चकाई : गांव व चौपालों में करीब एक माह से चलने वाली फगुआ वर्तमान में आधुनिकता की भेंट चढ़ कर रह गयी है. बताते चलें कि होली त्योहार आते ही बच्चे जवान तो क्या बुढ़ों में भी उत्साह भर जाता था. मगर अब यह मदमस्त त्योहार आधुनिकता एवं पश्चिमी सम्यता की भेंट चढ़ चुकी है़ होली त्योहार के नाम पर सिर्फ होली के दिन रंग गुलाल लगाकर औपचारिकता निभाई जाती है.जबकि पहले ऐसी बात नही थी़ बसंत पंचमी के दिन से ही फगुवा शुरू हो जाता था़
उसी दिन से ही फगुवा के कर्णप्रिय गीत,गांव कस्बों तथा चौपाल में गूंजने लगता था और होली का त्योहार नजदीक आते-आते ही चारो तरफ मदमस्त नजारा देखने को मिलता था. होली खेले रघुबीरा अवध में,बम भोला बाबा कहंवा रंगोले पागडि़या, वर्षा ऋतु बीत गये हो आली,श्याम सुंदर ब्रज ना आये आदि सुमधुर फगुवा गीत देर रात तक गाने बजाने के बाद होलिका दहन में सारा गांव एक साथ सम्मिलित होकर जोगीरा गाते बजाते होलिका दहन करते थे़ होली के दिन भी इसी तरह का नजारा होता था. लोग सारे वैमनस्यता को भूला कर एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते थे. बड़े-बूढ़े व बच्चों भी सभी होली का आनंद उठाते थे़ मगर आज होली मनाना एक औपचारिकता भर रह गई है़