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शहर सुरक्षा तटबंध के लिए अब लीज पर ली जायेगी किसानों से जमीन, मिलेगा मुआवजा

खगड़िया : शहर सुरक्षा तटबंध के शेष बचे भाग के निर्माण के लिये अब जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा. बल्कि किसानों से जमीन लीज पर ली जायेगी. जानकारी के मुताबिक तटबंध के शेष भाग के निर्माण के लिये लीज नीति के तहत किसानों से जमीन लीज पर लेकर अधूरे काम का पूरा किया जायेगा. डीएम […]

खगड़िया : शहर सुरक्षा तटबंध के शेष बचे भाग के निर्माण के लिये अब जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा. बल्कि किसानों से जमीन लीज पर ली जायेगी. जानकारी के मुताबिक तटबंध के शेष भाग के निर्माण के लिये लीज नीति के तहत किसानों से जमीन लीज पर लेकर अधूरे काम का पूरा किया जायेगा.

डीएम अनिरुद्ध कुमार के आदेश के बाद जिला भू-अर्जन कार्यालय के द्वारा उक्त परियोजना से जुड़े अभिलेख बाढ़ नियंत्रण प्रमण्डल-दो को भेजा गया है. जिला भू-अर्जन पदाधिकारी राकेश रमण ने बताया लीज नीति के तहत तटबंध निर्माण के किसानों से जमीन लिये जायेंगे.
जमीन के बदले किसानों/भू-धारियों को मुआवजा दिया जायेगा. यहां से आगे का काम (जमीन लीज की कार्रवाई) बाढ़ नियंत्रण प्रमण्डल-दो के द्वारा की जायेगी.
इधर बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल-दो के कार्यपालक अभियंता गोपाल चन्द्र मिश्र ने बताया कि एक मौजा में शहर सुरक्षा तटबंध का निर्माण बांकी है. भू-धारियों के विरोध के कारण काफी समय से काम रुका हुआ है. रुके हुए कार्य को फिर आरंभ कराया जायेगा. भू-धारियों से लीज नीति के तहत जमीन लेने की कवायद शुरू कर दी गयी है.
जमीन मुआवजा राशि की मांग विभाग से की जा रही है. गौरतलब है कि जिले में कई महत्व परियोजनाएं भू-अर्जन की पेंच में फंस कर रह गयी है. भू-अर्जन की पेंच के कारण 18 साल बाद भी खगड़िया जंक्शन से कुशेश्वर स्थान के बीच सीधी रेल सेवा बहाल हो सकी. इतना ही नहीं भू-अर्जन के पेंच के कारण आरओबी के एप्रोच सड़क का चौड़ीकरण तथा पुल बन जाने के दो साल बाद भी मुंगेर गंगा पुल के एप्रोच सड़क का निर्माण पूरा नहीं हो पाया.
यही स्थिति अन्य परियोजनाओं के साथ-साथ जिले की एक अति महत्वपूर्ण परियोजना यानी शहर सुरक्षा तटबंध निर्माण की हो गई है. जानकार बताते है कि करीब एक दशक पूर्व यह परियोजना आरंभ हुआ था. लेकिन भू-अर्जन की जटिल पेंच में उक्त तटबंध का निर्माण उलझ कर रह गया हैं. करोड़ों खर्च के बाद भी शहर पर बाढ़ का खतरा हरेक साल मंडराता रहता है.
28.4 किमी बनना था तटबंध
विभागीय जानकारी के मुताबिक बेगूसराय जिले के बगरस स्लुइस गेट से अलौली प्रखंड के संतोष पुल तक करीब 28.4 किमी चनहा नदी पर तटबंध बनना था. चनहा नदी के दक्षिणी भाग पर ऊंचा व चौड़ा तटबंध का निर्माण कराया जाना था. ताकि बाढ़ के पानी को शहर में आने से रोका जा सके.
तटबंध का निर्माण पूरा हो जाने के बाद बखरी अनुमंडल के कई पंचायतों के साथ साथ सदर प्रखंड के एक दर्जन से अधिक पंचायत,अलौली के कई गांव सहित मानसी प्रखंड के गांव भी बाढ़ के पानी से सुरक्षित हो जाएंगे.
राशि की मांग करते हुए किसानों ने रोका था काम
भू -अर्जन की पेंच के कारण शहर एवं लाखों लोगों की सुरक्षा फंसी हुई है. अगर तटबंध निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य पूर्ण हो गया होता तो काफी पहले तटबंध भी बन गए होते. बभनगामा मौजा में इसलिए तटबंध नहीं बन पाए क्योंकि यहां कार्य आरंभ करने के पूर्व जमीन का अधिग्रहण नहीं किया और न ही किसानों को मुआवजा दिया गया.
सूत्र बताते हैं कि मुआवजा नहीं मिलने से नाराज लोगों ने वर्ष 11-12 में ही काम रोक दिया. हालांकि उसके बाद भू-अर्जन की प्रक्रिया तो हुई लेकिन रफ्तार कछुएं से भी धीमी रही. जिस कारण अब तक यह काम पूरा नहीं हो पाया.उम्मीद है कि अगले बरसात के पूर्व जमीन लीज की कार्रवाई पूरी कर शेष बचे भाग में भी तटबंध का निर्माण कार्य पूरा हो जायेगा..
चार किमी अधूरा है कार्य
बता दें कि बभनगामा मौजा के करीब चार किमी तटबंध का निर्माण पूरा नहीं हो पाया है. जिस कारण इस महत्वपूर्ण परियोजना पर ग्रहण लगा हुआ है. बेगूसराय से संतोष पुल तक करीब 24 किमी लंबे तटबंध का निर्माण काफी पहले कराया जा चुका है.
लेकिन बभनगामा मौजा में पड़ने वाले चार किमी हिस्से पर निर्माण अधूरा है. यहां करीब पांच वर्षों से काम रुका हुआ है. बताया जाता है कि यहां काम इसलिए नहीं हो पाया है क्योंकि यहां के किसानों ने काम को रोक दिया था.
छह करोड़ से अधिक हो गये खर्च
ऐसा नहीं है कि नगर सुरक्षा तटबंध का निर्माण कार्य आरंभ नहीं हुआ. करीब सात साल पहले यानी वर्ष 2009-10 में तटबंध का निर्माण कार्य आरंभ हुआ. लेकिन सात साल बाद भी कार्य पूरा नहीं हो पाया.जानकार बताते हैं कि शहर सुरक्षा तटबंध को दो साल में ही पूरा कराने का लक्ष्य था.
सूत्र बताते हैं कि कार्य रोके जाने तक तटबंध निर्माण के नाम पर 6 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुका है. लेकिन निर्माण कार्य अधूरी रहने के कारण पानी से बचाव के लिए बनी योजना पर ही पानी फिर गया.
प्रलय झेल चुके हैं शहरवासी
बीते दो दशक के दौरान यानी 1987 से 2007 के बीच चार बार बाढ़ के कारण शहर की सड़कों पर नाव चली थी. स्कूल कॉलेज, सरकारी दफ्तरों, अस्पताल में पानी प्रवेश कर गया था. कई महत्वपूर्ण फाइल नष्ट हुई थी. रेलवे लाइन के उत्तरी भाग अवस्थित लगभग सभी घरों में बाढ़ का पानी घुसा था.
इन चार साल के बाद बाढ़ ने काफी नुकसान पहुंचाया था. बार बार आ रही बाढ़ से निजात दिलाने के लिए वर्ष 2007 के बाढ़ के बाद शहर सुरक्षा तटबंध बनाने का निर्णय लिया गया. ताकि शहर के साथ साथ खगड़िया प्रखंड के कई पंचायत एवं अलौली के कई गांवों को बाढ़ के पानी से सुरक्षित किया जाए.

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