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निर्जला उपवास के साथ मना जीवितपुत्रिका व्रत
कलिकाल में पुत्र के दीर्घायु होने के लिए व्रत का है काफी महत्व कुश की आकृति बना पूजा-पाठ करने से सौभाग्य व वंश की होती है बढ़ोतरी पुत्र की लंबी उम्र के लिए माताएं करती हैं व्रत जहानाबाद : पुत्र की लंबी उम्र के लिए मनाया जाने वाला पर्व जिउतिया जिले में श्रद्धा के साथ […]
कलिकाल में पुत्र के दीर्घायु होने के लिए व्रत का है काफी महत्व
कुश की आकृति बना पूजा-पाठ करने से सौभाग्य व वंश की होती है बढ़ोतरी
पुत्र की लंबी उम्र के लिए माताएं करती हैं व्रत
जहानाबाद : पुत्र की लंबी उम्र के लिए मनाया जाने वाला पर्व जिउतिया जिले में श्रद्धा के साथ संपन्न हो गया. इस व्रत को लेकर महिलाओं ने शुक्रवार को 24 घंटे का निर्जला उपवास रखा. महिलाओं ने बिना अन्न-जल ग्रहण किये पूजा पाठ कर पुत्र की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना की.
धार्मिक आस्था से जुड़ा यह व्रत माताओं के लिए खास होता है तथा प्रत्येक माता अपनी संतान के लिए कठिन तप कर जिउतिया का व्रत करती हैं. पुत्र के दीर्घायु के लिए माताओं ने जीवित पुत्रिका भगवान के कुश की अाकृति बना पूजा-पाठ एवं व्रत करती हैं. पुराणों के अनुसार कुश की आकृति बना कर पूजा करने से सौभाग्य एवं वंश की बढ़ोतरी होती है. वहीं जितबंधन के धारण करने से लोगों को कई प्रकार की विपत्तियों से भी मुक्ति मिलती है.
पंडित चंद्रेश द्विवेदी के अनुसार जब द्वापर युग का अंत हो रहा था, उसी समय अस्थामा के द्वारा बेटे को मरा देख पांडव काफी दुखी थे. दुख से व्याकुल द्रौपदी ने ब्राह्मणों में श्रेष्ठ धौम्य ऋषि के पास गयी तथा बालक के दीर्घायु होने के उपाय पूछा. ऐसा मानना है कि सतयुग में सत्यवान एवं सत्य वचन बोलने वाला जिउतवाहक नामक राजा ससुराल में रहा करता था. गरुड़ वहां प्रत्येक दिन आकर गांव के बच्चे को अपना आहार बनाया करता था. सूर्य वंश में जन्मे शालिवाहन का पुत्र राजा जिमूतवाहन महिलाओं के रोने से काफी दुखी थे. राजा ने बच्चों के बदले पक्षी राज गरुड़ को अपना तन आहार स्वरूप सौंप दिया. पक्षी राज गरुड़ को राजा ने जैसे ही अपना दायां अंग खाने को दिया कि गरुड़ प्रसन्न हो गये तथा राजा को वर मांगने को कहा. ऐसा मानना है कि आश्विन कृष्ण पक्ष से रहित शुभ दिन अष्ठमी तिथि ब्रह्मा भाव को प्राप्त हो गया है.
इसी दिन पक्षीराज गरुड़ ने राजा से प्रभावित होकर नाग लोक से अमृत लाकर मनुष्य की मृत हड्डियों पर अमृत बरसाया था. अमृत की वर्षा होते ही सभी मृत लोग जीवित हो गये. अत: अष्ठमी को जिउतिया व्रत कर नौवीं को पारण करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. वहीं शुद्ध अष्ठमी के दिन व्रत नही करने से सारे फल नष्ट हो जाते हैं.
समय के साथ लुप्त हो रहे पारंपरिक गीत : आपसी सौहार्द की अमिट पहचान जिउतिया के गीत लगभग आम लोगों से दूर होते जा रहे हैं. ऐसे कार्यक्रम से आपसी सद्भाव तो कायम रहता ही था, साथ साथ मिल्लत की भावना ग्रामीणों में कूट-कूट कर भरी थी. लेकिन बदलते दौर और समय ने सबको अलग-थलग कर दिया है. जिले में पॉप सांग के आगे जितिया पर गाये जाने वाले पारंपरिक गीत धीरे- धीरे लुप्त होते जा रहे है. एक समय में जितिया के मौके पर गांव- गिरांव पारंपरिक गीतों से गुलजार हुआ करते थे. लेकिन बदलते युग में आम लोग अपनी परंपरा से दूर होते दिखायी दे रहे हैं. बदलते दौर में लोगों पर पश्चिमी सभ्यता हावी होती जा रही है. पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित लोग अपनी पौराणिक सभ्यता को भूलते जा रहे हैं.
आज की युवतियां साड़ी पहन जितिया का गीत गाना एवं नाचना पसंद नहीं करतीं. वर्षों पूर्व जितिया के मौके पर हर गांव एवं कसबे में लोग पारंपरिक वाद्य यंत्र मानर, ढोल एवं झाल लेकर झूमते रहते थे. वाद्य यंत्र की आवाज से हर कसबा गुलजार हुआ करता था. बदलते समय में आज के वाद्ययंत्र डीजे, आरकेस्ट्रा के सामने पुराने वाद्ययंत्र की आवाज मंद पड़ गयी है. जिउतिया के मौके पर गाये जाने वाले गीत ‘अहे राम गामा पइसी पूजवइन बाबा गोरइया के डाइन के रखवार ‘ सहित कई ऐसे गीत इक्के-दुक्के जगह पर ही सुनने को मिलते हैं.
इलेक्ट्रोनिक वाद्य यंत्र के आगे गुम होते पारंपरिक गीत जिउतिया पर पूछने पर अमैन निवासी तीजा दास कहते हैं कि नयका फैसन में लईकन सबकुछ भूल गइलन ? टीवी सिनेमा के आगे लईकन पारंपरिक गीत से दूर चलल जाइत हथीन. सिनेमा वाला विदेशी नाच गाना लोग अब ज्यादा पसंद कर हथ. वहीं बुढ़ापे का दर्द बयान करते हुए शिवजतन दास बताते हैं कि हमनी के जमाना में जितिया पर कई तरह के तमाशा होव हल सब खतम हो गेल.
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