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कजरा पहाड़ी पर लगी आग, इलाके में भय
गरमी की शुरुआत होते ही कजरा पहाड़ी के जंगलों में आग ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है, जिसे बुझाने की माकूल व्यवस्था नहीं हो पा रही है. कजरा : श्री किशुन पंचायत के श्री घना गांव के पूरब की पहाड़ी से आग की लपटें उठ रही है. इससे इलाके में भय व्याप्त है. […]
गरमी की शुरुआत होते ही कजरा पहाड़ी के जंगलों में आग ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है, जिसे बुझाने की माकूल व्यवस्था नहीं हो पा रही है.
कजरा : श्री किशुन पंचायत के श्री घना गांव के पूरब की पहाड़ी से आग की लपटें उठ रही है. इससे इलाके में भय व्याप्त है. उक्त स्थल से करीब पांच किमी दूर से आग की लपटें दिखाई पड़ रही है. इस पहाड़ी पर लगी आग से आसपास के गांव नरोत्तमपुर, विक्रमपुर, खैरा, महसोनी, केशोपुर आदि गांवों में निवास करने वाले लोगों में भय व्याप्त है. बताते चलें कि लखीसराय जिले के भौगोलिक क्षेत्रफल 13 सौ 56 वर्ग किमी है. इसमें 194 वर्ग किमी यानी 14.3 प्रतिशत वन क्षेत्र में आता है.
आग बुझाने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं. वहीं उक्त क्षेत्रों की देखभाल करने के लिये विभागीय स्तर पर मानव बल की काफी कमी है. यहां मात्र एक वन क्षेत्र पदाधिकारी रमा शंकर महतो, पांच फॉरेस्ट गार्ड में एक यमुना प्रसाद राय को फॉरेस्टर का पद दिया गया है. वहीं शेष चार महेंद्र पासवान व सुरेश प्रसाद कजरा वन परिसर में, श्रवण सोरेन सिंघौल में और मनोज मिश्रा को गोपालपुर वन परिसर में फॉरेस्ट गार्ड के रूप में पद स्थापित किया गया है. जिले में वनरक्षी का सृजित पद जहां 17 है. वहीं तीन वन पाल का सृजित पद है. ऐसे में ससमय वनों की देखभाल व सुरक्षा की व्यवस्था अपर्याप्ता है.
कहते हैं वन क्षेत्र पदाधिकारी
इस बाबत लखीसराय के वन क्षेत्र पदाधिकारी रामा शंकर महतो ने बताया कि वन विभाग को राष्ट्रीय सड़क मार्ग व राजकीय सड़क मार्ग के किनारे के अलावे वन क्षेत्रों के पौधों को भी देख-भाल करने की जिम्मेवारी है, परंतु बलों की कमी के कारण कठिनाई होती है.
वहीं उन्होंने बताया कि वन रक्षी व अलग से फायर वाउचर को मजदूरी पर रख कर आग लगे स्थानों को मिट्टी, बालू आदि की सहायता से फायर लाइन काटते हुए आग बुझाने के लिये लगा दिया गया है. शीघ्र ही आग पर काबू पा लिया जायेगा.
इस पहाड़ी पर अक्सर लगती है आग
गरमी के दिनों में पहाड़ी व वनों के अंदर जंगली बांस के टकराने अथवा लकड़हारे की गलती के कारण अक्सर आग लगती है. जब तक विभाग का ध्यान इस ओर जाता है तब तक वनों के पेड़ों के जलने से लाखों रुपये की राजस्व की क्षति हो जाती है. बावजूद इसके सृजित पद नहीं भरे जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर इससे उठनेवाले धुआं व पेड़ पौधे के नष्ट होने से पर्यावरण को क्षति व ग्लोबल वार्मिंग से बचाव एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है.
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