फिर मचेगी जनता धोती व साड़ी की धूम
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हस्तकरघा उत्पादों पर अनुदान देने की घोषणा से बुनकरों में खुशी
फिर मचेगी जनता धोती व साड़ी की धूम जहानाबाद : जनता धोती व साड़ी से पहचान बना चुके सदर प्रखंड के मोहनपुर गांव का खोया गौरव फिर से लौटने की उम्मीद जगी है. मुख्यमंत्री द्वारा हस्तकरघा दिवस पर की गयी घोषणा से बुनकरों में काफी खुशी है. उन्हें उनका फटेहाल हस्तकरघा उद्योग में तेजी आने […]
जहानाबाद : जनता धोती व साड़ी से पहचान बना चुके सदर प्रखंड के मोहनपुर गांव का खोया गौरव फिर से लौटने की उम्मीद जगी है. मुख्यमंत्री द्वारा हस्तकरघा दिवस पर की गयी घोषणा से बुनकरों में काफी खुशी है. उन्हें उनका फटेहाल हस्तकरघा उद्योग में तेजी आने व फिर से घर बैठे रोजगार मिलने की संभावना जी है. हस्तकरघा उत्पाद की बिक्री पफिर मचेगी जनता धोती व साड़ी की धूम
जहानाबाद : जनता धोती व साड़ी से पहचान बना चुके सदर प्रखंड के मोहनपुर गांव का खोया गौरव फिर से लौटने की उम्मीद जगी है. मुख्यमंत्री द्वारा हस्तकरघा दिवस पर की गयी घोषणा से बुनकरों में काफी खुशी है. उन्हें उनका फटेहाल हस्तकरघा उद्योग में तेजी आने व फिर से घर बैठे रोजगार मिलने की संभावना जी है. हस्तकरघा उत्पाद की बिक्री पर अनुदान दिये जाने की घोषणा से पुश्तैनी धंधा को निश्चित रूप से बढ़ावा मिलेगा. अनुदान मिलने व कीमत कम होने से धंधे में तेजी आयेगी.
बुनकर बताते हैं कि सरकार का ध्यान हस्तकरघा उद्योग की तरफ हो तो निश्चित ही दशा व दिशा दोनों बदलेगी. फिलहाल धंधे में पूंजी का अभाव सबसे बड़ी बाधा है. मेहनत के मुताबिक मजदूरी नहीं मिलने की बात बताते हुए कहा कि अगर पूंजी अपनी हो तो कारोबार में कमाई ज्यादा होती, लेकिन खादी ग्रामोद्योग से मिले सूत के बदले कपड़ा बुन कर पहुंचाने में सीमित कमाई होती है. 90 के दशक में उक्त गांव में गांधी बुनकर सर्वोदय सहयोग समिति हिंद प्राथमिक सहयोग समिति चला करता था. समिति से जुड़े सैकड़ों लोग कपड़ा बुनने का काम करते थे. धंधे में ठीक-ठाक कमाई होने के कारण रोजगार के लिए उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ता था, लेकिन समय व पूंजी की मार ने हस्तकरघा उद्योग को फटेहाल बना दिया. बेहाल बुनकर अन्य प्रदेशों में नौकरी करने को विवश हैं.
र अनुदान दिये जाने की घोषणा से पुश्तैनी धंधा को निश्चित रूप से बढ़ावा मिलेगा. अनुदान मिलने व कीमत कम होने से धंधे में तेजी आयेगी.
बुनकर बताते हैं कि सरकार का ध्यान हस्तकरघा उद्योग की तरफ हो तो निश्चित ही दशा व दिशा दोनों बदलेगी. फिलहाल धंधे में पूंजी का अभाव सबसे बड़ी बाधा है. मेहनत के मुताबिक मजदूरी नहीं मिलने की बात बताते हुए कहा कि अगर पूंजी अपनी हो तो कारोबार में कमाई ज्यादा होती, लेकिन खादी ग्रामोद्योग से मिले सूत के बदले कपड़ा बुन कर पहुंचाने में सीमित कमाई होती है. 90 के दशक में उक्त गांव में गांधी बुनकर सर्वोदय सहयोग समिति हिंद प्राथमिक सहयोग समिति चला करता था. समिति से जुड़े सैकड़ों लोग कपड़ा बुनने का काम करते थे. धंधे में ठीक-ठाक कमाई होने के कारण रोजगार के लिए उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ता था, लेकिन समय व पूंजी की मार ने हस्तकरघा उद्योग को फटेहाल बना दिया. बेहाल बुनकर अन्य प्रदेशों में नौकरी करने को विवश हैं.
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