बल्कि यह फाइल अनुसेवक देवेंद्र सिंह के पास अनधिकृत रूप से उसके आवास पर रहता था. लिपिक ने डीएओ एवं संयुक्त निदेशक मुंगेर को 10 अक्तूबर को लिखे आवेदन में इस बात का उल्लेख किया था. एसडीओ की छापेमारी में लगभग यह बात स्पष्ट भी हो गया है कि लिपिक ने जो आरोप लगाये थे वे सही थे. एसडीओ की छापेमारी के लगभग 72 दिन पूर्व लिपिक सह नाजिर भानु प्रकाश ने अपने उच्च पदाधिकारी को दिये आवेदन में यह शिकायत की थी कि आदेश पर रखते हैं.
लिपिक ने यह आरोप 22 दिसंबर यानी एसडीओ के छापेमारी से काफी पहले लगाया है. लिपिक का यह आरोप कितना सत्य एवं झूठा है, यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा. किंतु लिपिक के आवेदन के अवलोकन से स्पष्ट है कि फाइल मिलने से वे काफी दबाव में थे. इसी कारण उन्होंने अपने वरीय पदाधिकारी (डीएओ) के विरुद्ध दो बार प्रमंडल स्तर पर इनकी शिकायत की थी.
लिपिक ने अपने आवेदन में कहा था कि फाइल मांगने पर अनुसेवक उन्हें फाइल नहीं देते थे. लिपिक ने यह भी कहा है कि अनुसेवक द्वारा यह कहा जाता था कि डीएओ के आदेश पर उन्हें फाइल प्राप्त हुई है. 10 अक्तूबर को लिपिक ने दिये आवेदन में यह भी कहा था कि अनुज्ञप्ति फॉर्म भरने से लेकर अनुज्ञप्ति निर्गत करने तक का सारा काम अनुसेवक के द्वारा ही किया जाता था. उन्हें पंगु बना दिया गया था. अनुज्ञप्ति के प्रभार में रहने के कारण लिपिक से मात्र हस्ताक्षर कराये जाते थे. बताते चलें कि जिला कृषि कार्यालय की इस कुव्यवस्था से तंग आकर लिपिक ने अनुज्ञप्ति निर्गमन के प्रभार से ही मुक्त करने का अनुरोध डीएओ तथा संयुक्त निदेशक मुंगेर से किया था.