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जहानाबाद में आज भी मैला ढोने में लगे हैं 358 लोग
जहानाबाद (नगर) : आजादी के 67 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में मैला ढोने की प्रथा अब भी कई जगहों पर जारी है. इस प्रथा को समाप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के कानून बने किंतु सामाजिक व्यवस्था के तहत आज भी लोग इस घिनौने कार्य से बाहर नहीं आये हैं. मैला ढोने […]
जहानाबाद (नगर) : आजादी के 67 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में मैला ढोने की प्रथा अब भी कई जगहों पर जारी है. इस प्रथा को समाप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के कानून बने किंतु सामाजिक व्यवस्था के तहत आज भी लोग इस घिनौने कार्य से बाहर नहीं आये हैं.
मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए देश के कई राज्यों में सीधे समाज से जुड़ कर काम करनेवाली संस्था राष्ट्रीय गरिमा अभियान ने बताया कि इस कार्य में जिले के करीब 358 महिला एवं पुरुष लगे हुए हैं. उनकी स्थिति काफी दयनीय है. उनके पास न राशन कार्ड है न रहने को घर है. देश तो आजाद हो गया लेकिन मैला ढोनेवाले व्यक्ति आज भी गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं. उन्हें सरकार द्वारा अब तक आजाद नहीं कराया गया है. वे भी इस प्रथा से बाहर निकलना चाहते हैं लेकिन उन्हें निकलने ही नहीं दिया जाता.
स्थानीय सत्यकार रेस्ट हाऊस में जिले में मैला ढोनेवालों के साथ संस्था द्वारा कार्यशाला आयोजित की गयी. इसमें 62 की संख्या में महिलाओं एवं पुरुषों ने भाग लिया. कार्यशाला में भाग लेनेवाले सभी इस कार्य को छोड़ने की इच्छा रखते हैं लेकिन उन्हें इस कार्य को छोड़ने नहीं दिया जाता.
संस्था ने मैला ढोने की प्रथा समाप्त करते हुए इस कार्य में लगे लोगों का पुनर्वास कराने की मांग सरकार से की. संस्था द्वारा बताया गया कि देश के कई राज्यों में इस प्रथा को समाप्त करा दिया गया है. परंतु 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 4,300 मैला ढोनेवाले कमाऊ पखाना ढोनेवाले लोग हैं. इस आंकड़े से यह स्पष्ट होता है कि देश में एक विशेष जाति के लोग इस कार्य में आज भी लगे हुए हैं.
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