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शिक्षकों की कमी से बंगला साहित्य खतरे में

प्रतिनिधि, आबादपुरकटिहार जिले का बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र जो कि पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित है तथा जहां के अधिकतर लोगों का सांस्कृतिक रहन-सहन बंगला कल्चर का है. वहां का आलम यह है कि बंगला शिक्षक के अभाव में यह साहित्य लुप्त होने के कगार पर है. भाजपा नेता सह संयुक्त सचिव बिहार-बंगाली एसोसिएशन तापस […]

प्रतिनिधि, आबादपुरकटिहार जिले का बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र जो कि पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित है तथा जहां के अधिकतर लोगों का सांस्कृतिक रहन-सहन बंगला कल्चर का है. वहां का आलम यह है कि बंगला शिक्षक के अभाव में यह साहित्य लुप्त होने के कगार पर है. भाजपा नेता सह संयुक्त सचिव बिहार-बंगाली एसोसिएशन तापस कुमार सिन्हा के अनुसार आज पूरे विधानसभा क्षेत्र में शायद ही कोई विद्यालय ऐसा हो, जिसमें बंगला शिक्षक पदस्थापित हों व इस विषय की पढ़ाई होती हो. बंगला साहित्य के प्रति इस प्रकार की घोर उपेक्षा के कारण ही यह भाषा इस इलाके में दम तोड़ रही है. श्री सिन्हा के अनुसार अस्सी के दशक में इसी क्षेत्र के सभी विद्यालयों में शिक्षक तथा पठन-पाठन की व्यवस्था के कारण यहां दो-तिहाई से अधिक छात्र बंगला भाषी हुआ करते थे, पर दिनों-दिन शिक्षक की कमी के चलते आज मुकाम ये है कि किसी भी विद्यालय में ना तो इस विषय की पढ़ाई हो रही है और ना तो छात्र मजबुरीवश इस विषय को रखना चाह रहे हैं. भाजपा नेता के अनुसार बंगला साहित्य ने इस देश को राष्ट्र गान के साथ-साथ नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्रदान किया है तथा बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र के लोगों का इस भाषा से अत्यधिक लगाव जुड़ा हुआ है. बावजूद इसके इस भाषा के प्रति सरकार की उदासीनता यहां के लोगों के किया जानेवाला एक सौतेला व्यवहार है. बंगला भाषा के प्रति इस क्षेत्र के लोगों को लगाव को देखते हुए मिहिर मुखर्जी, नारायण पांडेय, अजीत दास, अमल बसाक, अरुण आचार्य, भानू राय, विजय कुमार साह, भरत दास, शिव नारायण दास, बसंत दास, मनोज दास, तारणी दास आदि लोगों ने अविलंब शिक्षा विभाग से इस क्षेत्र के सभी विद्यालयों में बंगला शिक्षक की पदस्थापना की मांग की है.

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