गलगलिया : आधुनिकता की चकाचौंध से अब ग्रामीण क्षेत्र भी रोशन होने लगे हैं. खासकर शादी-विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर बैंडबाजों की जगह डीजे का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. आलम यह है कि प्रखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बसे गांव की गलियों में डीजे की धुन पर ग्रामीण युवाओं का झुमना आम नजारा बन गया है.
आज मेरे यार की शादी है, दुल्हे का सेहरा सुहाना लगता है जैसे., अरे नहीं-नहीं..तेरा तन डोले, मेरा मन डोले एवं जयमाल वाली सड़ियां… जी हां, कुछ ऐसी ही स्थिति है शहर-गांव में बजने वाले गीत-संगीत और इसकी डिमांड का. वर्तमान युवा पीढ़ी में पुरानी अवधारणाएं अब करवट लेने लगी है.
शादी-विवाह का सीजन आते ही युवाओं को गीत-संगीत पर थिरकने का मौका मिल जाता है. लेकिन, समय के साथ परंपरागत बैंड-बाजे की जगह कानफाड़ू डीजे ने ले ली है.कुछ समय पहले तक शहर में ही डीजे का प्रचलन बढ़ा था. लेकिन, अब गांव-देहात में भी डीजे की डिमांड बढ़ गयी है. गांव की गलियों में भी अब डीजे की धुन पर युवा थिरक रहे हैं. डीजे की बोल जितनी समझ में नहीं आती उससे अधिक इसकी तेज आवाज के चलते शरीर और धड़कन में कंपन महसूस होती है.
इस कानफाड़ू और सेहत बिगाड़ने वाले डीजे का आकर्षण युवाओं और बच्चों में अधिक है. डीजे में गुम हो रही मधुर वैवाहिक गीत संगीत. डीजे की तेज आवाज में बैंड बाजे के कर्णप्रिय मधुर संगीत गुम होती जा रही है. अत्यधिक तेज आवाज का असर स्वास्थ्य पर तो पड़ ही रहा है, पारंपरिक बैंड-बाजे की धुन को भी आघात पहुंच रहा है. हालांकि, शादी-विवाह को लेकर घर के बड़े-बुजूर्ग आज भी बैंड पार्टी को ही अहमियत देना चाह रहे हैं. लेकिन, घर के युवाओं की पसंद के आगे उनकी एक नहीं चल रही है.
डीजे पर थिरक रही ंमहिलाएं भी
कहीं-कहीं डीजे पर महिलाओं को भी थिरकते देखा जाता है. गलगलिया निवासी बुधन मांझी बताते हैं कि यह युवा पीढ़ी की देन है. बैंड बाजे लोगों के रस्मो-रिवाज, धार्मिक, सामाजिक मान्यताओं से जुड़़ा है.
जिसे धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में आज भी बजाया जाता है. इसलिए यह भी समाप्त नहीं होगा. लेकिन, डीजे ने सामाजिक, सांस्कृतिक तारतम्य को कुछ पीछे जरूर धकेल दिया है. . यही वजह है कि बारात में बड़े-बुजुर्ग की संख्या घटती जा रही है. रामचंद्र राय कहते हैं कि यह अपसंस्कृति है जिसे लेकर समाज को जगना होगा.