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हाइस्कूलों में शिक्षकों की कमी

विचार . मैट्रिक परीक्षा परिणाम से शिक्षा व्यवस्था पर उठता सवाल मैट्रिक परीक्षा का परिणाम आने के बाद जिले के बुद्धिजीवियों में कई चर्चाएं हो रही है. इस बार मैट्रिक की परीक्षा में 45 फीसदी छात्र फेल कर गये हैं. इस का मूल कारण कदाचार पर रोक लगाना माना जा रहा है. कटिहार : मैट्रिक […]

विचार . मैट्रिक परीक्षा परिणाम से शिक्षा व्यवस्था पर उठता सवाल

मैट्रिक परीक्षा का परिणाम आने के बाद जिले के बुद्धिजीवियों में कई चर्चाएं हो रही है. इस बार मैट्रिक की परीक्षा में 45 फीसदी छात्र फेल कर गये हैं. इस का मूल कारण कदाचार पर रोक लगाना माना जा रहा है.
कटिहार : मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट आने के बाद जिले में माध्यमिक शिक्षा को लेकर बौद्धिक वर्ग में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गयी है. दरअसल, मैट्रिक परीक्षा के परिणाम में इस बार करीब 45 फीसदी परीक्षार्थी फेल कर गये हैं. हालांकि इस तरह के परिणाम का मूल कारण कदाचार मुक्त परीक्षा होना माना जा रहा है.
पिछले वर्ष जिस तरह कदाचार को लेकर पूरी दुनिया में बिहार की किरकिरी हुई थी. उससे सबक लेते हुए सरकार ने इस बार कदाचार मुक्त परीक्षा को संपन्न कराने को लेकर कई तरह की व्यवस्था की थी. जिसती वजह से परीक्षार्थी कदाचार नहीं कर सके. बौद्धिक वर्ग में मैट्रिक का परिणाम आने के बाद यह चर्चा जोरों पर है कि परीक्षार्थी के खराब परिणाम के लिए उन्हें सिर्फ दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. इसके लिए सरकार भी दोषी है. पिछले कुछ वर्षों से छात्र-छात्राओं में पढ़ने की ललक बढ़ी है लेकिन सरकार सुविधा देने में नाकाम रही है. जिले के अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी वर्षों से है.
आर्थिक रूप से संपन्न छात्र किसी तरह कोचिंग से अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लेते हैं लेकिन गरीब व आर्थिक रूप से विपन्न छात्र-छात्राओं की पहुंच कोचिंग तक पहुंच नहीं हो पाती है. स्थानीय शिक्षा विभाग के अनुसार मैट्रिक परीक्षा में करीब 30071 छात्र-छात्रायें सम्मिलित हुए थे, जिसमें करीब 17000 छात्र-छात्राओं ने ही सफलता पायी है.
बगैर शिक्षक की हो रही पढ़ाई : जिले के अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों में छात्र-छात्राओं के अनुपात में शिक्षकों की भारी कमी है. शिक्षकों की कमी की वजह से छात्र-छात्राओं की पढ़ाई बाधित हो रही है. स्थानीय शिक्षा विभाग के अनुसार जिले के 157 माध्यमिक विद्यालय में करीब 60 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं.
इसके लिए मात्र 578 शिक्षक कार्यरत है. औसतन सौ छात्र-छात्राओं पर एक शिक्षक कार्यरत है. इससे भी अधिक बड़ी बात यह है कि कई अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों में विषयवार शिक्षक ही नहीं है. खासकर गणित व विज्ञान के शिक्षकों की भारी कमी है. बगैर शिक्षक के ही बेहतर पढ़ाई की उम्मीद करना व उसके बाद परीक्षा में अच्छा परिणाम लाना समझ से परे है.
कहते हैं डीइओ : जिला शिक्षा पदाधिकारी श्रीराम सिंह ने इस संदर्भ में कहा कि मैट्रिक परीक्षा 2016 का परिणाम को संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता है. बेहतर परिणाम के लिए व शीघ्र ही माध्यमिक विद्यालय के प्रधान की बैठक कर इसकी समीक्षा करेंगे व आवश्यक दिशा निर्देश देंगे.
कोचिंग के भरोसे छात्र
बदहाल माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था की वजह से ही जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में दुकान की तरह कोचिंग संस्थान सज गये हैं. यूं कहें कि सरकारी विद्यालय के छात्र-छात्राएं कोचिंग के भरोसे ही अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं. हालांकि कोचिंग संस्थान का लाभ भी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार के छात्र ही ले रहे हैं, जबकि गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भगवान भरोसे है. सरकार शिक्षा में गुणात्मक सुधार को लेकर भले ही बड़े-बड़े दावे कर रहे हो, लेकिन जमीनी हकीकत उससे कोसों दूर है.
85 विद्यालयों में 81 शिक्षक
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत हर पंचायत में उच्च विद्यालय की स्थापना के उद्देश्य से राज्य सरकार मध्य विद्यालय को उच्च विद्यालय में उत्क्रमित कर रही है. अब तक जिले के 85 पंचायतों में मध्य विद्यालय को उच्च विद्यालय में परिवर्तित कर पढ़ाई प्रारंभ कर दी गयी है.
मैट्रिक परीक्षा 2016 में इन विद्यालयों के छात्र-छात्राएं भी सम्मिलित हुई थीं. इन 85 माध्यमिक विद्यालयों में मात्र 81 माध्यमिक शिक्षक पदस्थापित हैं. सरकार की इस व्यवस्था से माध्यमिक शिक्षा की बदहाल स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. दूसरी तरफ सरकार विद्यालय में बगैर शिक्षक दिये कदाचार मुक्त परीक्षा को लेकर कड़े नियम बनाये हैं, जिसकी वजह से परीक्षा का परिणाम प्रभावित हुआ है.

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