जहानाबाद : करीब एक हफ्ते पूर्व शहर के ऊंटा रेलवे गुमटी के समीप एक वृद्ध ट्रेन से गिरकर गंभीर रूप से जख्मी हो गया था, जो इलाज के क्रम में अस्पताल में दम तोड़ दिया. उक्त अज्ञात लाश को पहचान के लिए रेल थाने की पुलिस कुछ दिनों तक अपने पास ही रखी, लेकिन दो-तीन दिनों तक कोई दावेदार नहीं पहुंचा था.
अचानक दो दिनों पूर्व धनरूआ थाना के वीर गांव निवासी रामशकल साव अपने परिजनों के साथ अपने भाई का टोह लेने जहानाबाद रेल थाना पहुंचा था. रामशकल का भाई वासुदेव साव विगत एक वर्ष से घर से लापता है. परिजनों को आशंका हुई कि कहीं उक्त लाश मेरे ही परिजन की तो नहीं.
लिहाजा पुलिस के समक्ष पहुंचकर जल्दबाजी दिखायी और लाश की शिनाख्त किये बगैर दाह-संस्कार के लिए उसे अपने साथ लेकर चल दिये. दाह-संस्कार के लिए जब शैया पर शव को सजाया जा रहा था तो उस वक्त अचानक किसी परिजन की नजर उक्त लाश के पैर पर गयी.
दरअसल दशरथ के पांव की दोनों अंगुलियां सटी थी जो शव को देखने से सत्य प्रतीत नहीं हो रहा था, लेकिन असमंजस में यह परिवार अब श्मशान घाट से लाश को लौटाये बगैर उसका वहीं दाह-संस्कार कर दिया. घर में परिजनों के बीच अभी मंथन का दौर चल ही रहा था कि अचानक जहानाबाद रेल थाना की पुलिस उक्त परिजनों को कॉल कर बुलाती है.
यहां पहुंचने पर परिजनों ने देखा कि लाश का असली दावेदार हंगामा मचा रखा है और तरह-तरह के निशान बताकर लाश की शिनाख्त में जुटा था. इसी बीच बाजिदपुर गांव निवासी मनीष ने बताया कि मेरे पिता जी के पांव की दोनों अंगुलियां सटी नहीं थी और फोटो से पहचान कराकर दशरथ साव को बताया. उक्त लाश मेरे पिताजी उपेंद्र यादव की थी, जिसके बाद अब पुलिस के होश उड़ गये.
पशोपेश में पड़ी पुलिस किसी तरह शव के असली दावेदार को समझा-बुझाकर घर वापस लौट आयी. मृतक के पुत्र ने बताया कि उसे उसके ममेरे भाई से सूचना मिली थी कि तुम्हारे पिताजी दुर्घटना में घायल हैं और उनका इलाज चल रहा है जिसके बाद परिजनों ने अस्पतालों का भी खाक छान मारा. किसी ने उक्त घायल की वीडियो दिखायी तो पता चला कि वह शख्स ही मेरे पिता हैं जिनका शव पुलिस ने दूसरे को सौंप दिया.
क्या कहती है पुलिस
लाश को थाने में 72 घंटे शिनाख्त के लिए रखा जाता है. इसी क्रम में लाश दावेदार आकर शव की शिनाख्त करता है. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर कुछ तस्वीरें भी मांगी थीं जिससे शव का मिलान भी हो रहा था, लेकिन उस वक्त किसी ने शव के पांव पर ध्यान नहीं दिया.
अपने परिजन की लाश बताकर सभी लोग उसे अपने साथ ले गये और दाह-संस्कार कर डाला. अगले ही दिन शव के असली दावेदार तस्वीरों के साथ सूचना पर थाना पहुंचते हैं जहां शंका होने पर दोनों परिवारों को सामने बुलाया गया.
दूसरे पक्ष ने भी बाद में स्वीकार किया कि जल्दबाजी में हमलोग शव नहीं देख पाये थे. दाह-संस्कार के वक्त कुछ शंकाएं हुई थीं. अब पुलिस भी लाश के असली दावेदार मनीष को ही मान रही है. इस चूक के लिए रामशकल साव का पूरा परिवार जवाबदेह है.
कृष्ण कुमार, थानाध्यक्ष, जीआरपी