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सिमट कर रह गया हवाई अड्डा का अतीत व गौरव

कुरसेला : कभी कुरसेला का गौरव रहा हवाई अड्डा वर्तमान में अतीत की याद होकर रह गयी है. अब न ही रनवे है और न ही पंख लगे जहाज उड़ान भरते हैं. एक वक्त था जब देश-प्रदेश के शीर्ष नेता इस हवाई अड्डे पर जहाज से उतर कर कार्यक्रमों में शामिल होने जाया करते थे. […]

कुरसेला : कभी कुरसेला का गौरव रहा हवाई अड्डा वर्तमान में अतीत की याद होकर रह गयी है. अब न ही रनवे है और न ही पंख लगे जहाज उड़ान भरते हैं. एक वक्त था जब देश-प्रदेश के शीर्ष नेता इस हवाई अड्डे पर जहाज से उतर कर कार्यक्रमों में शामिल होने जाया करते थे. सुदूर क्षेत्रों के लोग जहाज के अवलोकन के लिए यहां आया करते थे. पर अब ऐसा कुछ भी नहीं है. सब अतीत व इतिहास बनकर रह गया है.

हवाई अड्डा खेत में हो गया तब्दील
हवाई अड्डा पिच को जोत कर फसलें उगायी जा रही है. मैदान का चिह्न खेतों में सिमट गया है. रनवे बनने की गुंजाइश खत्म हो गयी है. कुरसेला क्षेत्र के जनमानस हवाई अड्डा के यादों को भुलाने लगे हैं. भावी पीढ़ी कुरसेला के इस गौरव को सिर्फ सुन सकेंगे. वर्तमान में इस गौरव की यादों के रूप मे देखने को दो जहाज बची हैं. पच्चीस एकड़ क्षेत्र में फैला यह हवाई अड्डा नीजि रूप से स्वर्गीय रघुवंश नारायण सिंह, रायबहादुर कुरसेला स्टेट का था. राय बहादुर के देहांत के पश्चात स्टेट के परिवारिक मैदान का भाग खेतों के रूप में कई टुकड़ों में बंट गया है.
स्मृति अवशेष में दो जहाज मौजूद
स्मृति के तौर पर टीन के चादरों से बना एक जहाज घर और अंदर मौजूद दो पुराने जहाज का खांका बच गया है. जहाज में एक का नाम बिचक्राफ्ट बनाजा और दूसरा अरुणकासिडेन है. जानकारी अनुसार दोनों जहाज पायलट सहित पांच सीट का था. कहते हैं कि दोनों जहाज का कुरसेला स्टेट परिवार के लोग अक्सर बाहर आने जाने में उपयोग किया करते थे. अंग्रेजों द्वारा रायबहादुर के खिताब से विभूषित रघुवंश नारायण सिंह ने हवाई साधन के रूप में जहाजों को खरीद कर रनवे के रूप में बड़ा पिच बनवाया था, जिस वक्त आमजनों के लिए साइकिल की सवारी कर पाना दूभर हुआ करता था. उस समय स्टेट परिवार ने जहाज के सवारी का साधन कुरसेला के धरती पर लाकर गौरव के ऊंचाई दी थी.
राजा दरभंगा का हवाई अड्डा उपयोग : कहते हैं कि राजा दरभंगा के जमींदारी व्यवस्था में इस हवाई अड्डा का उपयोग बड़े जहाज से माल ढुलाई के लिए भी होता था, यानि देश की अजादी के पूर्व से यह हवाई अड्डा हवाई साधन के रूप में मौजूद था. देश की आजादी के पश्चात इसका उपयोग देश प्रदेश के बड़े नेताओं के हवाई साधन के रूप में होने लगा था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित अनेकों शीर्ष राजनेताओं ने इस हवाई अड्डा का हवाई साधन के तौर पर उपयोग किया था.
कहते कुरसेला स्टेट परिवार के सदस्य : कुरसेला स्टेट के स्वर्गीय रघुवंश नारायण सिंह के पौत्र प्रकाश कुमार सिंह, पकंज कुमार सिंह ने हवाई अड्डा के बाबत पूछे जाने पर बताया था कि हवाई अड्डा के भूमि का सरकार ने कभी अधिग्रहण करने का प्रयास नहीं किया था. प्रदेश के लालू, राबड़ी शासन काल में हवाई अड्डा भूमि को चरवाहा विद्यालय बनाने की चर्चा उन तक पहुंची थी. इस आशंका में स्टेट परिवार ने जमीन का जोत आबाद कर दिया. कहा गया कि सिलिंग एक्ट के तहत निर्धारित युनिट में दो सौ सत्तर एकड़ भूमि कुरसेला स्टेट परिवार को मिली थी. इसी भूमि में हवाई अड्डा का जमीन भी शामिल है. पुरखों व कुरसेला का गौरव रहा हवाई का अस्तित्व समाप्त होने का स्टेट परिवार को बेहद दुख है. यह क्षेत्र का गौरव होने के साथ कुरसेला स्टेट का अमूल्य धरोहर था.
क्यों खत्म हो गया कुरसेला का यह गौरव
ऐसा बताया जाता है कि सरकार से इस हवाई अड्डा के अधिग्रहन की बातें आयी थी. इसके लिए कागजी प्रक्रिया के कुछ काम भी हुए थे. कुरसेला स्टेट परिवार को इतनी बड़ी भूमि सरकार को सौंपना नागवार लगा. इस भूमि के स्थानीय जमीन वैल्यू के अनुसार सरकार से अधिग्रहण की राशि मिलने की उम्मीद कम थी. सरकारी तौर पर इस भूमि को असिंचित फोर लैंड श्रेणी में रखा गया था. इस वजह से जमीन का मुआवजा कम मिलने की संभावना हो गयी थी. इसके बाद आनन फानन में जमीन को जोत अबाद कर हवाई अड्डा मैदान को कृषि भूमि बना दिया गया था. गुजरे समय में स्टेट परिवार के आपसी बंटवारे में रनवे के मैदान खेतों के रूप में टुकड़ों में बंट गया था.

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