कटिहार: अल्पसंख्यकों की बेहतरी के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गये बहू क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (एमएसडीपी) अपने उद्देश्य में सफल होता नहीं दिख रहा है. एमएसडीपी के तहत कई योजनाओं को जमीन पर उतारने की कोशिश जरूर हुई है. लेकिन इस योजना का लाभ या तो अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नहीं मिल रहा है या फिर यह समुदाय लाभ उठाना नहीं चाहते हैं.
योजनाओं के क्रियान्वयन व उसकी मौजूदा स्थिति से यही प्रतीत होता है. अब यह तो जांच का विषय है कि आखिर एमएसडीपी का लाभ वास्तविक लाभार्थी तक क्यों नहीं पहुंच रहा है. इसी तरह शहर के एमजेएम महिला कॉलेज में इस योजना से छात्रवास बनाया गया है. लेकिन इसमें एक भी छात्र नहीं रहती हैं. एमएसडीपी योजना की स्थिति में सुधार के प्रति स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उदासीन दिखते हैं.
जिला निगरानी एवं सतर्कता समिति, जिला 20 सूत्री कार्यान्वयन समिति, जिला परिषद सहित कई तरह की बैठकें योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए होती है. इन बैठकों में सांसद, विधायक व तमाम तरह के जनप्रतिनिधि भी मौजूद रहते हैं. लेकिन योजना की स्थिति से ऐसा ही लगता है कि इस तरह की बैठक महज विभागीय गाइड लाइन की औपचारिकता भर के लिए होती है. वित्तीय वर्ष 2014-15 के समाप्त होने के बाद विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं की स्थिति की पड़ताल करने में जुटी है. इसी कड़ी में दो दिनों से प्रभात खबर अपनी पड़ताल को आपके सामने रख रही है. एमएसडीपी योजना के प्रभात पड़ताल की तीसरी व अंतिम किस्त प्रस्तुत की जा रही है.
यह है एमएसडीपी का उद्देश्य
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रलय भारत सरकार व अल्पसंख्यक कल्याण विभाग बिहार सरकार की मार्गदर्शिका के अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय के जीवन स्तर में सुधार व पिछड़े अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्र में समग्र विकास कर सामाजिक विकास के असंतुलन को दूर करना ही एमएसडीपी का प्रमुख उद्देश्य है. एमएसडीपी योजना की दस फीसदी राशि से कौशल विकास व स्वास्थ्य पर खर्च किया जाना है. प्रखंड स्तर प्रमुख की अध्यक्षता में गठित प्रखंड स्तरीय समिति योजना प्रस्ताव जिला स्तरीय 15 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन को भेजता है. योजना प्रस्ताव को जिला स्तरीय 15 सूत्री कार्यान्वयन समिति अपनी अनुशंसा के साथ राज्य कमेटी के पास भेजने का प्रावधान है.
जनप्रतिनिधि उदासीन
एमएसडीपी योजना के प्रति स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उदासीन हैं. योजनाओं की समीक्षा के लिए कमोवेश जिला प्रशासन द्वारा हर माह बैठक की जाती है. साथ ही सांसद की अध्यक्षता जिला सतर्कता एवं निगरानी समिति की बैठक होती है. इस बैठक में खासकर केंद्र प्रायोजित योजनाओं की समीक्षा किये जाने का प्रावधान है. इसके अतिरिक्त प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता में जिला 20 सूत्री कार्यान्वयन समिति की बैठक होती है. ऐसा नहीं है कि उन बैठकों में समीक्षा नहीं होती है, बल्कि बैठक समीक्षा भी होती है तथा प्रस्ताव भी लिये जाते हैं. लेकिन प्रस्ताव अभिलेख तक ही सीमित रह जाता है. इन तमाम बैठकों में सांसद व विधायकों आदि प्रमुख जनप्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं. लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात वाली ही होती है.
कहते हैं डीएम डब्ल्यूओ
इस संदर्भ में जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी इबरार आलम ने कहा कि अल्पसंख्यक छात्रावास शुरू करने के लिए वे कई बार पहल किये हैं. कई तरह की समस्याएं हैं, जिसकी वजह से छात्रवास अब तक शुरू नहीं हो सका है.
अल्पसंख्यक बाहुल्य है 13 प्रखंड
कटिहार जिले में 13 प्रखंड को एमएसडीपी के तहत अल्पसंख्यक बाहुल्य घोषित किया गया है. जिले के 16 प्रखंड में समेली, डंडखोरा व कुरसेला में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी 20 फीसदी है. अमदाबाद, आजमनगर, बारसोई, बलरामपुर, बरारी, फलका, कोढ़ा, हसनगंज, कटिहार, मनिहारी, मनसाही, प्राणपुर एवं कदवा अल्पसंख्यक बाहुल्य प्रखंड के रूप में चिह्नित है. नगर निगम कटिहार व नगर पंचायत मनिहारी के कई वार्ड हैं, जहां अल्पसंख्यक आबादी 50 फीसदी से अधिक है. जिले में 45 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी है. बिहार में 25 फीसदी व देश में 19.33 फीसदी आबादी अल्पसंख्यक की है.
लापरवाही का नमूना
शहर के एमजेएम महिला कॉलेज के समीप अल्पसंख्यक बालिकाओं के लिए अल्पसंख्यक बालिका छात्रवास बनाया गया है. वर्ष 2013 में यह छात्रवास बन कर तैयार हो गया है. लेकिन अब तक इस छात्रवास में एक भी अल्पसंख्यक बालिका नहीं रहती है. बालिका छात्रवास का यह आलीशान भवन महज शहर की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है. इसी तरह शरीफगंज में अल्पसंख्यक छात्रवास वर्षो पूर्व बनाया गया. लेकिन इसमें भी अल्पसंख्यक छात्र नहीं रहते हैं, जबकि कटिहार शहर में बड़ी तादाद में अल्पसंख्यक छात्र-छात्रएं अध्ययनरत हैं. विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर रहे अल्पसंख्यक छात्र-छात्र निजी लॉज व किराये का कमरा लेकर रहते हैं.