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काम सालों भर, भुगतान 10 माह का

काम सालों भर, भुगतान 10 माह का लाचारी: सरकारी स्कूलों में काम करने वाले रसोइयों का हाल-बेहाल हैमध्याह्न भोजन योजना की बड़ी जबावदेही निभाने वाले रसोइयों से हो रही है ज्यादतीबारह महीने काम लेकर दिया जाता है दस माह का मानदेयबैंक खाते से होता है भुगतान , पीएफ से हैं अनजान सरकार के नियमों का […]

काम सालों भर, भुगतान 10 माह का लाचारी: सरकारी स्कूलों में काम करने वाले रसोइयों का हाल-बेहाल हैमध्याह्न भोजन योजना की बड़ी जबावदेही निभाने वाले रसोइयों से हो रही है ज्यादतीबारह महीने काम लेकर दिया जाता है दस माह का मानदेयबैंक खाते से होता है भुगतान , पीएफ से हैं अनजान सरकार के नियमों का हवाला देकर श्रम कानूनों की होती है अनदेखी इंट्रो: स्कूलों में मध्याह्न भोजन बनाने वाले रसोइये का हाल- बेहाल है.उनसे काम तो बारह महीने लिया जाता है लेकिन मानदेय का भुगतान सिर्फ दस माह का ही किया जाता है. जिले में नौ सौ विद्यालय हैं, जिसमें 2209 रसोइया कार्यरत हैं. .विद्यालय रसोइया को न्यूनतम मजदूरी से भी काफी कम मानदेय का भुगतान किया जाता है. जो न्यूनतम मजदूरी को मुंह चिढ़ा रहा है. जहानाबाद नगर. काम सालों भर, भुगतान दस माह का. जी हां, कुछ यही हाल विद्यालय रसोइया का है. बच्चों को मध्याह्न भोजन योजना उपलब्ध कराने की बड़ी जबावदेही निभाने वाले विद्यालय रसोइया का हाल-बेहाल है. उनसे काम तो बारह महीने लिया जाता है लेकिन मानदेय का भुगतान सिर्फ दस माह का ही किया जाता है. इसके लिए भी उन्हें अधिकारियों तथा विद्यालय शिक्षा समिति की जिल्लतें झेलनी पड़ती है. विद्यालय रसोइया के साथ सरकार के नियमों का हवाला देकर श्रम कानूनों की अनदेखी की जा रही है. जिले में नौ सौ विद्यालय हैं, जिसमें 2209 विद्यालय रसोइया कार्यरत हैं. विद्यालय में एमडीएम जैसी महत्वपूर्ण योजना की जिम्मेवारी जिनके कंधों पर है उनका हाल काफी फटेहाल है. न तो समय पर मानदेय का भुगतान ही होता है और न ही न्यूनतम मजदूरी ही देय होती है. ऐसे में विद्यालय रसोइया के साथ ही उनके परिजनों का भी हाल-बेहाल रहता है. कभी जांच के नाम पर तो कभी खाना चखने के नाम पर उनके साथ अक्सर ज्यादती होती रहती है. फिर भी बेरोजगारी के कारण विद्यालय रसोइया अपनी जिम्मेवारी निभाने में जुटे रहते हैं. विद्यालय रसोइया को जुलाई माह तक सिर्फ एक हजार रुपये मानदेय दिया जाता था. लेकिन जुलाई माह के बाद 1250 रुपये मानदेय का भुगतान किया जा रहा है. जिले में नवंबर माह तक विद्यालय रसोइया को मानदेय का भुगतान किया जा चुका है. कैसे होता है रसोइया का चयन :विद्यालय में छात्रों की संख्या के आधार पर विद्यालय रसोइया का नियोजन किया जाता है. जिन विद्यालयों में बच्चों की संख्या 25 तक होती है वहां एक रसोइया का नियोजन विद्यालय शिक्षा समिति द्वारा किया जाता है. वहीं जिन विद्यालयों में छात्र-छात्राओं की संख्या 100 तक होती है वहां दो रसोइया का नियोजन किया जाता है. छात्रों की संख्या जैसे ही 100 से अधिक होती है विद्यालय में तीन रसोइये का नियोजन किया जाता है. जिले में फिलवक्त 2209 विद्यालयों में रसोइया कार्यरत हैं. श्रम कानूनों की हो रही अनदेखी :सरकार के नियमों का हवाला देकर श्रम कानूनों की अनदेखी की जा रही है. सरकार द्वारा श्रम कानूनों के तहत संगठित तथा असंगठित क्षेत्र के कुशल तथा अकुशल मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन का निर्धारण किया गया है. लेकिन विद्यालय रसोइया को न्यूनतम मजदूरी से भी काफी कम मानदेय का भुगतान किया जाता है. जो न्यूनतम मजदूरी को मुंह चिढ़ा रहा है. रसोइयों द्वारा न्यूनतम मजदूरी भुगतान किये जाने को लेकर हमेशा आंदोलन किया जाता रहा है. लेकिन सरकार द्वारा उन्हें 1250 रुपये मानदेय का भुगतान किया जाता है. महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही बेमानी :सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण की बातें तो की जाती है लेकिन विद्यालय रसोइया को न्यूनतम मजदूरी से भी कम मानदेय का भुगतान किया जाता है .ऐसे में महिला सशक्तिकरण की बातें बेमानी लगती है. विद्यालयों में 90 प्रतिशत रसोइया गरीब महिलाएं हैं जिनसे काम तो सालो भर लिया जाता है लेकिन 1250 रुपये का मानदेय 10 माह का ही भुगतान किया जाता है. ऐसे में महिलाएं कितनी सशक्त होंगी यह सोचनीय हैं .

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