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मजदूरी कर बेटे को बनाया डॉक्टर

हिम्मत : जब आठ वर्ष का था बेटा तभी हो गयी थी पति की कैंसर से मौत मां के चरणों में जन्नत होती है़ मां अपने बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए अपनी सारी खुशियां कुर्बान कर देती है़ मां की संघर्ष की कहानी फिल्मों में तो अक्सर देखा जाता है परंतु वर्तमान में इन […]

हिम्मत : जब आठ वर्ष का था बेटा तभी हो गयी थी पति की कैंसर से मौत

मां के चरणों में जन्नत होती है़ मां अपने बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए अपनी सारी खुशियां कुर्बान कर देती है़ मां की संघर्ष की कहानी फिल्मों में तो अक्सर देखा जाता है परंतु वर्तमान में इन माता की कुर्बानी व संघर्ष सराहनीय है़
जमुई :जिले के सोनो प्रखंड मुख्यालय स्थित लाइफ केयर सेंटर के निदेशक सह चिकित्सक डा एमएस परवाज की 78 वर्षीय मां हजरून निशा अपने पुत्र को इस मुकाम पर पहुंचाने में संघर्ष करनी पड़ी थी़
अपने बेटे की ऊंची पढ़ाई व उसके डक्टर बनने के जिस सपने को वो देखी थी उसे पूरा करने के लिए इन्हें गरीबी के साथ लंबा संघर्ष करना पड़ा था़ पति को खोने के बाद अभाव के बीच इन्होंने अकेले दम पर संघर्ष कर गांव में प्याज के खेत में मजदूरी करके व कागज का ठोंगा बनाकर उसने बेटा के डक्टर बनने के अपने सपने को पूरा की़ आज मां हजरून अपने संघर्ष की जीत पर खुश व संतुष्ट है़ कि उनका एकलौता पुत्र मो साहिन परवाज चिकित्सक बन कर समाज की सेवा कर रहा है़
संघर्ष में बीते 15 वर्ष
मूल रूप से लखीसराय जिला के हलसी गांव की रहने वाली मां हजरून अपने पति मो अली हुसैन के साथ पश्चिम बंगाल के गौरीपुर में रहती थी़ इनका पति गौरीपुर जुट मिल में मजदूरी करते थे़ इन्हें संतान के रूप में एक मात्र पुत्र मिला था़ 1982 ई में अली हुसैन की मृत्यु लंग्स केंसर से हो गयी़ उनके इलाज में हजरून के जेवर बिक गए
परंतु अपने पति को नहीं बचा पायी़ तब उनका पुत्र परवाज महज 8 वर्ष का था़ उन्हें अपने परिजनों का साथ नहीं मिला़ आर्थिक रूप से बदहाल होकर जब वो अपने गांव लौटी तब हालात बेहद खराब थे़ गौरीपुर में रहते हुए हजरून ने अपने पुत्र जो पढ़ा लिखा कर डक्टर बनाने का सपना देखी थी़ वही स्वप्न गांव में उसे सोने नहीं देती़ वो अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देने बाहर भेज दी़ खुद दिन में गांव के किसानो के प्याज के खेत में मजदूरी करने लगी व रात्रि में कागज का ठोंगा
बनाकर दुकानदारों को देने लगी़ इससे मिलने वाले रूपये को कोलकाता में पढ़ रहे अपने पुत्र को भेजने लगी़ परवाज को भी उस रूपये के मूल्य का पता था लिहाजा बड़ी संभल कर उसे खर्च करते तथा खुद भी ट्यूशन से उपार्जन कर अपनी मेडिकल की तैयारी में लगे रहे़ मां हजरून बताती है कि परवाज की किताब के लिए उन्होंने अपने घर की पीतल की कलश को भी बेच दी थी़ वषार्े की तपस्या व संघर्ष के बाद जब उनका पुत्र मेडिकल की पढ़ाई कर डक्टर बना तो उनकी बूढी आंखो में चमक आ गयी़ भले ही इस बीच उनका पुश्तैनी छोटा सा मकान व थोड़े से खेत बिक गए
थे परंतु वो तो विजेता बन गयी़ पुत्र को डक्टर बनाने का जो उसने स्वप्न देखी थी उसे अंतत: पूरा कर ली़ आज उनका पुत्र डा. एम एस परवाज एक सफल चिकित्सक बन कर न सिर्फ नसिंर्ग होम चला रहे है बल्कि समाज सेवा का भाव मन में रख कर गरीबो के लिए नि:शुल्क चिकित्सा की व्यवस्था भी किये है़ लंबे संघर्ष के बाद आज मां हजरून खुश होते हुए इस बात को लेकर अल्लाह को लाख लाख शुक्रिया अदा करती है कि विषम परिस्थिति में भी उनका विश्वास नहीं डगमगाया और उसके मन की मुराद अल्लाह ने पूरा कर दिया़

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