक्का उत्पादन करते हैं. पर, आखिर में उनके हाथ आता है तो सिर्फ मायूसी, दर्द और बेबसी. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इस बार बिहार सरकार ने मक्का खरीदने मे दिलचस्पी नहीं ली. लिहाजा किसानों को व्यापारियाें के शरण में जाना पड़ा. आखिर वे कर भी क्या सकते हैं साहूकार को समय पर पैसा जो देना रहता है.
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मक्का किसानों की मेहनत की मलाई खा रहे व्यापारी
मक्का किसानों की मेहनत की मलाई खा रहे व्यापारी मक्का उत्पादन में अव्वल जिले के किसानों की जिंदगी बेहाल, नहीं मिल रहा उचित मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा साबित हुआ छलावा, औने-पौने दाम पर बेचने को विवश हैं किसान जिले में सर्वाधिक मक्का उत्पादन करने वाले बेलदौर सहित अन्य इलाकों में किसानों की हालत […]
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