खगड़िया : शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर तरह-तरह की योजनाएं चलायी जा रही है. सरकारी स्तर पर बच्चों के हित के लिए चलाये जा रहे योजनाओं का असर भी विद्यालय में देखने को मिल रहा है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में कमी के कारण अभिभावक प्राइवेट स्कूलों की तरफ रुख कर रहे हैं.
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प्राइवेट स्कूलों में सुरक्षा के मानदंडों की हो रही अनदेखी
खगड़िया : शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर तरह-तरह की योजनाएं चलायी जा रही है. सरकारी स्तर पर बच्चों के हित के लिए चलाये जा रहे योजनाओं का असर भी विद्यालय में देखने को मिल रहा है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में कमी के कारण अभिभावक प्राइवेट स्कूलों की तरफ रुख कर रहे […]
इसी का फायदा उठा कर प्राइवेट स्कूल के संचालक सरकारी मानदंडों को ताक पर रखकर अपना साम्राज्य चला रहे हैं. हर तबका के लोग अपने नौनिहालों के सामर्थ्य के अनुरूप हर स्तर पर शिक्षा दिलाने का प्रयास भी कर रहे हैं. अधिकतर लोगों की पहली पसंद बड़े-बड़े निजी शिक्षण संस्थान ही होती है, लेकिन जिले के अधिकत्तर प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में छात्रों की सुरक्षा को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है.
इन स्कूलों में नर्सरी से लेकर आठवें व दसवें वर्ग तक के बच्चे पढ़ते है लेकिन उनके लिए मुकम्मल प्रबंध नहीं है. इसके लिए स्कूलों में ठोस प्रबंध भी नहीं किया गया है. स्कूल संचालकों की नजर सिर्फ मोटी कमाई पर लगी हुई है. विद्यालयों में शिक्षक व गैर शैक्षणिक कर्मचारी रखने का न तो कोई मापदंड है और नहीं उनका कोई सटीक माध्यम. इतना ही नहीं सुरक्षा उपायों पर भी कोई खास इंतजाम नहीं है.
अव्वल तो यह कि शिक्षक कौन है और कर्मचारी कौन कहे पहचान पाना मुश्किल होता है. न तो कोई परिचय पत्र रखते है और नहीं कोई ड्रेस कोड निर्धारित है. स्कूलों के वाहन से लेकर कैम्पस तक सब पूरी तरह असुरक्षित हैं. वाहन खटारा तो कैम्पस में सीसीटीवी कैमरा नदारद या खराब रहता है. दूसरे शब्दों में कहें तो अपवाद के एक-दो स्कूलों को छोड़कर अधिकांश प्राईवेट स्कूल मनमानी के केंद्र बन गये हैं.
शिक्षकों का भविष्य भी सुरक्षित नहीं . प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों का भविष्य भी सुरक्षित नहीं है. प्रबंधक के कृपा पर उनकी नौकरी बरकरार रहती है. स्कूल प्रबंधक अपने शिक्षकों को वेतन कितना दे रहा है, उनको कितने दिनों के लिए काम पर रखा गया है
इसकी जानकारी कभी साझा नहीं करता. स्कूलों के बेवसाइट पर भी इसकी जानकारी नहीं दी जाती है. हक की आवाज उठाने वाले शिक्षकों को स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. इतना ही नहीं स्कूल प्रबंधकों द्वारा शिक्षकों के सुरक्षा के बाबत भी कोई प्रयास नहीं किया जाता है.
भेड़ बकरी की तरह ढोये जा रहे है नौनिहाल . अधिकतर स्कूलों की ओर से छात्रों को स्कूल लाने व वापस ले जाने के लिए बस भान या टेम्पो की व्यवस्था है. इन बसों में बच्चों को भेड़ बकरी की तरह बैठाया जाता है. सीट से दोगुने संख्या में छात्रों को इन वाहनों में चढ़ाया जाता है, ताकि मोटी कमाई हो सके.
स्कूलों की ओर से चलने वाले कई वाहन काफी जर्जर स्थिति में है बावजूद धड़ल्ले से उसका उपयोग हो रहा है. वैसे बड़े वाहन का उपयोग हो रहा है जो काफी जर्जर अवस्था में है. प्राइवेट स्कूल के संचालक अभिभावकों और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.
कई स्कूलों में नहीं हैं सीसीटीवी कैमरे
अपराध रोकने और वारदातों के खुलासे के लिए आज सीसीटीवी कैमरे का कारगर योगदान है, लेकिन हद तो यह है कि अधिकतर प्राइवेट स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगाए गए हैं. कैमरे नहीं होने से बच्चों व अन्य लोगो की गतिविधियों पर नजर रखना आसान नहीं है.
कुछ जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाये भी गये हैं तो वह शोभा की वस्तु बनी हुई हैं. कुछ जगह खराब पड़ी है तो कुछ जगह जान बूझकर खराब छोड़ दिया गया है. इतना ही नहीं कई जगहों पर सीसीटीवी रखने मात्र की औपचारिकता ही पूरी की गयी है उसका विस्तार पूरे परिसर में नहीं है. इसलिए यह सिर्फ दिखावे की वस्तु रह गई है.
बिना रिकार्ड के ही बहाल हो रहे शिक्षक
प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया भी मानक के खिलाफ है. स्कूल प्रबंधक अपने मनमर्जी से शिक्षकों को बहाल कर लेते है. इनके चरित्र कैसा है पूर्व का चारित्रिक या आपराधिक इतिहास क्या है इससे इनको कोई मतलब नहीं.
ऐसे शिक्षकों के हाथों नौनिहालों का भविष्य सौंप दिया जाता है. जिनमें से कईयों का पूर्व का चरित्र संदेहास्पद रहा है. आम तौर पर कम पगार में काम करने को तैयार युवक युवतियों को शिक्षक पद पर बहाल कर ली जाती है.
क्या कहते हैं डीएम
डीएम अनिरुद्ध कुमार ने बताया कि प्राइवेट स्कूलों में गड़बड़ी व मनमानी की शिकायत मिलने पर जांच कर कार्रवाई की जायेगी. सरकार द्वारा तय मानक में कमी पाये जाने पर कार्रवाई तय है.
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